श्रेष्ठ संतान और पुत्रों की दीर्घायु के लिए रखा जाता है व्रत, जानें कब है 'हलषष्ठी'

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता (बड़े भाई ) के रूप में जन्में बलराम का जन्मदिवस जन्माष्टमी के पूर्व मनाया जाता है। जिसे हम हलक्षठ या हल षष्ठी के नाम से जानते हैं। उत्तम व श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति, पुत्रों के दीर्घायु और सुख-सौभाग्य की कामना के लिए भाद्रपद कृष्ण षष्ठी तिथि को हलछठ व्रत-पूजा का विधान है। इस बार यह 13 अगस्त 2017 को मनाया जाएगा।
हलछठ उत्तरभारत में जोर-शोर से हर साल ही मनाया जाता है। इसे बलराम जयंती, ललई छठ या बलदेव छठ के नाम से भी जाना जाता है।
देवकी ने किया था
मान्यता है कि द्वापर युग में माता देवकी ने कलछठ का व्रत किया था, क्योंकि खुद को बचाने के लिए मथुरा का राजा कंस देवकी की सभी संतानों का वध कर रहा था। देवर्षि नारद ने देवकी को हल षष्ठी व्रत करने की सलाह दी थी। बलराम का जन्म वासुदेव की पहली पत्नी रोहिणी के गर्भ से होता है।
शेषनाग के अवतार
शास्त्रों के अनुसार बलराम भगवान विष्णु की शैया के रूप में विराजमान शेषनाग के अवतार हैं। इस दिन ब्रज, मथुरा समेत समस्त बलदेव मंदिरों में धूमधाम से बलराम जयंती मनाई जाती है।
ये भी है मान्यता
- इस दिन हल की पूजा की जाती है। हलछठ का व्रत करने वालों के बीच मान्यता है कि इस दिन ग्रामीण क्षेत्र में महिलाएं खेतों में पैर नहीं रखती है।
- व्रत करने वाले के लिए इस दिन गाय के दूध और दही का सेवन करना वर्जित माना गया है।
- इस दिन हल से जुता हुआ अन्न नहीं खाया जाता है।
- इस दिन वृक्ष पर लगे खाद्यान्न खाए जाते हैं।
- माना जाता है कि इस दिन व्रत करने वालों को महुए की दातून करना चाहिए।


Created On :   12 Aug 2017 8:11 AM IST