अहोई माता के साथ करें साही के पुत्रों की पूजा, ये है अष्टमी की व्रत कथा

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अहोई का अर्थ होता है अनहोनी को होनी बनाना अहोई अष्टमी इस बार 12 अक्टूबर गुरूवार को मनाई जा रही है। यह व्रत संतान की दीर्घायु व संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है। दिवाली के सात दिन पहले पड़ने वाले इस व्रत के दौरान दिनभर उपवास रखकर अहोई माता के चित्र के साथ साही के बच्चों के चित्र बनाकर उनका पूजन किया जाता है।
सूर्यास्त होने के बाद अहोई माता की पूजा प्रारंभ होती है। पूजन से पहले जमीन को साफ करके पूजा का चौक तैयार किया जाता है। फिर एक लोटे में जल भरकर उसे कलश की भांति चौकी के एक कोने पर रखकर भक्तिभाव से पूजा की जाती है। इसमें एक खास बात यह भी है कि पूजा के लिए माताएं चांदी की एक अहोई भी बनाती हैं। फिर अहोई की रोली, चावल, दूध व भात से पूजा की जाती है।
व्रत कथा
प्राचीनकाल में एक साहूकार के सात बेटे व सात बहुएं थीं इसके साथ ही वह उसकी एक बेटी भी थी। जो दिवाली में ससुराल से मायके आई थी। त्योहार की खुशी में घर की सफाई जारी थी। दिवाली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गईं। इसी बीच साहूकार की बेटी भी उनके साथ चली गई। वह जिस स्थान से मिट्टी निकाल रही थी। उसी के पास स्याहू (साही) अपने पुत्रों के साथ रहती थी। इसी दौरान मिट्टी निकालते वक्त उसका एक पुत्र के साहूकार की बेटी की खुरपी से चोट लगने से मर जाता है। स्याहू इस पर क्रोधित होती है और कहती है कि मैं तुम्हारी कोख बांध दूंगी।
स्याहू के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभीयों से एक एक कर विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें। सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं वे सात दिन बाद मर जाते हैं। पुत्रों की लगातार हो रही मृत्यु के बाद वह पंडित से इसका कारण व उपाय पूछती है। वह उसे सुरही गाय की सेवा करने के लिए कहते हैं। सुरही उसकी सेवा से प्रसन्न होती है और उसे स्याहू के पास ले जाती है।
रास्ते में दोनों थककर बैठ जाते हैं। तभी वह देखती है कि एक ओर एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर वह छोटी बहू को चोंच मारने लगती है। इस पर सुरही उसे सच्चाई बताती है। गरूड़ पंखनी उससे प्रसन्न होती है। तीनों मिलकर स्याहू के पास जाते हैं।
स्याहू छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहू होने का अशीर्वाद देती है। जिसके बाद उसके घर पर पुत्रों का जन्म होता है और उसका घर खुशियों से भर जाता है। घर पुत्र और पुत्र वधुओं से हरा भरा हो जाता है।




Created On :   11 Oct 2017 8:39 AM IST