शहडोल: रेत की ऊंची कीमत की असल वजह ठेका कंपनी का जेब भारी रखने का फार्मूला

रेत की ऊंची कीमत की असल वजह ठेका कंपनी का जेब भारी रखने का फार्मूला
  • जितना सरकार को दो उतना ही खुद भी मुनाफा कमाओ
  • रेत की ऊंची कीमत की असल वजह ठेका कंपनी का जेब भारी रखने का फार्मूला

डिजिटल डेस्क, शहडोल। संभागीय मुख्यालय पर एक हाइवा यानि 600 वर्गफीट (17 घनमीटर) रेत की कीमत कम से कम 32 हजार रुपए हो गई है। दूरी, ग्राहक की जरूरत/मजबूरी को देखते हुए 35 हजार रुपए तक लिए जा रहे हैं। रेत के साल दर साल ऊंचे होते दाम (पिछले पांच साल में करीब ढार्ई गुना) के पीछे रेत ठेका कंपनियों का अपनी जेब भारी रखने का फार्मूला है। फार्मूला भी बड़ा सीधा, ‘जितना सरकार को रेत की रायल्टी और उस पर लगने वाले टैक्स के रूप में दो उतना ही मुनाफा खुद भी कमाओ।’ इसी फार्मूले पर चलते हुए जिले की रेत खदानों के समूह का काम लेने वाले एमडीओ/ठेका कंपनी सहकार ग्लोबल लिमिटेड प्रति हाइवा 9 हजार रुपए का मुनाफा कमा रही है। इसके द्वारा सरकार को रायल्टी और तमाम टैक्स के रूप में प्रति घनमीटर 517 रुपए के मान से एक हाइवा की 17 घनमीटर रेत के लिए 8,789 रुपए रायल्टी के रूप में जमा कराए जाते हैं।

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कंपनी अपने फार्मूले पर चलते हुए सरकार को दी जाने वाली राशि के बराबर या उससे भी अधिक मुनाफा कमा सके, इसी मंशा से सहकार ग्लोबल द्वारा इस साल की शुरूआत में मैदान में उतरते ही प्रति हाइवा 2 से 5 हजार रुपए तक दाम बढ़ा दिए गए। रेत की ऊंची कीमत का सबसे ज्यादा खामियाजा गरीब व मध्यम वर्ग को भुगतना पड़ रहा है, जिसका ‘अपने घर’ का सपना तो टूटा ही, वह छोटे-मोटे मरम्मत के कामों के लिए भी परेशान होने लगा। क्योंकि यहां एक डग्गी (5 घनमीटर) रेत के दाम भी साढ़े दस हजार रुपए तक वसूले जा रहे हैं। पिछले साल एक डग्गी रेत 5 हजार रूपए में मिल रही थी। आश्चर्य यह कि हर आम व्यक्ति के काम आने वाली रेत के ऊंचे जाते दामों पर अंकुश लगाने प्रशासन भी कोई कदम नहीं उठाना चाह रहा है। कलेक्टर वंदना वैद्य इस समस्या पर जल्द ही कार्रवाई की बात कह रही हैं।

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डिमांड और सप्लाई के खेल

में आम आदमी परेशान

रेत के कारोबार के जानकारों के अनुसार, ऊंचे दामों की वजह से छोटे सप्लायर्स ने तो रेत रखना ही बंद कर दी। वे ऑन डिमांड ही रेत की डग्गी इधर से उधर करने के काम में लग गए। इससे डिमांड व सप्लाई के बीच भारी अंतर आ गया और मुनाफाखोरी करने वाले भी दांव खेलने से बाज नहीं आ रहे। स्वयं के रहने के लिए मकान निर्माण करवा रहे व्यापारी सुनील गुप्ता ने बताया कि उनकी छत पडऩी थी तो 10 दिन तक रेत के लिए परेशान रहे। जो लोग रेत सप्लाई करते थे वे सीधे कह रहे थे कि रेत नहीं मिल रही है। बाद में एक डग्गी रेत साढ़े 10 हजार रूपए में देने के लिए राजी हुए। इनका कहना रहा कि, रेत के दाम में मनमानी बढ़ोत्तरी पर प्रशासन को कार्रवाई करनी चाहिए।

मजदूर वर्ग भी परेशान : सतनाम सिंह बताते हैं कि शहर में ज्यादातर मकानों के निर्माण एक माह से ज्यादा समय से रेत की किल्लत के कारण रुके पड़े हैं। इसका सबसे ज्यादा नुकसान मजदूरों को हो रहा है। जो लोग मकान निर्माण में नियमित मजदूरी करते हैं, ऐसे लोगों को काम के लिए परेशान होना पड़ रहा है।

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जनता से वसूली जा रही ऊंची

कीमत का अर्थ गणित

>> मानक : एक हाइवा यानि 600 वर्गफीट (17 घनमीटर) रेत

>> बाजार में न्यूनतम कीमत : 32 हजार रुपए

>> सरकर को रॉयल्टी के रूप में जा रहे : 8,789 रुपए, प्रति घनमीटर 517 रुपए

>> प्रोडक्शन कॉस्ट : 6,222 रुपए, प्रति घनमीटर 366 रुपए

>> भाड़ा : 8,000 रुपए अधिकतम 40 किलोमीटर की दूरी के लिए

(2 हजार का डीजल, 2 हजार ड्राइवर-क्लीनर के, 2 हजार हाइवा का किराया, करीब 2 हजार हर्जे खर्चे के)

>> कुल खर्च : 23 हजार रुपए

>> मुनाफा : 9 हजार रुपए

मंहगी रेत से ये नुकसान

>> 409 बैगा आवास पीएम जनमन योजना के सिर्फ 5 गांव में अटक गए। इसमें लोढ़ी, हर्राटोला, नवागांव, पोड़ी व खोहरी गांव शामिल हैं।

>> 11 हजार 907 बैगा पीएम आवास बन रहे हैं तो इसमें 10 हजार 307 परिवारों को पहली किश्त जारी होने के बाद 2842 परिवारों का ही निर्माण प्लिंथ लेवल तक पहुंचा। जाहिर इनमें से अधिकांश निर्माण रेत के कारण गति नहीं पकड़ पा रहा।

>> 30 ज्यादा बड़े सरकारी निर्माण ऐसे हैं, जो रेत के मनमाने कीमत के कारण या तो रुक गए हैं या फिर गति धीमी हो गई है।

Created On :   21 Feb 2024 9:32 AM GMT

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