Satna News: यही हाल रहा तो ३० वर्ष में विलुप्त हो जाएगी मंदाकिनी गंगा! प्रदेश की २२ सर्वाधिक प्रदूषित नदियों में शामिल चित्रकूट की पुण्य सलिला

यही हाल रहा तो ३० वर्ष में विलुप्त हो जाएगी मंदाकिनी गंगा! प्रदेश की २२ सर्वाधिक प्रदूषित नदियों में शामिल चित्रकूट की पुण्य सलिला
  • यही हाल रहा तो ३० वर्ष में विलुप्त हो जाएगी मंदाकिनी गंगा!
  • प्रदेश की २२ सर्वाधिक प्रदूषित नदियों में शामिल चित्रकूट की पुण्य सलिला

Satna News: अगर, यही हाल रहा तो नदियों का मायका कहे जाने वाले मध्य प्रदेश की धर्मनगरी चित्रकूट में धीमी मौत मर रही मोक्षदायिनी पुण्य सलिला मंदाकिनी तकरीबन ३० वर्षों में विलुप्त हो जाएगी।

प्रदेश की २२ सर्वाधिक प्रदूषित नदियों में शामिल मंदाकिनी गंगा के जल संरक्षण की दिशा में अब तक ईमानदार कोशिशें नहीं होने से ये नौबत आई है। ग्रामोदय विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के प्रमुख प्रो. घनश्याम गुप्ता मंदाकिनी के तकरीबन ३१ वर्ष के साइंटिफिक एनालिसिस के बाद इस सनसनीखेज नतीजे तक पहुंचे हैं। उल्लेखनीय है सती अनुसुइया आश्रम से उद्गमित मंदाकिनी तकरीबन ४० किलोमीटर का सफर पूरा कर यूपी में गोस्वामी तुलसीदास की जन्मस्थली राजापुर में यमुना में मिल जाती है। प्रदेश की यह अंतिम नदी है जो यमुना से जाकर मिलती है। यही यमुना प्रयाग में गंगा से मिलकर संगम बनाती है।

ऐसे होती है स्वस्थ्य नदी की पहचान:-----

प्रो. घनश्याम गुप्ता के मुताबिक किसी भी स्वस्थ्य नदी के जीवन की पड़ताल के ४ प्रमुख पैरामीटर होते हैं। नदी का जल प्रवाह, घुलित ऑक्सीजन (डीओ) , बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) और न्यूट्राफिकेशन। प्रो. गुप्ता के मुताबिक घटता डीओ और बढ़ता बीओडी जहां मंदाकिनी में जानलेवा स्तर पर हैं, वहीं कभी कल-कल करती पतित पाविनी अब लगभग बूंद-बंूद बहने लगी है। बढ़ता न्यूट्राफिकेशन भी जल संकट से जूझ रही मंदाकिनी के तिल-तिल मार रहा है।

तीन दशक में १० गुना घटा जल प्रवाह:---

प्रो. गुप्ता ने बताया कि वर्ष १९९३ में मंदाकिनी नदी का जलप्रवाह ३ हजार लीटर प्रति सेकंड था। जो मौजूदा समय में घट कर ३०० लीटर प्रति सेकंड पर पहुंच गया है। साफ है कि इन ३० वषो्रं के दौरान मंदाकिनी के जल प्रवाह में १० गुना गिरावट आई है। यही हाल रहा तो पक्की आशंका है कि आने वाले ३० वर्षों में यही जल प्रवाह गिर कर ३० लीटर प्रति सेकंड हो जाएगी? अगर, किसी नदी के जल का प्रवाह ५० लीटर प्रति सेकंड से नीचे चला जाता है तो उसे डेड रिवर (मरी हुई नदी) मान लिया जाता है। दुर्भाग्य से रामायण, रामचरित मानस और पुराणों में वर्णित त्रेतायुगीन मदांकिनी गंगा मृत्यु की उसी राह पर है। साइंटिफिक एनॉलिसिस बताता कि ३० वर्ष यह नदी नहीं मिलेगी।

