शिवलिंग और नंदी भी मौजूद, लेकिन यहां मंदिरों के बीच भटकते हैं भूत

डिजिटल डेस्क, जयपुर. कहते हैं जहां मंदिर हों वहां भूत नहीं होते, लेकिन भानगढ़ किले के मामले में ये बातें विपरीत हैं। ये जितना आधे-अधूरे मंदिरों को लेकर प्रसिद्ध है उतना ही भूतों को लेकर। भानगढ़ किले के बारे में कहा जाता है कि यहां अब भी रात के वक्त पायलों की झंकार सुनाई देती है। कोई भी यहां रात को नहीं ठहर सकता। अब भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा इसे संरक्षित कर दिया गया है, लेकिन अब भी आधे—अधूरे निर्माण, मन्दिर और किले, जिन्हें देखने मात्र से भानगढ को लेकर प्रचलित कहानियों और किस्सों में सत्यता का आभास होने लगता है। मंदिर के अंदर ही गणेश व हनुमान मंदिर भी काफी प्रसिद्ध हैं।
भागनगढ के बारे में कहा जाता है कि भानगढ के किले को बनाने की सहमति बालूनाथ योगी, जिनकी यह तपस्थली थी, ने किले की परछाई कभी भी बालूनाथ योगी की तपस्या स्थल को नहीं छूने की शर्त पर दी थी। लेकिन, इस बात पर ध्यान दिए बिना ही किले का निर्माण उपर की ओर जारी रखा गया जिसके कारण किले की परछाई तपस्या स्थल पर पड गयी। इस पर योगी बालूनाथ ने भानगढ को श्राप दिया जिससे भानगढ समाप्त कर दिया, यह समाधि अभी भी पहाड पर मौजूद है।
यह तीन ओर से पहाडियों से घिरा है। जानकारों के अनुसार यह स्थान 16वीं सदी में विकसित था। इसके अतिरिक्त मन्दिर सोमेशवर महादेव, केशवराय, गोपीनाथ व मंगला देवी भी यहां देखने योग्य है। ये चारों मन्दिर नागर शैली में बने हुए है। मन्दिरों में से केशवराय, मंगला देवी व गोपीनाथ मन्दिर ऐसे हैं जिनमें प्रतिमाएं नहीं हैं लेकिन सोमेशवर मन्दिर में शिवलिंग व नन्दी की प्रतिमा है।सोमेशवर मन्दिर के पास एक कुण्ड है जिसमें वर्तमान में स्नान करने पर रोक लगा रखी है।
इसे लेकर एक लोकमत यह भी है कि भानगढ की राजकुमारी रत्नावती को पाने के लिए सिंधिया नामक तांत्रिक ने राजकुमारी के उपयोग हेतु लाए जा रहे तेल को अपने जादू से सम्मोहित करने वाला बना दिया। राजकुमारी रत्नावती ने वह तेल एक चट्टान पर गिरा दिया। इससे तांत्रिक की मौत हो गई लेकिन, मौत से पहले तांत्रिक ने भानगढ व राजकुमारी को नाश होने का श्राप दे दिया जिससे यह नगर नष्ट हो गया।
Created On :   13 July 2017 3:25 PM IST