आपके सभी बिगड़े काम बना देंगे 'गजानन' के ये 108 नाम

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आपके सभी बिगड़े काम बना देंगे 'गजानन' के ये 108 नाम
आपके सभी बिगड़े काम बना देंगे 'गजानन' के ये 108 नाम

डिजिटल डेस्क,नई दिल्ली। गणेशजी के अनन्त नाम हैं। कहा जाता है कि उन्हें किसी भी नाम से पुकारो वे अपने भक्तों को निराश नहीं होने देते। बप्पा को प्रसन्न करना भी कठिन नही हैं। विधि-विधान से उनकी उपासना,सदैव ही शुभ व मंगलकारी होती है। मंगलवार, बुधवार, चतुर्थी तिथि या हो सके तो प्रतिदिन सुबह भगवान गणपति का स्मरण करते हुए उनके नामों का पाठ किया जाए तो भगवान श्रीगणेश प्रसन्न होते हैं। यहां हम आपको बप्पा के 108 नामों के बारे में बताने जा रहे हैं,जो श्रीगणेशपुराण के उपासनाखण्ड में वर्णित हैं...

 श्रीगणपति के 108 नाम  

  1. गणेश्वर—गणों के स्वामी।
  2. गणक्रीड—गणों के साथ क्रीडा करने वाले।
  3. महागणपति—महागणपति।
  4. विश्वकर्ता—सबको उत्पन्न करने वाले।
  5. विश्वमुख—सभी ओर मुख वाले।
  6. दुर्जय—अजेय।
  7. धूर्जय—जीतने को उत्सुक।
  8. जय—जय।
  9. सुरुप—सुन्दर रूप वाले।
  10. सर्वनेत्राधिवास—सबकी आंखों में बसने वाले।
  11. वीरासनाश्रय—वीरासन में विराजमान।
  12. योगाधिप—योग के अधिष्ठाता।
  13. तारकस्थ—तारकमन्त्र में निवास करने वाले।
  14. पुरुष—पुरुष।
  15. गजकर्णक—हाथी के कान वाले।
  16. चित्रांग—दीप्तिमान अंगों वाले।
  17. श्यामदशन—श्याम आभायुक्त दांत वाले।
  18. भालचन्द्र—मस्तक पर चन्द्रकला धारण करने वाले।
  19. चतुर्भुज—चार भुजाओं वाले।
  20. शम्भुतेज—शम्भु के तेज से उत्पन्न।
  21. यज्ञकाय—यज्ञस्वरूप।
  22. सर्वात्मा—सबके आत्मस्वरूप।
  23. सामबृंहित—सामवेद में गाए गए।
  24. कुलाचलांस—कुलपर्वतों के समान कन्धों वाले।
  25. व्योमनाभि—आकाश की सी नाभि वाले।
  26. कल्पद्रुमवनालय—कल्पवृक्ष के वन में रहने वाले।
  27. निम्ननाभि—गहरी नाभि वाले।
  28. स्थूलकुक्षि—मोटे पेट वाले।
  29. पीनवक्षा—चौड़ी छाती वाले।
  30. बृहद्भुज—लम्बी भुजाओं वाले।
  31. पीनस्कन्ध—चौड़े कन्धों वाले।
  32. कम्बुकण्ठ—शंख के समान कण्ठ वाले।
  33. लम्बोष्ठ—बड़े–बड़ेओठ वाले।
  34. लम्बनासिक—लम्बी नाक वाले।
  35. सर्वावयवसम्पूर्ण—सभी अंगों से परिपूर्ण।
  36. सर्वलक्षणलक्षित—सभी शुभ लक्षणों से युक्त।
  37. इक्षुचापधर—ईख के धनुष को धारण करने वाले।
  38. शूली—शूल धारण करने वाले।
  39. कान्तिकन्दलिताश्रय—शोभायमान गण्डस्थल वाले।
  40. अक्षमालाधर—अक्षमाला धारण करने वाले।
  41. ज्ञानमुद्रावान्—ज्ञानमुद्रा में स्थित।
  42. विजयावह—विजयप्रदाता।
  43. कामिनीकामनाकाममालिनीकेलिलालित—कामिनियों की कामनारूपी कामकला की क्रीडा से प्रसन्न होने वाले।
  44. अमोघसिद्धि—अमोघ सिद्धिस्वरूप।
  45. आधार—आधार स्वरूप।
  46. आधाराधेयवर्जित—जिनका कोई आधार नहीं और जो किसी पर आश्रित नहीं।
