महावीर जयंती : राजकुमार वर्धमान के तीर्थंकर बनने की कहानी

महावीर जयंती : राजकुमार वर्धमान के तीर्थंकर बनने की कहानी

डिजिटल डेस्क, भोपाल। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को महावीर जयंती मनाई जाती है। इस बार यह तिथि 29 मार्च को है। भगवान महावीर जैन समुदाय के 24वें तीर्थंकर थे। बचपन में इन्हें वर्धमान के नाम से पुकारा जाता था। इन्होंने जैन धर्म की खोज के साथ ही इसके प्रमुख सिद्धांतों को स्थापित किया। यह उत्सव जैन समुदाय के लिए अत्यंत आवश्यक और महत्वपूर्ण है। 
 

ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह तिथि हर वर्ष मार्च या अप्रैल में आती है। यह दिन पूरे देशभर के जैन मंदिरों में बड़े ही जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन सभी जैन मंदिरों को भव्य रूप से सजाया जाता है। इस दिन भगवान महावीर की प्रतिमा को पारंपरिक स्नान कराया जाता है और इसके बाद भव्य जुलूस, शोभायात्राएं निकाली जाती हैं। जैन मुनियों के द्वारा इस दिन जैन धर्म के सिद्धांतों को लोगों तक पहुंचाने के लिए मंदिरों में प्रवचन देते हैं। इस दिन गरीबों को कपड़े और जरूरत का सामान भी वितरित करने की परंपरा है।
 

कौन थे महावीर स्वामी ?

महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें और आखिरी तीर्थंकार थे। जिन्होंने 540 ईस्वी पूर्व भारत में बिहार के एक राजसी परिवार में जन्म लिया था। यह राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के पुत्र थे। इनके जन्म के समय सभी लोग खुश और समृद्ध थे, इस वजह से इनका नाम वर्धमान रखा गया। माना जाता है कि, उनके जन्म के समय से ही इनकी माता को इनके बारे में अद्भुत सपने आने शुरु हो गए थे कि, ये सम्राट बनेगें या फिर तीर्थंकर। इनके जन्म के बाद इन्द्रदेव ने इन्हें स्वर्ग के दूध से तीर्थंकर के रुप में अनुष्ठान पूर्वक स्नान कराया था।
 

स्वामी महावीर ने 30 वर्ष की उम्र में धार्मिक जागरुकता की खोज में घर त्याग दिया था और 12 साल 6 महीने के गहरे ध्यान से इन्हें ज्ञान प्राप्त करने में सफलता हासिल हुई थी। जिसके बाद इन्होंने पूरे भारत वर्ष में यात्रा करना शुरु कर दिया और लोगों को सत्य, असत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह की शिक्षा देते हुए 30 वर्षों तक लगातार यात्रा की। 72 वर्ष की उम्र में इन्होंने निर्वाण को प्राप्त किया और जैन धर्म के महान तीर्थंकरों में से एक बन गए, जिसके कारण इन्हें जैन धर्म का संस्थापक माना जाता है।

Created On :   27 March 2018 8:56 PM IST

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