आज धूमधाम से मनाया जाएगा चेटीचंड महोत्सव, ऐसे हुई थी इस पर्व की शुरुआत

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भगवान झूलेलाल के अवतरण दिवस को सिंधी समाज चेटीचंड के रूप में मनाता है। आज 6 अप्रैल दिन शनिवार को यह पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा। भारतीय धर्मग्रंथों में कहा गया है कि जब-जब अत्याचार बढ़े हैं, नैतिक मूल्यों का क्षरण हुआ है तथा आसुरी प्रवृत्तियां हावी हुई हैं, तब-तब किसी न किसी रूप में ईश्वर ने अवतार लेकर धर्मपरायण प्रजा की रक्षा की। संपूर्ण विश्व में मात्र भारत को ही यह सौभाग्य एवं गौरव प्राप्त रहा है कि यहां का समाज साधु-संतों के बताए मार्ग पर चलता आया है।
ऐसे हुई उत्सव मनाने की शुरुआत
विद्वानों के अनुसार सिंध देश का शासक मिरखशाह अपनी प्रजा पर अत्याचार करने लगा था जिसके कारण सिंधी समाज ने 40 दिनों तक कठिन जप, तप और साधना की। तब सिंधु नदी में से एक बहुत बड़े नर मत्स्य पर बैठे हुए भगवान झूलेलाल प्रकट हुए और कहा मैं 40 दिन बाद जन्म लेकर मिरखशाह के अत्याचारों से प्रजा को मुक्ति दिलाउंगा। उसके बाद चैत्र माह की द्वितीया को एक बालक ने जन्म लिया जिसका नाम उडेरोलाल रखा गया।
अपने चमत्कारों के कारण बाद में उन्हें झूलेलालसाईं, लालसांई, के नाम से सिंधी समाज और ख्वाजा खिज्र जिन्दह पीर के नाम से मुस्लिम समाज के लोग भी पूजने लगे। चेटीचंड के दिन श्रद्धालु बहिराणा साहिब जाते हैं और इस दिन सिन्धी समाज के लोग अपने देव भगवान श्री झुलेलाल साईं की शोभ यात्रा निकालते हैं। शोभा यात्रा में सिन्धी लोग ‘छेज’ नामक नृत्य करते हैं जो कि गुजरात के डांडिया की ही तरह का लोकनृत्य होता है और साथ में झूलेलाल की महिमा के गीत गाते जाते हैं। इस दिन ताहिरी (मीठे चावल), छोले (उबले नमकीन चने) और शरबत का भोग लगाकर प्रसाद बांटा जाता है और शाम को फिर बहिराणा साहिब का विसर्जन कर दिया जाता है।
झूलेलाल सिन्धी हिन्दुओं के उपास्य देव हैं जिन्हें "इष्ट देव" कहा जाता है। उनके उपासक उन्हें वरुणदेव या जल देवता का अवतार मानते हैं। वरुण देव को सागर के देवता, सत्य के रक्षक और दिव्य दृष्टि वाले देवता के रूप में सिंधी समाज पूजता है। उनकी आस्था और विश्वास है कि जल से सभी सुखों की प्राप्ति होती है और जल ही जीवन है।
भगवान झूलेलालजी को जल और ज्योति का अवतार माना गया है, इसलिए काष्ठ का एक मंदिर बनाकर उसमें एक लोटी से जल और ज्योति प्रज्वलित की जाती है और इस मंदिर को श्रद्धालु चेटीचंड के दिन अपने सिर पर उठाकर, जिसे बहिराणा साहब भी कहा जाता है, भगवान वरुणदेव का स्तुति गान करते हैं एवं समाज का परंपरागत नृत्य छेज करते हैं। यह सर्वधर्म समभाव का प्रतीक है। झूलेलाल उत्सव चेटीचंड, जिसे सिन्धी समाज सिन्धी दिवस के रूप में मनाता चला आ रहा है, इससे समाज की विभाजक रेखाएं समाप्त हो जाती हैं।
Created On :   27 March 2019 2:43 PM IST