  47. इन्दीवरदलश्याम—नीलकमलपत्र के समान श्याम वर्णवाले।
  48. इन्दुमण्डलनिर्मल—चन्द्रमण्डल के समान निर्मल।
  49. कर्मसाक्षी—सभी कर्मों के साक्षी।
  50. कर्मकर्ता—सभी कर्मों की मूलशक्ति।
  51. कर्माकर्मफलप्रद—कर्म और अकर्म (पाप) का फल देने वाले।
  52. कमण्डलुधर—कमण्डलु धारण करने वाले।
  53. कल्प—नियम के स्वरूप।
  54. कपर्दी—केशसज्जायुक्त।
  55. कटिसूत्रभृत्—कमर में मेखला धारण किए हुए।
  56. कारुण्यदेह—करुणामूर्ति।
  57. कपिल—रक्त आभायुक्त।
  58. गुह्यागमनिरुपित—रहस्यमय तन्त्रों में वर्णित।
  59. गुहाशय—भक्तों के हृदय में विराजमान।
  60. गुहाब्धिस्थ—हृदयसमुद्र में स्थित।
  61. घटकुम्भ—घड़े के समान गण्डस्थल वाले।
  62. घटोदर—घड़े के समान पेट वाले।
  63. पूर्णानन्द—पूर्णानन्दस्वरूप।
  64. परानन्द—आनन्द की पराकाष्ठा।
  65. धनद—समृद्धि देने वाले।
  66. धरणीधर—पृथ्वी को धारण करने वाले।
  67. बृहत्तम—सबसे बड़े।
  68. ब्रह्मपर—परब्रह्म।
  69. ब्रह्मण्य—ब्रह्मानुवर्ती।
  70. ब्रह्मवित्प्रिय—ब्रह्मज्ञानियों के प्रिय।
  71. भव्य—सुन्दर।
  72. भूतालय—भूतसमूह के आश्रय।
  73. भोगदाता—भोग प्रदान करने वाले।
  74. महामना—जिनका हृदय विशाल है।
  75. वरेण्य—श्रेष्ठ।
  76. वामदेव—सुन्दर स्वरूप वाले।
  77. वन्द्य—वन्दन करने योग्य।
  78. वज्रनिवारण—क्लेशों से रक्षा करने वाले।
  79. विश्वकर्ता—सर्वस्रष्टा, सब कुछ करने वाले।
  80. विश्वचक्षु—सब कुछ देखने वाले।
  81. हवन—यज्ञस्वरूप।
  82. हव्यकव्यभुक्—हव्य और कव्य के भोक्ता।
  83. स्वतन्त्र—स्वाधीन।
  84. सत्यसंकल्प—संकल्पवान्।
  85. सौभाग्यवर्धन—सौभाग्य बढ़ाने वाले।
  86. कीर्तिद—कीर्ति देने वाले।
  87. शोकहारी—शोक मिटाने वाले।
  88. त्रिवर्गफलदायक—धर्म–अर्थ–काम तीनों पुरुषार्थों के प्रदाता।
  89. चतुर्बाहु—चार भुजाओं वाले।
  90. चतुर्दन्त—चार दांतों वाले।
  91. चतुर्थीतिथिसम्भव—चतुर्थी तिथि को अवतार ग्रहण करने वाले।
  92. सहस्त्रशीर्षा पुरुष—अनन्तरूप में प्रकट विराट् पुरुष।
  93. सहस्त्राक्ष—अनन्त दृष्टिसम्पन्न।
  94. सहस्त्रपात्—अनन्त गतिसम्पन्न।
  95. कामरूप—इच्छानुसार रूप ग्रहण करने वाले।
  96. कामगति—इच्छानुसार गति वाले।
  97. द्विरद—दो दांत वाले।
  98. द्वीपरक्षक—सातों द्वीपों (धरती) के रक्षक।
  99. क्षेत्राधिप—समस्त क्षेत्र के अधिष्ठाता।
  100. क्षमा–भर्ता—क्षमा धारण करने वाले।
  101. लयस्थ—गानप्रिय।
  102. लड्डुकप्रिय—जिन्हें लड्डू प्रिय हैं।
  103. प्रतिवादिमुखस्तम्भ—विरोधी का मुख बन्द कर देने वाले।
  104. दुष्टचित्तप्रसादन—चित्त के दोषों को मिटा देने वाले।
  105. भगवान्—अनन्त, छहों ऐश्वर्यसम्पन्न।
  106. भक्तिसुलभ—भक्ति द्वारा शीघ्र प्राप्त होने वाले।
  107. याज्ञिक—यज्ञप्रक्रिया के पूर्ण ज्ञाता।
  108. याजकप्रिय–जिन्हें यज्ञकर्ता प्रिय हैं।

Created On :   27 Aug 2017 6:51 AM GMT

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