प्रत्यूषा को भोर का अर्घ्य, ढाई दिन के लिए मायके आती हैं 'छठी-मईया'

Chhath Puja 2017: Importance History and Significance with sun
प्रत्यूषा को भोर का अर्घ्य, ढाई दिन के लिए मायके आती हैं 'छठी-मईया'
प्रत्यूषा को भोर का अर्घ्य, ढाई दिन के लिए मायके आती हैं 'छठी-मईया'

डिजिटल डेस्क, भोपाल। कार्तिक माह में सूर्य तुला राशि में होने के कारण सबसे कमजोर होते हैं, इसलिए इस माह में दिवाली के 6 दिन बाद सूर्यदेव को पूजा जाता है, जिससे उन्हें अपने लिए मजबूत किया जा सके। यही वजह है कि छठ पर्व में सूर्य के स्वभाव के अनुसार स्वच्छता और सादगी पर जोर दिया जाता है। गुड़ सूर्य को सूचित करता है, इसलिए इस पर्व में गुड़ की खीर बनाकर प्रसाद में बांटी जाती है। छठ मान्यताओं का पर्व है। इसे लेकर तरह-तरह की मान्यताएं जुड़ी हुई हैं, किंतु सभी मान्यताएं  परिवार व संतान के महत्व पर जोर देती हैं।

 

छठी मईया की पूजा 

छठ पूजा के दौरान परवैतिन के गीतों में छठी-मईया की कल्पना एक स्त्री के रूप में है। कहा जाता है कि उनका भी मायका और ससुराल है। छठी-मईया ससुराल से अपने मायके ढाई दिन के लिए आती हैं। वे भरे पूरे परिवार से आती हैं इसलिए परवैतिन पूजन के वक्त उनसे भरेे-पूरे परिवार और संतान का आशीर्वाद मांगती हैं। 

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कोसी भराई और दउरा

छठ पूजन में पूरे परिवार का महत्व है। कोसी भरना और दउरा इन्हें छठ पूजन के दौरान ही व्रतधारियों द्वारा किया जाता है। इसमें परिवार के ज्यादा से ज्यादा सदस्यों के शामिल होने को महत्व दिया गया है। कहा जाता है कि कोसी भराई में ज्यादा से ज्यादा हाथ... व दाउरा में ज्यादा से ज्यादा माथे शामिल होना चाहिए। ये सभी एक ही परिवार के सदस्य होते हैं। कोसी भराई में 12 से 24 तक दीपक जलाए जाते हैं इन्हें प्रज्जवलित करने ज्यादा से ज्यादा हाथ हों। नाती, पोते, बेटा-बहू, बेटी-दामाद पूरा परिवार हरा-भरा रहे इस कामना से ये पूजा की जाती है।  

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अर्घ्य और मान्यताएं

छठ पर्व बिहार, झारखंड सहित नेपाल और असम में भी मनाया जाता है। इसलिए कहीं-कहीं मान्यता है कि सूर्यदेव की दो पत्नियां हैं एक संध्या और दूसरी प्रत्यूषा। जिसकी वजह से पहला अर्घ्य संध्या अर्थात शाम के वक्त डूबते सूर्य को और दूसरा अर्घ्य प्रत्यूषा अर्थात भोर का वक्त उगते सूर्य को दिया जाता है। 

Created On :   26 Oct 2017 10:06 AM IST

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