यहां होती है रावण की आराधना, दशानन के मंदिर में लगता है भव्य मेला, आदिवासी मानते हैं देवता

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यहां होती है रावण की आराधना, दशानन के मंदिर में लगता है भव्य मेला, आदिवासी मानते हैं देवता
यहां होती है रावण की आराधना, दशानन के मंदिर में लगता है भव्य मेला, आदिवासी मानते हैं देवता

डिजिटल डेस्क, अकोला। दशहरे पर जहां बुराई पर अच्छाई की जीत मानते हुए रावण दहन किया जाता है वहीं रावण को महाज्ञानी और देवता मानकर पूजा भी की जाती है। विदर्भ के कुछ स्थान ऐसे भी हैं, जहां इन परंपराओं व मान्यताओं से हटकर विविध रूपों में रावण की पूजा की जाती है। खासकर आदिवासी बहुल इलाकों में। अकोला के सांगोला ग्राम में दशानन का मंदिर भी है।  

रावण पूजा की पुरानी परंपरा
नागपुर में कुछ इलाकों में रावण पूजा का आयोजन गोंड समुदाय द्वारा किया जाता था, लेकिन अब विभिन्न संगठन एकजुट होकर बिरसा क्रांति दल के बैनर तले भव्य रूप में रावण पूजा का आयोजन करने लगे हैं। बिरसा क्रांति दल के शहर संगठक मारोतराव कोडवते ने कहा कि गोंड समुदाय रावण को अपना आराध्य देवता मानता है। शहर में गोंड समुदाय द्वारा रावण की पूजा-अर्चना के साथ ही रावण विजय यात्रा की भी परंपरा रही है। गोंड समुदाय के भूमक (पुजारी) मंत्रोच्चार के बीच रावण की पूजा संपन्ना कराते हैं। रावण की पूजा का उद्देश्य समाज सुधार और जनजागृति है। कार्यक्रम मंे भगवान राम या अन्य किसी देवी-देवता का विरोध नहीं किया जाता। 

1983 में हुआ था गोंडी धर्म सम्मेलन 
मारोतराव कोडवते ने बताया कि सन 1983 मंे तीन दिवसीय गोंडी धर्म सम्मेलन का आयोजन अंबाझरी तालाब के पास स्थित बाबासाहब आंबेडकर सभागृह में किया गया था, जिसमें करीब डेढ़ हजार लोग पहुंचे थे। तीन दिवसीय सम्मेलन की शुरुआत सीताबर्डी स्थित आनंद टाकीज के पास से निकली रावण विजय यात्रा से हुई थी। तीन दिवसीय कार्यक्रम में रावण पूजा के अलावा समाज के उत्थान के लिए विभिन्न विषयों पर चर्चा का भी आयोजन किया गया था। हिंदू धर्म का त्याग कर हजारों लोग गोंड धर्म में शामिल हुए थे।  

अकोला: सांगोला गांव में पहली पूजा दशानन की
अकोला जिले की बालापुर तहसील के ग्राम सांगोला में दशानन की पूजा यहां के निवासियों का नित्य क्रम है। यह परम्परा यहां 200 साल से भी अधिक समय से चली आ रही है। दशहरे से पूर्व यहां पर दशानन की विशालकाय दस मुख वाली पत्थर की मूर्ति के सामने पूजा का आयोजन किया जाता है। रावण का संभवत: महाराष्ट्र में यह इकलौता मंदिर है।  

गड़चिरोली: रावण को देवता मानता है आदिवासी समाज
गड़चिरोली जिले में दशानन को पूरी श्रद्धा के साथ पूजा जाता है। जिले का आदिवासी समाज राजा रावण को अपना देवता मानता है। विशेषत: परसवाड़ी गांव में वर्ष 1991 से रावण पूजन किया जा रहा है। और वर्तमान स्थिति में जिले के सैकड़ों गांवों में दशहरे पर रावण की पूजा होती है।   गड़चिरोली जिले के छत्तीसगढ़ से सटे इलाकों के आदिवासी लोग खुद को रावण का वंशज मानते हैं। क्षेत्र के आदिवासी बंधुओं के घरों में राजा रावण की ही प्रतिमा दिखाई देती है। 

कमलापुर में पूजन व दहन दोनों, होती है कड़ी सुरक्षा
अहेरी तहसील का कमलापुर यह एकमात्र ऐसा गांव है, जहां दशहरे पर कड़ी पुलिस सुरक्षा के बीच रावण दहन और रावणपूजन किया जाता है। आदिवासी समुदाय अपने दैवता राजा रावण की पूजा करता है और अन्य लोग रावण दहन करते हैं। इसी बीच सुरक्षा के मद्देनजर  कमलापुर गांव में पुलिस का तगड़ा बंदोबस्त होता है। 

वर्धा: आईटीआई टेकड़ी के समीप रावण की महापूजा
वर्धा शहर में आईटीआई टेकड़ी के समीप हर वर्ष रावण की महापूजा का आयोजन होता है। आदिवासी समाज का मानना है कि रावण अत्यंत समृद्ध गोंडियन संस्कृति के वैभवशाली राजा थे। वर्धा जिले में संयुक्त आदिवासी कृति समिति ने आदिवासी बंधुओं से इस पूजा में भाग लेकर रावण पूजा करने और रावण दहन का विरोध करने का आह्वान किया है। 

नागपुर: बोथिया-पालोरा में 10 दिन  तक होती है राजा रावेन की पूजा 
नागपुर जिले की रामटेक तहसील के आदिवासी बहुल पवनी क्षेत्र से 3 किमी की दूरी पर स्थित बोथिया-पालोरा गांव में आदिवासी गोंड समाज द्वारा हर वर्ष की तरह इस नवरात्र में भी अपने आराध्य गोंडवाना सम्राट राजा रावेन मरावी महागोंगो की पूजा की जा रही है। यहीं पर माता जंगो दाई के नाम से कलश की स्थापना की गई है। ग्रामीणों के मुताबिक गोंडवाना सम्राट राजा रावेन महाप्रतापी,  महातपस्वी,  राजनीति विशेषज्ञ व न्यायप्रिय होने के साथ ही आयुर्वेदाचार्य, विवेकवादी व  साहित्यकार भी थे। ऐसे राजा को नायक से खलनायक बनाकर दिखाया गया है 

अमरावती: प्रकृति रक्षक के रूप में पूजा जाता है रावण को 
मेलघाट और चिखलदरा क्षेत्र के कुछ आदिवासी इलाकों समेत अमरावती शहर के कुछ हिस्सों में रावण की पूजा प्रकृति के रक्षक के रूप में की जाती है। आदिवासी नेता व बिरसा मुंडा क्रांति सेना के विदर्भ संगठक दिनेश टेकाम का मानना है कि दशहरा त्योहार पर आदिवासी समुदाय के राजा रावण के प्रतीकात्मक पुतले का दहन करने से समुदाय की भावनाओं को ठेंस पहुंचती है। आदिवासी समाज में आज भी राजा रावण की पूजा  की जाती है। मेलघाट क्षेत्र के हरिसाल, चिखलदरा तहसील में आनेवाले काटकुंभ में मेला लगता है। वहीं कोयलारी और देढ़तलई में भी राजा रावण की पूजा की जाती है।  
 

Created On :   17 Oct 2018 10:54 AM GMT

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