भीष्म द्वादशी आज : स्वयं पितामह ने किया था इस व्रत का पालन

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। इस व्रत को धारण करने का अत्यंत महत्व है। कहा जाता है कि इसके बार में स्वयं भगवान ने स्वयं इस व्रत की महिमा के संबंध में पितामह भीष्म को बताया था और पितामह ने इसे विधि अनुसार धारण किया था। इसी वजह से इसका नाम भीषम के नामे ही प्रसिद्ध हुआ। माघ मास की द्वादशी पुण्य कर्मों के लिए अत्यंत उत्तम बतायी गई है। नाराज पितरों को मनाने का सर्वाधिक उत्तम दिन यही बताया गया है। कई बार विधि-विधान से पितरों का पूजन करने के उपरांत भी वे शांत नही होते। ऐसे में कहा जाता है कि यदि यह व्रत रखा जाए तो निश्चिच ही इसका लाभ प्राप्त होता है। इस वर्ष यह 28 जनवरी 2018 रविवार को मनाया जा रहा है।
कहा जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से स्वयं पितामह भीष्म को आत्मशांति प्राप्त हुई थी, जिसकी वजह से भी इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है। स्वयं पितामह भीष्मा के द्वारा पालन करने की वजह से इस व्रत की महिमा और अधिक मानी गई है। इसके संबंध में बताया जाता है इसे धारण करने से व्यक्ति को अमोघ फल प्राप्त होता है। ना सिर्फ उसके एवं उसके पूर्वजों के पापों का नाश होता है अपितु यह व्रत समस्त बीमारियों को भी मिटाता है।
मिलता है परम धाम
पितामह भीष्म के आशीर्वाद से न्यायप्रिय एवं अपने मार्ग से बिना भटके कर्म करने की शक्ति प्राप्त होती है। व्रतधारी में वचनबद्धता का गुण विकसित होता है। वज जीवन के प्रत्येक निर्णय को अच्छी तरह ले पाता है। जीवन के अंतकाल में वह समस्त मोह माया को त्यागने की शक्ति भी प्राप्त करता है। इसके संबंध में कहा जाता है कि यह जीवन के प्रत्येक दुखों का नाश कर मनुष्य को परम धाम तक पहुंचाता है।
प्रचलित है ये कथा
पितामह भीष्म ने अपनी मृत्यु के लिए सूर्य के उत्तरायण का इंतजार किया था। उन्होंने अपने पिता की खुशी के लिए जीवनभर ब्रम्हचर्य रहने की भीष्म प्रतिज्ञा ली। अपनी मृत्यु का रहस्य स्वयं उन्होंने ही अर्जुन को बताया था।
Created On :   26 Jan 2018 9:12 AM IST