सिख समुदाय के पहले संस्थापक का ऐसा था जीवन, जयंती पर 10 दिन तक होते हैं आयोजन

डिजिटल डेस्क, भोपाल। कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि के दिन गुरु नानक देव जी का जन्म मनाया जाता है। इस वर्ष यह 08 नवंबर यानी कि आज मंगलवार के दिन मनाया जा रहा है। इस दिन को प्रकाश पर्व या गुरपुरब के नाम से भी जाना जाता है। गुरपुरब के दिन सुबह-सुबह से गुरुद्वारों से प्रभात फेरियां निकाली जाती हैं। साथ ही इस दिन गुरुद्वारों में विशेष रुप से सबद कीतर्न का आयोजन भी किया जाता है। आपको बता दें कि, गुरु गोविंद सिंह जी सिख समुदाय के पहले गुरु और संस्थापक थे और आज उनकी 553वीं जयंती है।
कब अवतरित हुए थे गुरु नानक
गुरु का जन्म अविभाजित भारत के तलवंडी नामक गाँव में सन् 1469 ईस्वी में कार्तिक पूर्णिमा के दिन रावी नदी के किनारे एक क्षत्रिय कुल में हुआ था। यह वर्तमान में लाहौर से 64 किलोमीटर की दूरी पर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में नाना साहिब नामक जिले में स्थित हैं। यहां हर वर्ष गुरु का जन्म दिन के अवसर पर 10 दिन तक विभिन्न कार्यक्रामों का आयोजन किया जाता है।
कैसा था गुरु का प्रारंभिक जीवन
गुरु नानकदेव जी के जन्म के समय इस क्षेत्र का नाम "रायपुर" हुआ करता था। उनके जन्म के समय राय बुलर भट्टी इस जगह के शासक हुआ करते थे। नानक जी का जन्म हिन्दू परिवार में हुआ था। उनके पिता राजा के कर्मचारी थे। क्षत्रिय कुल में जन्में नानक का विवाह बटाला की रहने वाली "सुलखनी" नामक लड़की से हुआ। सुलखनी के पिता का नाम "मूला" था।
28 वर्ष की आयु में नानक जी का एक पुत्र हुआ। जिसका नाम "श्रीचन्द" रखा गया। वहीं 31 वर्ष की आयु में नानक जी को दूसरे पुत्र की प्राप्ति "लक्ष्मीदास/लक्ष्मीचंद" के रुप में हुई। प्रारंभ में गुरु नानक के पिता उन्हें कृषि-व्यापार के क्षेत्र में शामिल करना चाहते थे लेकिन उनके सारे प्रयास परिणाम विहीन ही रहे।
कब शुरु हुई गुरु की आध्यात्मिक यात्रा
बताया जाता है कि, एक बार गुरु ने पिता की बात मान कर व्यापार का कार्य करना प्रारंभ किया। घोड़े के व्यापार से मिले पैसों को गुरु ने सेवा भाव से प्रेरित होकर साधुओं की सेवा में लगा दिया था। जब इस विषय पर गुरु से उनके पिता ने पूछा तो, उन्होंने कहा कि, संत सेवा एक सच्चा व्यापार है। इस घटना के बाद में गुरु के पिता ने उन्हें उनकी बहनोई जयराम के पास सुल्तानपुर भेज दिया था।
बहनोई के प्रयासों से गुरु को सुल्तानपुर के गवर्नर दौलत खां के यहां काम पर रख लिया गया था। जहां वह बहुत ईमानदारी से काम करते थे। जिसके कारण सुल्तानपुर के लोग और वहां के गवर्नर भी उनसे बहुत प्रभावित हुए। गुरु अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा गरीबों और साधुओ को दे दिया करते थे। वह कभी-कभी पूरी रात परमात्मा के भजन में लीन रहते थे। सुल्तानपुर में रहते हुए बाद में मरदाना से उनकी मुलाकात हुई थी, जो गुरु के सेवक के रुप में उनके साथ आखिरी समय तक रहे थे।
कैसे हुआ गुरु का परमात्मा से साक्षात्कार
रोजाना सुबह गुरु बई नदी में स्नान करने के लिए जाया करते थे। बताया जाता है कि, एक बार (रोज) जब स्नान के बाद गुरु जंगल अंतर्धान के लिए जा रहे थे। गुरु एकाएक वन में अंतर्धान हो गए। मान्यता है कि, गुरु के अंतर्धान होने पर गुरु का परमात्मा से साक्षात्कार हुआ। जिसके बाद गुरु के जीवन में बड़ा बदलाव आया और उन्होंने अपने परिवार की जिम्मेदारी अपने ससुर "मूला" को सौंप दी। जिसके बाद गुरु देव धर्म के प्रचार एवं प्रसार के मार्ग पर चल दिए और एक संत बन गए।
कहा जाता है कि, गुरु की आध्यात्मिक रुचियों को सबसे पहले उनकी बहन नानकी और राय बुलर भट्टी ने ही पहचाना था। तलवंडी के शासक तात्कालीक शासक राय बुलर ने तलवंडी शहर के पास 20 हजार एकड़ जमीन गुरु नानकदेव को उपहार स्वरुप दी थी। वर्तमान में इसी क्षेत्र को "ननकाना साहिब" के नाम से जाना जाता है।
वर्तमान में यह पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित हैं। ननकाना साहिब के आसपास "गुरुद्वारा जन्मस्थान" सहित नौ गुरुद्वारे हैं। आपको बता दे कि, ये सभी गुरुद्वारे गुरु नानकदेव जी के जीवन के महत्त्वपूर्ण घटनाओं से संबंधित हैं। जिस स्थान पर नानकजी को पढ़ने के लिए पाठशाला भेजा गया था। वह आज पट्टी साहिब गुरुद्वारा के नाम से शोभायमान है।
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Created On :   8 Nov 2022 11:53 AM IST