ध्यान साधना व मंत्र सिद्धि को प्राप्त करने योग्य आवश्यक बातें 

Essential things to achieve meditation and mantra achievement
ध्यान साधना व मंत्र सिद्धि को प्राप्त करने योग्य आवश्यक बातें 
ध्यान साधना व मंत्र सिद्धि को प्राप्त करने योग्य आवश्यक बातें 

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। आज-कल साधना की आवश्यकता क्यों है ?  साधना क्यों करें ? ऐसे कई प्रश्न हमारे मन में कई बार दौड़ते हैं। उत्तर यह ​कि साधना ईश्वरीय ज्ञान का बोध कराती है। साधना आंतरिक सुसुप्त शक्तियों को जाग्रत करती है। जिनका संबंध अंडज (ब्रम्हांड) से होता है। साधना करते समय साधक अपने अंदर स्थित जीव को "ब्रह्म -रंध्र" में स्थित कर लगभग अपनी देह से संबंध तोड़ लेता है। साधक अपने प्राण को तीसरे नेत्र (दोनों नेत्रों के ऊपर मध्य भ्रकुटी) में स्थित कर ध्यान करता है और ईश्वरत्व की ओर अग्रसर होता चला जाता है। 

साधनाहीन प्राणी का संपूर्ण जीवन क्लेशों, इन्द्रियों की चंचलता में लिप्त होता है। साधना से एकाग्रता और आत्मिक शांति और उसकी निकटता भी प्राप्त होती है। जिस ईश्वर की वह साधना कर रहा होता है।

ध्यान साधना व मंत्र सिद्धि के नियम
ध्यान साधना में द्रढ़ निश्चय, श्रद्धा और विश्वास का अत्यधिक महत्व है। मात्र परिक्षण के उद्देश्य से ध्यान साधना में बहुमूल्य समय नष्ट नहीं करना चाहिए। जिस साधना की सिद्धि प्राप्त करने जा रहे हैं उस साधना को आरंभ करने से पूर्व द्रढ़ निश्चय कर लें कि मुझे ध्यान साधना से निश्चित रूपेण सिद्धि प्राप्त करनी है। ऐसा संकल्प कर साधना आरंभ करें। ध्यान साधना में सफलता प्राप्त करने के लिए बहुत बड़ी मन की लगन की आवश्यकता होती है। साधक को कठिन तप एवं साधना करनी होती है तभी सफलता अर्जित होती है। संपूर्ण विश्वास, श्रद्धा एवं फल प्रदायक सिद्ध होती है। 

ध्यान साधक के मन में प्रधान देव या देवी के प्रति पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो कि मेरी तपस्या, मेरी साधना से देवी या देवता शीघ्र ही प्रसन्न होकर मनोवांछित फल प्रदान करेंगे। द्रढ़ संकल्प से साधक की सुसुप्त ज्ञानेन्द्रियां जाग्रत होकर ईश्वर की ओर अग्रसर होने लगती हैं। जिस देवी या देवता की साधना कर रहे हो। "लगन" का तात्पर्य होता है "अथक प्रयास" अर्थात् सिद्धि प्राप्त करने के लिए किया जाने वाला अथक प्रयास ही "लगन" कहा जाता है। और "सिद्धि" वह परम आनंद है जिसके लिए प्राचीन काल से साधु, संत, महात्मा सतत् प्रयत्न करते रहे हैं और आज भी कर रहे हैं।

प्रथम एकाग्रता ही है ध्यान साधना की महतवपूर्ण कड़ी
ध्यान साधना की मुख्य कड़ी एकाग्रता है। एकाग्रता के बिना साधना कर पाना असंभव सा हो जाता है। तो साधक को चाहिए कि सर्वप्रथम वह अपने चंचल मन को एकाग्र करें किसी स्थान पर केन्द्रित करें। यदि बारम्बार प्रयास करने पर भी मन स्थिर नहीं हो पा रहा है तो आसन की मुद्रा में बैठकर साधक अपने तीसरे नेत्र (भृकुटी) को देखने का प्रयास करें। ऐसा बार -बार करते रहें या स्थापित मूर्ति या चित्र को अंतर मुखी हो कर देखें। इधर -उधर भागने का प्रयास करते मन को बार -बार उसी स्थान पर ले आएं। धीरे -धीरे निरंतर प्रयास से एकाग्रता आने लगेगी और आप अपनी साधना में सफल होंगे।

साधना और भक्ति का झूठा प्रदर्शन न करें
साधक को अपनी साधना का प्रदर्शन कदापि नहीं करना चाहिए, क्योंकि प्रदर्शन सफलता में बाधक सिद्ध होता है। किसी भी देव या देवी की उपासना, आराधना अथवा साधना सदैव गुप्त रीति से करें। प्रदर्शन से पुण्य फल में कमी आती है। प्रदर्शन आपको मिथ्या सम्मान दे सकता है। किन्तु वास्तव में आप जिस लक्ष्य की प्राप्ति चाहते है, उससे दूर हो जाएंगे। ध्यान साधना अथवा भक्ति का प्रदर्शन न करें। साधना सिद्धि के लिए मन में सदैव कल्याण की भावना रखें। मन निश्छल हो, मन में श्रद्धा हो, विनम्र रहकर साधना करें।

ध्यान साधना के समय ब्रह्मचर्य का पालन
इन्द्रियों का भटकाव साधक की साधना में व्यवधान उत्पन्न करता है। तो सर्वप्रथम साधक अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करें अर्थात इन्द्रियों के वशीभूत न हो बल्कि इन्द्रियों को अपने वश में कर ले। इन्द्रियों को वश में करने से शक्ति का संचय होता है। जो कि साधना में परम लाभकारी सिद्ध होता है। जो व्यक्ति संयम का पालन करते हुए शक्ति का संचय करता है उसका आत्मिक, आध्यात्मिक एवं बौद्धिक विकास होता है। जो जातक ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए साधना करता है उसे शीघ्र ही अपने लक्ष्य की प्राप्ति होती है। साधना व मंत्र सिद्धि में साधक को उपरोक्त नियमों को ध्यान में रखते हुए अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होना चाहिए। साधना में सफलता साधक के हाथ में होती है।
  

Created On :   27 Dec 2018 4:21 PM IST

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