सहम जाएगा काल, इस भैरव मंत्र से शांत होंगे, शनि, मंगल, राहू

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मार्गशीर्ष कृष्णाष्टमी की दोपहर भगवान शंकर के अंश कालभैरव की उत्पत्ति हुई थी। इसलिए दोपहर में इनके पूजन का अत्यधिक महत्व है। हालांकि इस बार शुक्रवार 10 नवंबर को 2.50 के पश्चात मध्यांह व्यापिनी अष्टमी तिथि प्रारंभ हो रही है। जो अगले दिन 11 नवंबर शनिवार दोपहर 1.31 बजे तक रहेगी। जिसकी वजह से पूजन रात्रिकाल में भी किया जा सकता है।
दुष्ट और बुरी शक्तियों का नाश
कालाष्टमी पर कालभैरव का पूजन सभी दुष्ट और बुरी शक्तियों का नाश करने वाला बताया गया है। दुष्ट ग्रह भी उचित मुहूर्त में पूजन से शांत किए जा सकते हैं। इस दिन शुक्ल योग में पूजन से राहू को भी शांत किया जा सकता है। इनसे काल भी सहमा रहता है इसलिए इन्हें कालभैरव कहा जाता है। शिव पुराण में इन्हें भयानक व पोषक दोनों ही बताया गया है।
चालीस दिन तक हर रोज 108 बार जाप
जो भी जातक शनि की साढ़े साती, शनि, मंगल, राहू आदि से पीड़ित हों तो उन्हें भैरव अष्टमी अथवा किसी माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी से बटुक भैरव के मूल मंत्र की माला का जाप चालीस दिन तक हर रोज 108 बार करें। भैरव चालीसा भी पढ़ना उर्पयुक्त रहेगा। इसके साथ ही इन मंत्रों का जाप करें...
ऊं भैरवाय नम:
ऊं ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं।
शनि का प्रकोप शांत तथा शत्रु का नाश
कालभैरव की पूजा से कोर्ट-कचहरी, मुकद्मों से मुक्ति मिलती है। शनि का प्रकोप शांत तथा शत्रु का नाश होता है। ऐसी भी मान्यता है कि भैरव अष्टमी पर जो भी जातक पूरी श्रद्धा एवं विधि-विधान से काल भैरव का पूजन करता है। उसके जीवन से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इस दिन शिव की कृपा भी भैरव के साथ ही प्राप्त होती है। कालभैरव को काशी का काेतवाल व महाकाल का सेनापति कहा जाता है। अर्थात इनके हाेते कोई दुष्ट शक्ति नगर में प्रवेश नही कर सकती। इनके पूजन के बगैर काशी में शिव का पूजन पूर्ण नही माना जाता।
Created On :   10 Nov 2017 8:32 AM IST