जानिए ग्रहों के प्रभाव से उत्पन्न होने वाले रोगों को कैसे करें दूर 

Know how to overcome diseases caused by the planets
जानिए ग्रहों के प्रभाव से उत्पन्न होने वाले रोगों को कैसे करें दूर 
जानिए ग्रहों के प्रभाव से उत्पन्न होने वाले रोगों को कैसे करें दूर 

डिजिटल डेस्क, भोपाल। जन्म कुंडली में स्थित ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव के कारण रोग उत्पन्न हो जाते हैं। इन रोगों को दूर कर हम अपने जीवन को सफल कर सकते हैं। आज हम आपको ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार ग्रह दोष से उत्पन्न रोग और उसके निवारण तथा किस ग्रह के क्या नकारात्मक प्रभाव हैं और साथ ही उक्त ग्रहदोष से मुक्ति के लिए क्या उपाय किए जाएं, इसके बारे में बताएंगे।

 


1. सूर्य: सूर्य पिता, आत्मा समाज में मान, सम्मान, यश, कीर्ति, प्रसिद्धि, प्रतिष्ठा का कारक होता है। इसकी राशि है सिंह। कुंडली में सूर्य के अशुभ होने पर पेट, आंख, हृदय का रोग हो सकता है साथ ही सरकारी कार्य में बाधा उत्पन्न होती है। इसके लक्षण यह हैं कि मुँह में बार-बार बलगम इकट्ठा हो जाता है, सामाजिक हानि, अपयश, मन का दुखी या असंतुष्ट होना, पिता से विवाद या वैचारिक मतभेद सूर्य से पीड़ित होने के सूचक हैं।

उपाय: भगवान राम की आराधना करें। आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें। सूर्य को अर्घ्य दें। गायत्री मंत्र का जाप करें। तांबा, गेहूं एवं गुड़ का दान करें। प्रत्येक कार्य का प्रारंभ मीठा खाकर करें। तांबे के एक टुकड़े को काटकर उसके दो भाग करें। एक को पानी में बहा दें तथा दूसरे को जीवन भर साथ रखें। 

"ॐ रं रवये नमः" या "ॐ घृणी सूर्याय नमः" मंत्र का जप रोज 108 बार करें।

 


2. चंद्र: चन्द्रमा मां का सूचक है और मन का कारक है। इसकी कर्क राशि है। कुंडली में चंद्र अशुभ होने पर माता को किसी भी प्रकार का कष्ट या स्वास्थ्य को खतरा होता है, दूध देने वाले पशु की मृत्यु हो जाती है। स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है। घर में पानी की कमी आ जाती है या नलकूप, कुएं आदि सूख जाते हैं मानसिक तनाव, मन में घबराहट, तरह तरह की शंका, मन में आती हैं, मन में अनिश्चित भय व शंका रहती है और सर्दी बनी रहती है। व्यक्ति के मन में आत्महत्या करने के विचार बार-बार आते रहते हैं।

उपाय: सोमवार का व्रत करना, माता की सेवा करना, शिव की आराधना करना, मोती धारण करना, दो मोती या दो चांदी के टुकड़े लेकर एक टुकड़ा पानी में बहा दें तथा दूसरे को अपने पास रखें। कुंडली के छठवें भाव में चंद्र हो तो दूध या पानी का दान करना मना है। यदि चंद्र बारहवां हो तो धर्मात्मा या साधु को भोजन न कराएं और ना ही दूध पिलाएं। सोमवार को सफेद वस्तु जैसे दही, चीनी, चावल, सफेद वस्त्र, 1 जोड़ा जनेऊ, दक्षिणा के साथ दान करना चाहिए। 

"ॐ सोम सोमाय नमः" मन्त्र का 108 बार नित्य जाप करना श्रेयस्कर होता है।

 


3. मंगल: मंगल सेनापति होता है, भाई का कारक और रक्त का भी कारक माना गया है। इसकी मेष और वृश्चिक राशि है। कुंडली में मंगल के अशुभ होने पर भाई, पटीदारों से विवाद, रक्त सम्बन्धी समस्या, नेत्र रोग, उच्च रक्तचाप, क्रोधित होना, उत्तेजित होना, वात रोग और गठिया हो जाता है। रक्त की कमी या खराबी वाला रोग हो जाता। व्यक्ति क्रोधी स्वभाव का हो जाता है। मान्यता यह भी है कि बच्चे जन्म होकर मर जाते हैं।

उपाय: तांबा, गेहूं एवं गुड़, लाल कपड़ा, माचिस का दान करें। तंदूर की मीठी रोटी दान करें। बहते पानी में रेवड़ी व बताशा बहाएं, मसूर की दाल दान में दें। हनुमद आराधना करना, हनुमान जी को चोला अर्पित करना, हनुमान मंदिर में ध्वजा दान करना, बंदरों को चने खिलाना, हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमानाष्टक, सुंदरकांड का पाठ करना चाहिए। 

