राेचक प्रसंग : जब गुरू नानक देवजी ने बताया जनेऊ का महत्व, अवतरण दिवस कल

Guru Nanak Jayanti 2017 or Gurpurab on the kartik purnima nov 4
राेचक प्रसंग : जब गुरू नानक देवजी ने बताया जनेऊ का महत्व, अवतरण दिवस कल
राेचक प्रसंग : जब गुरू नानक देवजी ने बताया जनेऊ का महत्व, अवतरण दिवस कल

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कार्तिक पूर्णिमा का दिन सिख धर्म के अनुयायियों के लिए भी बेहद खास है। इस दिन सिख धर्म के संस्थापक गुरुनानक देव का भी जन्म दिवस मनाया जाता है। इसे प्रकाश पर्व के रूप में मनाते हैं। साल 2017 में प्रकाश पर्व या गुरूनानक जयंती 4 नवंबर को मनाई जाएगी। गुरु नानक बचपन से ही अलग थे। उनमें ज्ञान व अाध्यात्म जन्म के कुछ सालाें उपरांत ही दिखने लगा। एक बार जनेऊ धारण करने के दाैरान उन्होंने ब्राम्हण का हाथ पकड़ते हुए कहा अाप एेसा जनेऊ पहनाइए जाे आत्मा को बांध सके। जनेऊ धारण करना इंसान का दूसरा जन्म है लेकिन ये ताे शरीर के साथ जल जाएगा तो ये खास कैसे हुआ। इसके बाद उन्हाेंने जनेऊ धारण नहीं किया।
 

पानी पिलाना, भूखे को भोजन देना 

इस दिन विशाल आयोजन किए जाते हैं। जुलूस निकाला जाता है। पूरे देश में इस दिन को धूमधाम से मनाया जाता है। सिख धर्म में सेवा को अत्यधिक महत्व दिया जाता है। जिसकी वजह से जगह-जगह भंडारे का आयोजन होता है। प्यासे को पानी पिलाना, भूखे को भोजन देना, कोई भी व्यक्ति भूखा ना सोए। इसी दिन के लिए मुख्य रूप से तैयारियां की जाती हैं। कहा जाता है कि गुरू नानक देव ने सेवा को ही सच्चा धर्म बताया है। 

 

दिया एकता का उपदेश 

साथ ही गुरु नानक देव के उपदेशों में ये पढ़ने व जानने मिलता है कि किसी भी काम को मेहनत से ही किया जाना चाहिए। किसी भी तरह का लोभ मनुष्य को नहीं करना चाहिए। लोभ, मोह में पड़कर सच्चाई के रास्ते से नही भटकना चाहिए। मेहनत की कमाई से ही अपने परिवार का भरण-पोषण करना उर्पयुक्त होता है। 


उन्होंने कहा कि ईश्वर एक ही है इसलिए हमें सबके साथ मिलजुलकर प्रेम से रहना चाहिए। ईश्वर हर किसी में हर जगह मौजूद है। गुरूनानक देव जी ने महिलाओं के सम्मान व उन्हें बराबरी का दर्जा देने की बात भी कही है। 

 

कुदरत के सब बंदे

लद्दाख व तिब्बत में इन्हें नानक लामा भी कहा जाता है। गुरु नानक अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त सभी के गुण समेटे हुए थे।इनका जन्म रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नामक गाँव में कार्तिकी पूर्णिमा को एक खत्रीकुल में हुआ था। कुछ विद्वान इनकी जन्मतिथि 15 अप्रैल, 1469 मानते हैं। किंतु प्रचलित तिथि कार्तिक पूर्णिमा ही है, जो दिवाली के 15 दिन बाद पड़ती है। एक बार उनसे पूछा गया मुसलमान बड़ा या हिंदू तो उन्होंने जवाब दिया, अवल अल्लाह नूर उपाइया कुदरत के सब बंदे, एक नूर से सब जग उपजया को भले को मंदे । कोई बड़ा और छोटा नहीं जिसके मन में मैल नहीं, जो साफ-पाक है असल में वही नेक, सच्चा और बड़ा है।  उन्होंने पितरों और माता-पिता की सेवा करने पर भी जोर दिया है। 

  

Created On :   25 Oct 2017 10:10 AM IST

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