है भी सचु नानक होसी भी सचु गुरु नानक जयंती विशेष

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। ""एक ओंकार सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुर प्रसादि। जपु आदि सचु जुगादि सचु। है भी सचु नानक होसी भी सचु।"" गुरू नानक देवजी का जन्म लाहौर के पास तलवंडी (ननकाना साहब) में मेहता कल्याणदास बेदी और तृप्ता देवी के घर हुआ। वह कार्तिक माह की पूर्णिमा का दिन था। माता-पिता को भी आभास नही था कि उनका बच्चा सबसे अलग है। साधु-संतों से लेकर हर धर्म के उपासक व धर्मगुरु ने उनकी प्रतिभा को माना और अद्भुत प्रतिभा को स्वीकार किया। आज 4 नवंबर 2017 को उनके अवतरण दिवस पर हम आपको गुरु नानक देवजी के संबंध में विशेष बातें बताने जा रहे हैं...
पूर्ण रुप से विरक्त होकर देश भ्रमण पर निकले
गुरू नानक देवजी ब्रम्ह को अखंड मानते थे। उनका कहना था ओंकार एक ही है। आत्मा और विचार अगर शुद्ध हैं तो फिर किसी भी तरह के आडंबर की आवश्यकता नही है। वे बचपन से ही अलग थे। एकांत उन्हें प्रिय था। युवा होने पर उन्होंने परिवार का कारोबार संभाला, शादी हुई जिसके बाद उनकी पत्नी ने दो पुत्रों को जन्म दिया, किंतु उनकी प्रवृृत्ति एकांतप्रिय थी उदासीनता के चलते पत्नी उन्हें छोड़कर दोनों बच्चों को लेकर मायके चली गई। जिसके बाद उन्होंने मोह माया को त्याग पूर्ण रुप से विरक्त होकर देश भ्रमण का निर्णय लिया।
चारों यात्राएं कही गई उदासी
वे भारत के साथ श्रीलंका, बर्मा, मक्का-मदीना, ईराक आदि स्थानों पर गए। उनकी ये चार यात्राएं ""उदासी"" के नाम से जानी गईं। वे जहां भी गए प्रेम और भक्ति का संदेश फैलाया। जिस स्थान से भी निकले उनके अनुयायी बनते गए और उनके उपदेशों का पालन करने लगे।
ईश्वर की सत्ता के विश्वासी
उनका मानना था कि गुरू के बिना ज्ञान को अर्जित नही किया जा सकता। श्रीगुरु ग्रंथ साहिब में 17 प्रतिशत उनकी ही वाणी है। उनके आध्यात्मिक विचारों को उपदेश स्वरूप आज भी माना जाता है। गुरु नानक एक ईश्वर की सत्ता के विश्वासी थे उनके अनुसार ओंकार ही अजन्मा और कालातीत है और वो भी गुरू की कृपा बगैर मिलना संभव नही। गुरू के मिलने पर संदेह, लोभ, भय सब दूर हो जाते हैं। गुरु नानक अपने जीवन के अंतिम दिनाें में करतालपुर में बस गए आैर अपने अनुयायियाें काे धर्म का पाठ पढ़ाया।
Created On :   4 Nov 2017 9:17 AM IST