Pune News: लाड़ली बहना का पैसा आदमी हजम कर गए मंत्रीजी, बकरे-मुर्गे इंसान छोड़ देंगे?

लाड़ली बहना का पैसा आदमी हजम कर गए मंत्रीजी, बकरे-मुर्गे इंसान छोड़ देंगे?
तेंदुओं को लेकर अलग-अलग रणनीति बनाई जा रही

भास्कर न्यूज, मुनीष शर्मा। पुणे सहित महाराष्ट्र के कुछ जिलों में तेंदुओं के नरभक्षी होने से आमजन के साथ सरकार का चिंता करना वाजिब है। तेंदुओं को लेकर अलग-अलग रणनीति बनाई जा रही है जिसमें उन्हें अन्य राज्य ही नहीं, बल्कि दूसरे देश भेजने तक की बात कही जा रही है। इसके लिए काफी पैसा महाराष्ट्र सरकार ही खर्च करेगी। पैसा कितना खर्च होगा, इस बारे में विस्तृत जानकारी नहीं है लेकिन लगभग 10 करोड़ रु. की बात सरकार ने कही है। सोमवार को पुणे आए राज्य के वन मंत्री गणेश नाईक ने कुछ अलग ही कल्पना कर डाली। उन्होंने तेंदुओं से मनुष्य को बचाने के लिए बकरों व मुर्गों का सहारा लेना तय किया। बकरे व मुर्गे जंगल में रखे जाएंगे ताकि तेंदुए इंसानों को बख्श दें। महाभारत में एक कथा का जिक्र आता है। बकासुर नामक राक्षस आसपास के गांवों में जाकर वहां के नागरिकों व पशुओं को खा जाता था। नागरिकों ने बकासुर से समझौता किया कि, गांव का एक मनुष्य व ढेर सारा खाना बैलगाड़ी में रख कर उसकी गुफा में भेज दिया जाएगा, लेकिन वह गांवों में आकर उत्पात न मचाएं। बकासुर मान गया। जब पांडव उस गांव में पहुंचे, तो उन्हें यह बात पता चली। तब भीम बकासुर की गुफा में गए और मल्लयुद्ध कर बकासुर का वध कर दिया।

सतयुग व द्वापर युग में बेईमानी-भ्रष्टाचार नहीं होते थे ऐसा माना जाता है लेकिन ये तो कलयुग है "सरकार'। मंत्री नाईक शायद यह भूल गए कि वे उस महाराष्ट्र राज्य में मंत्री हैं जहां लाड़ली बहन के भेष में कई पुरुष सरकार का खजाना महीनों तक लूटते रहे। इस मामले की जांच जारी हैं। सरकारी जमीनों या ट्रस्ट की जमीनों को बाले-बाले कौड़ियों के दाम बेचने के मामले भी पिछले कुछ दिनों से लगातार चर्चाओं में है। ऐसे में जंगल में छोड़े जाने वाले बकरे या मुर्गे तेंदुओं के बजाय इंसान का भोजन न बनें, इसका क्या उपाय होगा, इस पर स्थिति स्पष्ट नहीं है। कागजों पर जितने बकरे-मुर्गे खरीदे जाएंगे, उतने जंगल पहुंचेंगे यह भी सवाल खड़े करता रहेगा। महत्वपूर्ण बात यह है कि लगभग 1600 तेंदुओं के लिए 1000 पिंजरे खरीदने का तुक क्या है? महाराष्ट्र को तेंदुआ मुक्त बनाने का संकल्प सरकार ले रही है? पुणे के जुन्नर संभाग में 800 तेंदुए होने की बात कलेक्टर जितेंद्र डूडी बताते हैं। वहां से तेंदुए कम करना आवश्यक है लेकिन यह भी तय करना होगा कि कितने तेंदुए कहां भेजे जाए। राज्य सरकार ने करीब 700 तेंदुए वनतारा (गुजरात) भेजने की बात हाल ही में कही थी। इतने तेंदुए वनतारा में कैसे रखे जाएंगे, यह भी सवाल खड़ा होता है। वहां भी तो आसपास इंसान ही रहते हैं। यदि उन्हें पिंजरे में रखना है तो राज्य सरकार यहां भी ऐसी किसी योजना पर काम कर सकती है जिससे पर्यटन से संबंधित आमदनी तो उसके खाते में अाएगी। म.प्र. सरकार ने कूनो अभयारण्य के लिए अफ्रीकी देशों से चीते खरीदे हैं और यह दौर अभी भी जारी है। तेंदुओं की किस देश को जरूरत है क्या सरकार ऐसे देश ढूंढ़ नहीं सकती? यह हमारे राज्य की आमदनी ही बढ़ाएगा या बदले में हम किसी अन्य वन्य प्राणी को ले लें जो हमारे राज्य में नहीं है। जब ऐसा अन्य राज्यों की सरकारें कर सकती हैं तो महाराष्ट्र क्यों नहीं? जनता बस पारदर्शिता चाहती है ताकि इंसानों को राहत पहुंचाने के नाम पर सरकार का खजाना लूटा न जाए।

Created On :   18 Nov 2025 5:56 PM IST

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