''कालभैरव'' जयंती आज, मध्यरात्रि का मुहूर्त, इस विधि से स्वीकार होती है पूजा

डिजिटल डेस्क, भोपाल। कालभैरव जयंती इस वर्ष शुक्रवार 10 नवंबर को मनाई जा रही है। शिव के अवतार कालभैरव की पूजा करना अत्यंत ही कठिन है। हालांकि सामान्य रूप से भक्त इनकी पूजा कर इन्हें कालभैरव का अशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। कालभैरव अष्टमी को कालाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन इन्हें प्रसन्न करने के लिए तांत्रिक पूजा भी की जाती है। यहां हम आपको कालभैरव पूजा की विधि और उन्हें प्रसन्न करने के सलर उपाय बताने जा रहे हैं...
-दिन में व्रत रखकर रात्रि में जागरण करना चाहिए। अष्टमी के अवसर पर विशेष रूप से भैरवनाथ की षोड्षोपचार सहित पूजा करें।
-कालभैरव शिव का ही रूप हैं अतः शिव और माता शक्ति की आराधना भी इन्हें प्रसन्न करने वाली बतायी गई है।
-पूजन अवसर पर कालभैरव के जन्म की कथा का श्रवण करें।
-मध्यरात्रि अर्थात आधीरात को शंख बजाएं साथ ही नगाड़ा, घंटे घड़ियाल बजाकर कालभैरव से प्रार्थना करें और अपनी पूजा स्वीकारने का निवेदन करें।
-कालभैरव का वाहन श्वान है इनके हाथ में दंड है। जिसकी वजह से ही इन्हें दंडाधिपति कहा जाता है। श्वान इनका वाहन है। इसलिए श्वान को भोजन कराएं। यह भी स्मरण रखें कि श्वान कालभैरव की सवारी है। इसलिए इसे कभी भी पैर से नही मारना चाहिए।
-बहुत से स्थानों पर लोग इस दिन पवित्र नदी में पितरों का श्राद्ध व तर्पण कर भैरव की पूजा व व्रत करते हैं। मान्यता है कि इससे सभी विघ्नों का नाश होता है एवं भटकते हुए पितर भी अपने धाम को गमन करते हैं।
-कालभैरव की पूजा भय का नाश करने वाली बतायी गई है। इनके पूजन ने तंत्र-मंत्र का असर विफल होता है एवं किसी भी तरह से भूत-पिशाच का भय नही रहता।
-इस दिन भैरव तंत्रोक्त के साथ ही बटुक भैरव कवच, कालभैरव स्रतोत्र का पाठ कर कालभैरव के विभिन्न नामों का जाप कर उनसे अपनी पूजा स्वीकारने की प्रार्थना करना चाहिए।
शुभ मुहूर्त
शुक्रवार 10 नवंबर को 2.50 के पश्चात मध्यांह व्यापिनी अष्टमी तिथि प्रारंभ हो रही है। ये अगले दिन 11 नवंबर शनिवार दोपहर 1.31 बजे तक रहेगी। जिससे यदि रात्रिकाल में भी पूजन किया जा सकता है। इस दौरान राहू की शांति के लिए जाप करना भी श्रेष्ठ बताया जा रहा है।

Created On :   9 Nov 2017 10:29 AM IST