अहोई अष्टमी 2018: जानिए कब मनाई जाएगी अहोई अष्टमी

डिजिटल डेस्क, भोपाल। अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन किया जाता है। जो इस बार 31 अक्टूबर 2018 को पड़ रही है। यह व्रत पुत्रवती महिलाओं के लिए अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है। माताएं अहोई अष्टमी पर पूरा दिन उपवास रखती हैं और सायंकाल में तारे दिखाई देने के समय अहोई माता का पूजन करती हैं। इस दिन तारों को करवा से अर्घ्य दिया जाता है। यह अहोई माता गेरु आदि के द्वारा दीवार पर बनाई जाती है अथवा किसी मोटे वस्त्र पर अहोई काढ़कर पूजा के समय उसे दीवार पर टांगा जाता है।
पूजा विधि
भूमि पर गोबर से लीपकर कलश की स्थापना की जाती है।
अहोई माता की पूजा कर उन्हें दूध-चावल का भोग लगाया जाता है।
इसके बाद एक पटे पर जल से भरा कलश रखकर कथा सुनी जाती है।
अहोई अष्टमी की कथा
पुराने समय में एक साहुकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थीं। साहुकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली पर ससुराल से मायके आई हुई थी। दीपावली पर घर लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गई तो ननद भी उनके साथ चली गई।
साहुकार की बेटी जहां मिट्टी खोद रही थी उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने बेटों के साथ रहती थी। मिट्टी खोदते हुए धोखे से साहूकार की बेटी की खुरपी स्याहू (साही) के एक छोटे बच्चे को लग गई जिससे वो मर गया। स्याहू इससे क्रोधित होकर बोली मैं तुम्हारी कोख बांध दूँगी। स्याहू के इस प्रकार के वचन सुनकर साहूकार की बेटी डर गई और अपनी सातों भाभियों से एक-एक कर विनती करने लगी कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें। तब सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो गई।
इसके बाद छोटी भाभी के जो भी संतान होती वो सात दिन में ही मर जाती। सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने ज्योतिष को बुलवाकर इसका कारण पूछा। जयोतिष ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी उसने वैसा ही किया। सुरही गाय छोटी भाभी की सेवा से प्रसन्न हो गई और उसे स्याहु के पास लेकर गई। रास्ते में जाते समय चलते-चलते दोनों थक जाते हैं और आराम करने लगते हैं अचानक साहुकार की छोटी बहू की नजर एक खतरनाक सांप पर पड़ती है जो गरूड़ पंखनी के बच्चे को डसने जा रहा था। बच्चे को बचाने के लिए वह सांप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहां पर आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहु ने उसके बच्चे के मार दिया है इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है। छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है। तब गरूड़ पंखनी खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है।
तब स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहु होने का अशीर्वाद देती है। स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहु का घर पुत्र और पुत्र वधुओं से हरा भरा हो जाता है। अहोई का अर्थ होता है "अनहोनी को होनी बनाना" जैसे साहुकार की छोटी बहू ने कर दिखाया था।
कैसे करें पूजा ?
अहोई अष्टमी के व्रत के दिन प्रात: उठकर स्नान करें और माता की पूजा करते हुए ये संकल्प करें कि मैं अपने पुत्र की लम्बी आयु एवं सुखमय जीवन के लिए अहोई माता का व्रत कर रही हूं। अहोई माता मेरे सभी पुत्रों को दीर्घायु, उत्तम स्वास्थ्य एवं सुखी रखें।
अहोई माता की पूजा के लिए लाल गेरू से दीवाल पर अहोई माता का चित्र बनाएं और साथ ही स्याहु और उसके सात पुत्रों का चित्र अंकित करें। फिर उनके सामने चावल की कटोरी, मूली, सिंघाड़े रखें और सुबह दीपक जलाकर कहानी पढ़ें। कहानी पढ़ते समय जो चावल हाथ में लिए जाते हैं, उन्हें साड़ी के पल्लू में बांध लेते हैं।
सुबह पूजा करते समय लोटे में पानी और उसके ऊपर करवे में पानी रखते हैं।
यह करवा, करवा चौथ में उपयोग किया हुआ होना चाहिए। इस करवे का पानी दिवाली के दिन पूरे घर में छिड़का जाता है।
संध्या काल में इन अंकित चित्रों की पूजा करें। भोजन में इस दिन चौदह पूरी और आठ पुए का भोग अहोई माता को लगाया जाता है।
इस दिन बायना निकाला जाता है
बायने मैं चौदह पूरी, मठरी या काजू होते हैं। लोटे के पानी से शाम को चावल के साथ तारों को आर्घ्य किया जाता है। शाम को अहोई माता के सामने दीपक जलाया जाता है। पूजा और भोग का पूरा सामान किसी ब्रह्मण को दे दिया जाता है। अहोई माता का चित्र दीपावली तक घर में लगा रहना चाहिए।
अहोई माता की पूजा में एक अन्य विधान यह भी है कि चांदी की अहोई बनाई जाती है जिसे स्याहु कहते हैं। इस स्याहु की पूजा रोली, अक्षत, दूध व भात से की जाती है। वैसे पूजा चाहे आप किसी भी विधि-विधान से करें लेकिन किसी भी विधान में पूजा के लिए एक कलश में जल भरकर रख लें। पूजा के बाद अहोई माता की कथा सुने और सुनायें। पूजा के पश्चात सासु मां के चरण स्पर्शकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके पश्चात भोजन ग्रहण करें।
Created On :   27 Oct 2018 6:59 PM IST