"ॐ अं अंगारकाय नमः" मंत्र का 108 बार नित्य जाप करना श्रेयस्कर होता है।

 


4. बुध: बुध व्यापार व स्वास्थ्य का करक माना गया है। यह मिथुन और कन्या राशि का स्वामी है। बुध वाणी, वाक कला का भी द्योतक है। विद्या और बुद्धि का सूचक है। कुंडली में बुध की अशुभता पर दांत कमजोर हो जाते हैं। सूंघने की शक्ति कम हो जाती है। गुप्त रोग हो सकता है। व्यक्ति वाक क्षमता, वाणी भी जा सकती है। नौकरी और व्यवसाय में धोखा और नुकसान हो सकता है।

उपाय: भगवान गणेश व मां दुर्गा की आराधना करें। गौ सेवा करें। काले कुत्ते को इमरती देना लाभकारी होता है। नाक छिदवाएं। तांबे की प्लेट में छेद करके बहते पानी में बहाएं। अपने भोजन में से एक हिस्सा गाय को, एक हिस्सा कुत्तों को और एक हिस्सा कौवे को दें, या अपने हाथ से गाय को हरा चारा, हरा साग खिलाएं। उड़द की दाल का सेवन करें व दान करें। बालिकाओं को भोजन कराएं। किन्नरों को हरी साड़ी, सुहाग सामग्री दान देना भी बहुत चमत्कारी है। पन्ना धारण करें या हरे वस्त्र धारण करें यदि संभव न हो तो हरा रुमाल साथ रखें। 

"ॐ बुं बुद्धाय नमः" मन्त्र का 108 बार नित्य जाप करना श्रेयस्कर होता है आथवा गणेशथर्वशीर्ष का पाठ करें।

 


5. गुरु: बृहस्पति की भी दो राशियां हैं धनु और मीन। कुंडली में गुरु के अशुभ प्रभाव में आने पर सिर के बाल झड़ने लगते हैं। परिवार में बिना बात तनाव, कलह-क्लेश का माहोल होता है। सोना खो जाता है या चोरी हो जाता है। आर्थिक समस्या या धन का अचानक व्यय, खर्च सम्भलता नहीं, शिक्षा में बाधा आती है। अपयश झेलना पड़ता है। वाणी पर संयम नहीं रहता।

उपाय: ब्राह्मण का यथोचित सम्मान करें। माथे या नाभी पर केसर का तिलक लगाएं। कलाई में पीला रेशमी धागा बांधे। संभव हो तो पुखराज धारण करें अन्यथा पीले वस्त्र या हल्दी की गांठ साथ रखें। कोई भी अच्छा कार्य करने के पूर्व अपनी नाक साफ करें। दान में हल्दी, दाल, पीतल का पात्र, कोई धार्मिक पुस्तक, 1 जोड़ा जनेऊ, पीले वस्त्र, केला, केसर,पीले मिष्ठान, दक्षिणा आदि दें। विष्णु आराधना करें।  

"ॐ ब्रीं बृहस्पतये नमः" मन्त्र का 108 बार नित्य जाप करना श्रेयस्कर होता है।

 


6. शुक्र: शुक्र भी दो राशियों का स्वामी है, वृषभ और तुला। शुक्र तरुण है, किशोरावस्था का सूचक है, मौज-मस्ती, घूमना फिरना, दोस्त मित्र इसके प्रमुख लक्षण हैं। कुंडली में शुक्र के अशुभ प्रभाव में होने पर मन में चंचलता रहती है, एकाग्रता नहीं हो पाती। खान-पान में अरुचि, भोग विलास में रूचि और धन का नाश होता है। अंगूठे का रोग हो जाता है। अंगूठे में दर्द बना रहता है। चलते समय अंगूठे को चोट पहुंच सकती है। चर्म रोग हो जाता है। स्वप्न दोष की समस्या हो जाती है।

उपाय: मां लक्ष्मी की सेवा आराधना करें। श्री सूक्त का पाठ करें। मावे के मिष्ठान या मिश्री का भोग लगाएं। ब्राह्मण ब्रह्मणि की सेवा करें। स्वयं के भोजन में से गाय को प्रतिदिन कुछ हिस्सा अवश्य दें। कन्या भोजन कराएं। ज्वार दान करें। गरीब बच्चों व विद्यार्थियों में अध्यन सामग्री का वितरण करें। यदि सक्षम है तो नि:सहाय, निराश्रय के पालन-पोषण की जिम्मेदारी ले सकते हैं। अन्न का दान करें।  

"ॐ सुं शुक्राय नमः" मंत्र का 108 बार नित्य जाप करना भी लाभकारी सिद्ध होता है।

 


