साधु-संतों का मेला, ब्रम्ह सरोवर में शाही स्नान के बाद महास्नान आज

डिजिटल डेस्क, पुष्कर। शाही स्नान के बाद कार्तिक पूर्णिमा पर महास्नान करने बड़ी संख्या में साधु संत ब्रम्ह सराेवर पहुंचे। वहीं श्रद्धालुअों की संख्या भी कम नही रही। ब्रम्ह सराेवर या झील में स्नान कर ब्रम्हदेव के दर्शन करने से सालभर के पाप नष्ट हाे जाते हैं। महास्नान के साथ ही कार्तिक पंचतीर्थ स्नान और प्रसिद्ध पुष्कर मेला संपन्न हो जाएगा। कार्तिक माह की एकादशी से पूर्णिमा तक यहां पुष्कर मेले के साथ ही ब्रम्ह स्नान व ब्रम्हदेव के दर्शन करने बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं।
साधु संतों का शाही स्नान
कार्तिक एकादशी से पूर्णिमा तक जगत पिता ब्रम्हदेव ने पांच दिनों तक जिस स्थान पर यज्ञ किया था वह है पुष्कर। सृष्टि के कुशल संचालन और कल्याण के लिए इस यज्ञ के स्थान का चयन उन्होंने कमल पुष्प गिराकर किया था। पांच दिनों तक ब्रम्हदेव पुष्कर में ही यज्ञ करते रहे और उनके साथ मौजूद रहे 33 करोड़ देवी-देवता। मान्यता है कि आज भी यहां पांच दिनों तक 33 करोड़ देवी-देवता ब्रम्हदेव सहित निवास करते हैं। इसी वजह से इसे पंचतीर्थ, तीर्थ राज और तीर्थ नगरी भी कहा जाता है। 3 नवंबर को ब्रम्ह चतुर्दशी के दिन साधु-संत दूर-दूर से यहां ब्रम्ह शाही स्नान के लिए पहुंचते हैं। वहीं पूर्णिमा के दिन महास्नान पर यहां मेला आैर माहाैल अलग ही होता है। 4 नवंबर को भाेर से पहले ही सराेवर तट पर साधु संत व श्रद्धालु पहुंच गए थे।
अक्षय फल की प्राप्ति और तीर्थ यात्राओं का पुण्य
इन पांच दिनों के लिए तीर्थ नगरी में श्रद्धालुओं का मेला लगता है। कार्तिक पूर्णिमा पर यहां स्नान करने से 33 करोड़ देवी-देवताओं के आशीर्वाद के साथ ही अक्षय फल प्राप्त होता है। कई तीर्थ यात्राओं का पुण्य भी एक साथ यहां प्राप्त हो जाता है।
ब्रम्हदेव को अर्पित करें ब्रम्हकमल
कार्तिक पूर्णिमा पर ब्रम्ह मुहूर्त में ब्रम्हाजी द्वारा रचित सरोवर में स्नान के महत्व का अनुमान यहां पहुंचने वाले संतों के जमघट से लगाया जा सकता है। कार्तिक माह में पुष्कर में लगने वाले धार्मिक मेले का महत्व युगों से माना जाता है। पूर्णिमा पर ब्रम्ह सरोवर में स्नान के बाद ब्रम्हदेव को ब्रम्ह कमल अर्पित करना अति पुण्यकारी बताया गया है।
ऐसी मान्यता है कि इससे सालभर किए गए पाप कट जाते हैं एवं ब्रम्हदेव प्रसन्न होकर सुखी जीवन का वरदान प्रदान करते हैं। ऐसी भी मान्यता है कि यह यज्ञ पांच दिनाें तक दिन रात चला था, इसलिए यहां पांच दिनाें तक हवा में भी देवों का का निवास हाेता है।
यहां रेत के विशाल मैदानाें पर विशाल पशु मेला भी लगता है। जहां बड़ी संख्या में ऊंट अाते हैं। मेले के अाकर्षण की वजह से यहां विदेशी टूरिस्ट भी हर साल पहुंचते हैं।
Created On :   3 Nov 2017 9:09 AM IST