गंडमूल नक्षत्र में जन्मे लोगों को करने चाहिए ये उपाए
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। ज्योतिष में 27 नक्षत्रों का उल्लेख किया गया है। इन नक्षत्रों में से कुछ नक्षत्र बहुत शुभ होते हैं और कुछ नक्षत्र ऐसे होते हैं जिन्हें गंडमूल नक्षत्र अर्थात अशुभ नक्षत्र कहा जाता है। अशुभ नक्षत्र अपना बुरा प्रभाव दिखाते हैं और शुभ नक्षत्र शुभ। मान्यता ऐसी भी है कि जो भी व्यक्ति इस नक्षत्र में जन्म लेता है उसका जीवन बाधाओं और परेशानियों से घिरा रहता है। इस दोष को गंड मूल दोष कहा जाता है। यह दोष हर 18वीं कुंडली में होता है।
मान्यताओं के अनुसार गंड मूल में जन्में लोगों के जन्म से लेकर 27 दिनों तक उसके पिता को उसका चेहरा नहीं देखना चाहिए। यह दोष पिता के जीवन में परेशानियां पैदा करने में पूर्ण रूप से सक्षम होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार समस्याओं की जानकारी पता की जा सकती है तो उन समस्याओं का समाधान भी इस शास्त्र के द्वारा किए जा सकते हैं।
चार- चरण
गंड मूल नक्षत्र के दोष को शांत करने से पहले यह पता करना आवश्यक है कि यह दोष क्या हैं और इसके दुष्प्रभाव क्या हो सकते हैं। गंड मूल नक्षत्रों की श्रेणी में 1-अश्वनी, 2-मघा, 3-ज्येष्ठा, 4-रेवती, 5-अश्लेषा,और 6-मूल आदि आते हैं। इन सभी नक्षत्रों के चार-चार चरण होते हैं और इन चरणों के अनुसार जातक के माता, पिता, भाई, बहन या परिवार के किसी अन्य सदस्य पर अपना प्रभाव दिखने लगते हैं। गंड मूल नक्षत्र में जन्में जातक अपने परिवार के लिए ही नही अपितु स्वयं के लिए भी पीड़ादायक बन जाते हैं। ज्योतिष विद्या के अनुसार अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा देव रेवती, अश्विनी, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा या मूल नक्षत्र में स्थित है तो वह व्यक्ति गंड मूल नक्षत्र का माना जाता है।
गंड मूल नक्षत्र के दोष
विज्ञान की बात करें तो ये सभी 6 नक्षत्रों के किसी एक विशेष चरण में चंद्रमा के स्थित होने पर यह दोष बन जाता है। जैसे कि रेवती नक्षत्र के चौथे चरण में, अश्विनी नक्षत्र के पहले चरण में, अश्लेषा चरण में चौथे चरण में, मघा नक्षत्र के पहले चरण में, ज्येष्ठा नक्षत्र के चौथे चरण और मूल नक्षत्र के प्रथम चरण में जब चंद्रमा स्थित होता है तो गंड मूल दोष बन जाता है। यह दोष चन्द्रमा के इन 6 नक्षत्रों के किसी एक नक्षत्र के किसी एक विशेष चरण में होने से ही बनता है। प्रत्येक कुंडली में गंड मूल दोष अपना भिन्न-भिन्न प्रभाव देता है। इसलिए इसके समाधान करने से पहले ये पता लेना आवश्यक होता है कि चंद्रमा किस चरण में स्थित है और गंड मूल दोष कौनसा बन रहा है। किसी भी जातक की कुंडली का गहन अध्ययन करने के बाद ही यह पता लगता है कि दोष कौनसा है, इसके बाद ही उस सम्बंधित उपाय करना चाहिए।
अश्विनी नक्षत्र :-
अश्विनी नक्षत्र के पहले चरण में जन्म लेने वाले जातक के पिता का जीवन कष्टप्रद होता है और इसके दोष का सारा नकारात्मक प्रभाव जातक के पिता पर पड़ता है।
अश्लेषा नक्षत्र :-
अश्लेषा नक्षत्र के पहले चरण में जन्म लेने वाले जातक के लिए यह शुभ होता है वहीं दूसरे या तीसरे चरण में धन की हानि और माता को कष्ट हो जाते हैं। चौथे चरण में जातक का जन्म हो तो पिता को कष्ट प्राप्त होने की संभावना अधिक होती है।