7. शनि: शनि की गति धीमी है। इसके दूषित होने पर अच्छे से अच्छे काम में गतिहीनता आ जाती है। कुंडली में शनि के अशुभ प्रभाव में होने पर मकान या मकान का हिस्सा गिर जाता है या क्षतिग्रस्त हो जाता है। अंगों के बाल झड़ जाते हैं। शनिदेव की भी दो राशिया हैं, मकर और कुम्भ। शरीर में विशेषकर निचले हिस्से में (कमर से नीचे) हड्डी या स्नायुतंत्र से संबंधित रोग लग जाते हैं। वाहन से हानि या क्षति होती है। काले धन या संपत्ति का नाश हो जाता है। अचानक आग लग सकती है या दुर्घटना हो सकती है।

उपाय: हनुमन जी की आराधना करना, हनुमान जी को चोला अर्पित करना, हनुमान मंदिर में ध्वजा दान करना, बंदरों को चने खिलाना, हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमानाष्टक, सुंदरकांड का पाठ करना चाहिए। नाव की कील या काले घोड़े की नाल धारण करें। यदि कुंडली में शनि लग्न में हो तो भिखारी को तांबे का सिक्का या बर्तन कभी न दें यदि देंगे तो पुत्र को कष्ट होगा। यदि शनि आयु भाव में स्थित हो तो धर्मशाला आदि न बनवाएं। कौवे को प्रतिदिन रोटी खिलाएं। तेल में अपना मुख देखकर उस तेल का छाया दान करें। लोहा, काली उड़द, कोयला, तिल, जौ, काले वस्त्र, चमड़ा, काला सरसों आदि का दान करं। 

"ॐ हनु हनुमते नमः" मन्त्र का 108 बार नित्य जाप करना श्रेयस्कर होता है।

 


8. राहु: मानसिक तनाव, आर्थिक नुकसान, स्वयं को लेकर गलतफहमी, आपसी तालमेल में कमी, बात बात पर आपा खोना, वाणी का कठोर होना व आपशब्द बोलना, व कुंडली में राहु के अशुभ होने पर हाथ के नाखून अपने आप टूटने लगते हैं। राजक्ष्यमा रोग के लक्षण होते हैं। वाहन दुर्घटना, उदर कष्ट, मस्तिष्क में पीड़ा आथवा दर्द रहना, भोजन में बाल दिखना, अपयश की प्राप्ति, संबंध खराब होना, दिमागी संतुलन ठीक नहीं रहता है, शत्रुओं से मुश्किलें बढ़ने की संभावना रहती है। जल स्थान में कोई न कोई समस्या आना आदि।

उपाय: गोमेद धारण करें। दुर्गा, शिव व हनुमान की आराधना करें। तिल, जौ किसी हनुमान मंदिर में या किसी यज्ञ स्थान पर दान करें। जौ या अनाज को दूध में धोकर बहते पानी में बहाएं, कोयले को पानी में बहाएं, मूली दान में दे, भंगी को शराब दान दें। सिर में चोटी बांधकर रखें। सोते समय सिर के पास किसी पात्र में जल भरकर रखें और सुबह किसी पेड़ में डाल दें, यह प्रयोग हर दिन करें। इसके साथ हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमानाष्टक, हनुमान बाहुक, सुंदरकांड का पाठ करें।  

"ॐ रं राहवे नमः" मन्त्र का 108 बार नित्य जाप करना लाभकारी होता है।

 


9. केतु: कुंडली में केतु के अशुभ प्रभाव में होने पर चर्म रोग, मानसिक तनाव, आर्थिक नुकसान, स्वयं को लेकर गलतफहमी, आपसी तालमेल में कमी, बात-बात पर आपा खोना, वाणी का कठोर होना व अपशब्द बोलना, जोड़ों का रोग या मूत्र एवं किडनी संबंधी रोग हो जाता है। संतान को पीड़ा होती है। वाहन दुर्घटना, उदर कष्ट, मस्तिष्क में पीड़ा आथवा दर्द रहना, अपयश की प्राप्ति, संबंध खराब होना, दिमागी संतुलन ठीक ना रहना, शत्रुओं से विवाद बढ़ने की संभावना रहती है।

उपाय: दुर्गा, शिव व हनुमान की आराधना करें। तिल, जौ किसी हनुमान मंदिर में या किसी यज्ञ स्थान पर दान करें। कान छिदवाएं। सोते समय सर के पास किसी पात्र में जल भरकर रखें और सुबह किसी पेड़ में डाल दें। इसके साथ हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमानाष्टक, हनुमान बाहुक, सुंदरकांड का पाठ करें। अपने खाने में से कुत्ते, कौए को हिस्सा दें। सफेद तिल दान में दें। पक्षियों को बाजरा दें। चीटियों के लिए भोजन की व्यस्था करना अति महत्वपूर्ण है। 
"ॐ कें केतवे नमः" मंत्र का 108 बार नित्य जाप करना लाभकारी होता है। 

Created On :   13 Jun 2018 4:35 PM IST

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