रंगभरी एकादशी जानें क्यों और कहां मनाई जाती है क्या है?

do you know about rangbhari ekadashi, where it is celebrated.
रंगभरी एकादशी जानें क्यों और कहां मनाई जाती है क्या है?
रंगभरी एकादशी जानें क्यों और कहां मनाई जाती है क्या है?

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। रंगभरी एकादशी जल्द ​​ही आने ही वाली है। इस साल यह व्रत 17 मार्च 2019 को होगा। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है। इस व्रत के प्रभाव से जातक के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। सभी सुख को भोगते हुए अंत में प्रभु के बैकुंठधाम को प्राप्त होते हैं। जिस कामना से भी यह व्रत किया जाता है, उसकी वह कामना अवश्य ही पूरी होती है। आपको बता दें कि फाल्गुन शुक्ल एकादशी को आमलकी एकादशी के रूप में भी जाना जाता है। आमलकी का मतलब आंवला होता है, इसलिए आमलकी एकादशी के दिन आंवले का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। कहा जाता है कि भगवान विष्णु को आंवला का वृक्ष प्रिय होता है। यही कारण है कि इस दिन पूजा में विष्णु जी को आंवला अर्पित किया जाता है। इस दिन पूजा में पूरी श्रद्धा भाव से पूजा करने पर विष्णुजी अपने भक्तों की कामना शीघ्र ही पूरी करते हैं।

रंगभरी एकादशी जानें क्यों और कहां मनाई जाती है?
इस दिन सुबह शीघ्र उठकर स्नान करें और शिव-पार्वती की पूजा करें। शिव-पार्वती की मूर्ति या तस्वीर पर गुलाल लगाएं। भगवान शिव की प्रिय चीज़ें चढ़ाएं। इस दिन बाबा विश्वनाथ को दूल्हे की तरह सजाया जाता है। क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव और माता पार्वती शादी के बाद पहली बार काशी आए थे। इसी खुशी में काशी में होली से पहले ही रंगों के साथ जश्न शुरू हो जाता है।

रंगभरी एकादशी के दिन काशी विश्वनाथ को अच्छे से तैयार करके घुमाया जाता है। मान्यता है आशीर्वाद देने के लिए बाबा अपने भक्तों और श्रद्धालुओं के बीच जाते हैं। कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी होता है और इसी दिन से काशी में होली की शुरुआत होती है। आपको बता दें काशी में हर साल बाबा विश्वनाथ का भव्य श्रृंगार रंगभरी एकादशी, दीवाली के बाद आने वाली अन्नकूट और महाशिवरात्रि पर किया जाता है।

शोक होता है समाप्त
कहा जाता है कि रंगभरी एकादशी से ही घरों में शुभ और मांगलिक कामों की शुरुआत हो जाती है। इसके अलावा जिन लोगों के घरों मृत्यु के कारण त्योहार रुके होते हैं। इस एकादशी से उन घरों में त्योहारों को उठाया जाता है।

कैसे मनाई जाती है रंगभरी एकादशी
बाबा विश्वनाथ की प्रमिता को अच्छे से सजाने और घुमाने के बाद इस दिन एक-दूसरे को गुलाल लगाया जाता है। शिव और पार्वती से जुड़े कई सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। खुशियों और रंगों के साथ यहां भक्त हर हर महादेव के जयकारे लगाते हैं।

कैसे करें पूजा?
काशी में ना होकर भी आप इस रंगभरी एकादशी को अपने घर पर मना सकते हैं। इसके लिए नीचे दिए गए कार्य करें।

1. सुबह उठकर नहाएं और शिव-पार्वती की पूजा करें।

2. शिव-पार्वती की मूर्ति या तस्वीर पर गुलाल लगाएं।

3. भगवान शिव को प्रिय चीज़ें जैसे बेलपत्र दूध, इत्र और भांग चढ़ाएं।

Created On :   10 March 2019 6:56 AM GMT

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story