10 नवंबर को काल भैरव जयंती, इस पूजा विधि से दूर रहेंगी बुरी शक्तियां

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हर साल मार्गशीर्ष के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कालभैरव जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष यह 10 नवंबर शुक्रवार को मनाई जा रही है। इसे कालाष्टमी, कालभैरव अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि भगवान शिव ने इसी दिन अपने इस रूप को प्रकट किया था। इनके पूजन से तंत्र-मंत्र, भूत पिशाच और बुरी आत्मओं का डर नही रहता। इनका पूजन विधान अत्यंत कठिन होता है।
प्रचलित है ये पौराणिक कथा
काल भैरव शिव का ही रुप हैं। इन्हें लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है। जिसके अनुसार एक बार शिव और भगवान विष्णु में श्रेष्ठता को लेकर विवाद हो गया, जिसके बाद संतों और साधुओं की सभा बुलाई गई। इसमें ब्रम्हदेव भी थे। सभी ने सृष्टि के संचालन के लिए शिव, विष्णु और ब्रम्हा को समान बताया। भगवान विष्णु ने ये बात स्वीकार कर ली, किंतु ब्रम्हदेव ने शिव का अपमान किया। जिससे क्रोधित होकर ही भगवान शिव से ही काल भैरव का रुप प्रकट हुआ। वाराणासी और उज्जैन के मंदिर में काल भैरव पूजन की भव्यता सबसे अलग ही देखने मिलती है।
प्रिय हैं ये वस्तुएं
इस दिन दान का अत्यधिक महत्व है। काले तिल, सुगंधित धूप, पुए, पापड़, उड़द से बने पकवान उन्हें प्रिय हैं। उड़द के पकौड़े पापड़ और जलेबी का भोग लगाने से वे प्रसन्न होते हैं और जीवन के सभी कष्टे दूर होते हैं। बुरी शक्तियां मनुष्य को परेशान नहीं कर सकतीं। शत्रु बाधा का निवारण एवं रोग, दुख, दरिद्रता से मुक्ति मिलती है।
प्रचण्ड है इनका स्वरुप
वे श्वान पर सवार एवं हाथ में दण्ड लिए हुए हैं। हाथ में दंड होने के कारण वे दंडाधिपति कहे गए। इसलिए इस दिन उनके वाहन अर्थात श्वान को गुड़ खिलाने और भोजन कराने से भी कष्ट दूर होते हैं। इनका रूप अत्यंत प्रचण्ड एवं रौद्र है। इन्हें काशी का कोतवाल भी माना जाता है।
Created On :   5 Nov 2017 10:45 AM IST