भीष्म द्वादशी आज, व्रत से मिलेगा धन-धान्य, सौभाग्य का सुख

Bhishma Dwadashi on Feb 16, Learn Worship Law and Fasting Rules
भीष्म द्वादशी आज, व्रत से मिलेगा धन-धान्य, सौभाग्य का सुख
भीष्म द्वादशी आज, व्रत से मिलेगा धन-धान्य, सौभाग्य का सुख

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। माघ मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को भीष्म द्वादशी मनाई जाती है। जो इस बार 16 फरवरी 2019 यानी आज मनाई जा रही है। इस द्वादशी को गोविंद द्वादशी भी कहते हैं। इस व्रत को करने वालों को संतान की प्राप्ति होकर समस्त धन-धान्य, सौभाग्य का सुख मिलता है। पद्मपुराण में माघ मास के माहात्म्य का वर्णन करते हुए कहा गया है कि पूजा करने से भी भगवान श्रीहरि को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी कि माघ महीने में स्नान मात्र से होती है। इसलिए सभी पापों से मुक्ति और भगवान वासुदेव की प्रीति प्राप्त करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को माघ स्नान करना चाहिए। 

महाभारत कथा में कहा गया है माघ मास में जो तपस्वियों को तिल दान करता है, वह नरक का दर्शन नहीं करता। माघ मास की द्वादशी तिथि को दिन-रात उपवास करके भगवान माधव की पूजा करने से उपासक को राजसूय यज्ञ के बराबर फल प्राप्त होता है। यदि असक्त स्थिति के कारण पूरे महीने का नियम न निभा सके तो शास्त्रों ने यह भी व्यवस्था दी है कि तीन दिन अथवा एक दिन माघ स्नान का व्रत का पालन करें।

"मासपर्यन्तं स्नानासम्भवे तु त्र्यहमेकाहं वा स्नायात्‌।

जानिए भीष्म द्वादशी पर कैसे करें पूजन :-

भीष्म द्वादशी के दिन नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान के बाद भगवान लक्ष्मीनारायण की पूजा करनी चाहिए। इस पूजा में मौली, रोली, कुमकुम, केले के पत्ते, फल, पंचामृत, तिल, सुपारी, पान एवं दुर्वा आदि रखना चाहिए। पूजा के लिए (दूध, शहद, केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा) मिलाकर पंचामृत से भगवान को भोग लगाएं। पूजन से पहले भीष्म द्वादशी कथा करना चाहिए।

पापों से मुक्ति
इसके बाद लक्ष्मी देवी एवं अन्य देवों की स्तुति-आरती की जाती है। पूजन के बाद चरणामृत एवं प्रसाद सभी को बांटें। ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद दक्षिणा देनी चाहिए। इसके बाद स्वयं भोजन करें। इस दिन अपने पितरों का तर्पण करने का भी विधान है। इस दिन व्रत करने से धन, धान्य, संपत्ति व परिवारिक सुख मे बढ़ोत्तरी और रोगों/ मानसिक परेशानी का अंत और पवित्र नदियों में स्नान व दान करने से शुभ फलों की प्राप्ति और जाने अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति प्राप्त होती है।

सकरात्मक सोच
शास्त्रों के अनुशार इस व्रत को भगवान श्री कृष्ण का स्वयं स्वरूप कहा है, जो व्यक्ति को जन्मांतरों के बंधन से मुक्त कर देता है और वैकुंठ प्राप्ति का साधक बनता है। यह व्रत समर्पित है श्री विष्णु जी को और उनकी कृपा प्राप्त करने हेतु इसे किया जाता है। तिल द्वादशी व्रत सभी प्रकार का सुख वैभव देने वाला और कलियुग के समस्त पापों का नाश करने वाला है। मन के अंधकार को दूर करते हुए यह जीवन में प्रकाश का संचार करता है। मन में सकरात्मक सोच में वृद्धि होती है।

Created On :   8 Feb 2019 6:52 AM GMT

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