मघा नक्षत्र :-
मघा नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म लेने वाले जातक के बड़े भाई का जीवन कुछ कष्टप्रद हो जाता है। वहीं दूसरा चरण छोटे भाई को तीसरा चरण माता और चौथा चरण पिता को कष्ट देता है।
अश्लेषा नक्षत्र :-
अश्लेषा नक्षत्र के प्रथम चरण में जातक का जन्म हो तो शुभकारी होता हे दूसरे चरण में धन हानि देता हे तीसरे चरण में माता को कष्ट देता हे तथा चौथे चरण में पिता को कष्ट पहुंचता है और यह फल जन्म से प्रथम दो वर्षों में ही प्राप्त हो जाते है|
मघा नक्षत्र :-
मघा नक्षत्र के प्रथम चरण में जातक का जन्म हो तो माता पक्ष को हानि होती हे दूसरे में होतो पिता को कष्ट देता हे तथा अन्य चरण में यह शुभकारी होता है|
ज्येष्ठा नक्षत्र :-
ज्येष्ठा नक्षत्र और मंगलवार के योग में जन्म लेने वाली कन्या अपने भाई के लिए घातक हो जाती है।
मूल नक्षत्र :-
मूल नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म लेने वाले जातक के पिता को जीवनभर कष्ट प्राप्त होता है। दूसरे चरण में जन्म लेने वाले जातक की माता को कष्ट होता है तीसरे चरण में धन की हानि होती है और चौथा चरण शुभकारी रहता है।
रेवती नक्षत्र :-
रेवती नक्षत्र और रविवार के योग में जन्म लेने वाली कन्या के ससुराल पक्ष में हानि होती है और इसके परिणाम विवाह के प्रथम चार वर्षों में ही प्राप्त हो जाते हैं।
उपाय
किसी भी जातक का जन्म किस नक्षत्र में होगा यह उसके हाथ में नहीं होता। इसलिए गंड मूल नक्षत्रों में जन्म लेने वाले जातक के जीवन को सुखमय बनाने और बाधा को हटाने के लिए उसके परिवार को उपाय कर लेना चाहिए।
किसी विशेष ज्ञानी के अनुसार परिवार वालों को अपनी संतान की मूल शांति अवश्य करवा लेनी चाहिए। जिससे अनेक प्रकार के दोष कम हो जाते हैं।
इन दोष से मुक्ति पाने का उपाय गंड मूल शांति पूजा है, जो सामान्य से कुछ अलग होती है।
जातक के जन्म के नक्षत्र के अनुसार संबंधित देवता की पूजा करने से गंड मूल नक्षत्र के नकारात्मक प्रभाव कम हो जाते है।
अश्विनी, मघा, मूल नक्षत्र में जन्में जातकों को गणेश जी की सेवा साधना करनी चाहिए। इसके साथ ही माह के किसी भी एक बुधवार या गुरुवार को हरे रंग का वस्त्र या लहसूनिया, किसी भी एक वस्तु का दान करते रहना चाहिए। इसके साथ ही गणेश मंदिर में झंडा लगाना भी लाभदायक सिद्ध होता है।
आश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती नक्षत्र में जन्में जातकों के लिए बुध ग्रह की जप,साधना करना फलदायी होता है। इन नक्षत्रों में से किसी भी एक नक्षत्र में जन्में जातक को बुधवार के दिन हरा धनिया, हरी सब्जी, पन्ना या कांसे के बर्तन का दान करना चाहिए।
इन उपायों के साथ अन्य कई उपाय ऐसे हैं जो अधिक प्रचलित हैं। जैसे कि गंड मूल में जन्में बच्चे के जन्म के ठीक 27वें दिन गंड मूल शांति पूजा करवाना, ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देना और उन्हें या योग्यपात्र को भोजन करवाना। यदि किसी कारणवश पूजा ना करवाई जा सके तो महीने के जिस भी दिन चंद्रमा जन्म नक्षत्र में उपस्थित हो उसी दिन शांति पूजा करवा लेना चाहिए।
Created On :   29 Nov 2018 7:26 AM GMT