प्रति लीटर पर ऑक्सीजन महज २ एमजी:--

किसी भी स्वस्थ्य नदी का दूसरा बड़ा पैमाना घुलित ऑक्सीजन (डिजाल्वड ऑक्सीजन) की उपलब्धता होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय पैरामीटर में प्रति लीटर पर घुलित ऑक्सीजन की मात्रा ४ मिली ग्राम से कम नहीं होनी चाहिए। मगर, सती अनुसुइया आश्रम के पास अगर मंदाकिनी के अपस्ट्रीम को छोड़ दें तो कहीं भी प्रति लीटर पर ऑक्सीजन की मात्रा २ मिली ग्राम से ऊपर नहीं है। प्रोफेसर घनश्याम गुप्ता बताते हैं कि जलीय जीवन इसी प्राण वायु (घुलित ऑक्सीजन ) पर निर्भर होता है। अन्यथा जलीय संसार नष्ट हो जाता है। एक अन्य अध्ययन बताता है कि वर्ष १९९४ से पहले मंदाकिनी में पाई जाने वाली मछलियों की ५ प्रजातियां पानी के अंदर दम घुटने से पहले की विलुप्त हो चुकी हैं। यह स्थिति किसी भी नदी की धीमी मौत (इंडेजर्ड) का सटीक लक्षण है।

सीवेज के १ लीटर से जहरीला हो रहा है १५० लीटर शुद्ध जल :-----

ग्रामोदय के पर्यावरण एवं ऊर्जा विभाग के प्रमुख प्रो.घनश्याम गुप्ता की स्टडी से सनसनीखेज सच यह भी है कि मंदाकिनी के जल में जहां घुलित ऑक्सीजन की मात्रा तेजी से घट रही है वहीं बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) बढ़ रही है। उन्होंने बताया कि नदी में छोड़े जा रहे विभिन्न सीवेज (गंदे पानी) पर लगाम नहीं होने से मौजूदा समय में मंदाकिनी में बीओडी की मात्रा खतरनाक स्तर तक पहुंच चुकी है। किसी भी हालत में जल में बीओडी की मात्रा प्रति लीटर पर ५ मिलीग्राम से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। मगर, मौजूदा समय में चित्रकूट की मंदाकिनी में कहीं भी यह स्तर ३५-४० मिलीग्राम से कम नहीं है। मानवीय हस्तक्षेप वाले रामघाट और भरत घाट पर तो बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड तय मानक से १५० गुना ज्यादा है। साफ है कि नदीं में गिरने वाला एक लीटर सीवेज १५० लीटर शुद्ध जल को प्रदूषित कर रहा है।

कम पानी का वाष्पोत्सर्जन :-----

भारी प्रदूषण के कारण मंदाकिनी नदी में न्यूट्रोफिकेशन बेलगाम है। प्रो. गुप्ता की स्टडी से यह तथ्य भी साफ है कि जल में तय मानकों के विरुद्ध घुलित ऑक्सीजन के घटने और बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड के बढ़ने से प्रदूषित जल में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम की मात्रा बढ़ जाती है। इससे एल्गी पनपती है। इसे एल्गल ब्लूम्स बोलते हैं। एल्गी वाष्पोत्सर्जन कर वाटर लॉस करती है। उन्होंने कहा कि एक तो मंदाकिनी पहले से ही गंभीर जल संकट से जूझ रही है उस पर

वाष्पोत्सर्जन की प्रक्रिया भी बढ़ गई चुकी है। एल्गल ब्लूम्स से नदी के खतरे यहीं खत्म नहीं होते हैं। एल्गी का जीवन लगभग एक साल होता है। इसके बाद मर कर वह अपने पीछे नदी में एक से डेढ़ फीट के बेड छोड़ जाती है। जाहिर है यह स्थिति नदी को उथला बनाती है। प्रो.धनश्याम गुप्ता बताते हैं कि किसी नदी की मौत के लिए बहाव में कमी और कम गहराई जैसे दो कारण ही काफी होते हैं।

Created On :   25 May 2025 4:32 PM IST

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