मानव कल्याण में लगा दिया था सारा जीवन, जानें सिद्धांत

Dayanand Saraswati Jayanti: Whole life was devoted to human welfare
मानव कल्याण में लगा दिया था सारा जीवन, जानें सिद्धांत
दयानंद सरस्वती जयंती मानव कल्याण में लगा दिया था सारा जीवन, जानें सिद्धांत

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हमारे देश में कई समाज सुधारकों का जन्म हुआ है। जिन्होंने समाज के कल्याण के लिए कई काम किए हैं। इन्हीं समाज सुधारकों में से एक थे दयानंद सरस्वती। आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती ने अपना सारा जीवन मानव कल्याण, धार्मिक कुरीतियों पर रोकथाम और विश्व की एकता को बनाए रखने को लेकर समर्पित कर दिया था। उनके काम और समर्पण को याद करते हुए ही उनका जन्मदिन "महर्षि दयानंद जयंती" के रूप में मनाया जाता है। जिसे इस बार 26 फरवरी को मनाया जा रहा है।

बता दें कि दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी 1824 को गुजरात के तनकारा में हुआ था। लेकिन हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को स्वामी दयानंद सरस्वती की जयंती मनाई जाती है। 

21 साल की उम्र में त्याग
दयानंद 21 साल की उम्र में गृहस्त जीवन का त्याग कर आत्मिक और धार्मिक सत्य की तलाश में निकल गए थे। साल 1845 से लेकर 1869 तक उनका यह सफर जारी रहा। अपने इन 25 साल के वैराग्य जीवन में उन्होंने श्री विराजानंद डन्डेसा के शरण में विभिन्न प्रकार के योग गुढ़ों का भी अभ्यास किया था। 

वेद और संसकृति में भी महारथ हासिल
उन्हें वेद और संसकृति में भी महारथ हासिल थी। 7 अप्रैल 1875 को उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की। उनका मकसद था सारे विश्व को एक साथ जोड़ना। उन्होंने आर्य समाज के द्वारा 10 मूल्य सिद्धान्तों पर चलने की सलाह दी थी। स्वामी दयानंद सरस्वती मूर्ति पूजन के सख्त खिलाफ थे साथ ही वो धर्म की बनी-बनाई किसी भी परम्परा और मान्यताओं को नहीं मानते थे।

हमेशा ब्रह्मचार्य का पालन किया
आर्य समाज मूर्ति पूजा, पशुओं की बली देने, मंदिरों में चढ़ावा देने, जाति विवाह, मांस का सेवन, महिलाओं के प्रति असमानता की भावना जैसी मानसिकताओं का समर्थन नहीं करता है। दयानंद सरस्वती ने हमेशा ब्रह्मचार्य का पालन किया और इसे ईश्वर से मिलाप का सबसे प्रमाणित तरीका बताया। इसके अलावा उन्होंने महिलाओं से भेदभाव के प्रति समाज में फैली बुरी मानसिकता को भी मिटाने का प्रयास किया। 
 

Created On :   26 Feb 2022 6:16 PM IST

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