रोज करें देवी लक्ष्मी की पूजा, नहीं आएगी जीवन में कभी दरिद्रता

Perform goddess Lakshmi worship Everyday, Will never come to poverty in life
रोज करें देवी लक्ष्मी की पूजा, नहीं आएगी जीवन में कभी दरिद्रता
रोज करें देवी लक्ष्मी की पूजा, नहीं आएगी जीवन में कभी दरिद्रता

डिजिटल डेस्क, भोपाल। देवी लक्ष्मी जी को धन, समृद्धि और वैभव की देवी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि लक्ष्मी जी की नित्य पूजा करने से मनुष्य के जीवन में कभी दरिद्रता नहीं आती है। माता की आराधना में चालीसा और उनके 12 नाम का भी विशेष महत्व है। यदि कोई भी जातक लक्ष्मी जी के 12 नाम और लक्ष्मी चालीसा पाठ शुक्रवार के दिन करता है और साबू दाने की खीर का भोग लगाकर प्रसाद प्राप्त करता है तो ऐसे व्यक्ति के घर में कभी भी धन का भण्डार खाली नहीं हो पाता है। 

लक्ष्मी जी के 12 नाम

1. वरलक्ष्मी - समृद्धि की दाता 
2. वसुप्रदा - धन को प्रदान करने वाली 
3. शुभा - शुभ देवी 
4. हिरण्यप्राका - सोने में वास करने वाली
5. समुद्रतनया - महासागर की बेटी 
6. जया - विजय की देवी 
7. मंगला - सबसे शुभ 
8. देवी - देवता या देवी 
9. विष्णुवक्षः - जिसके के ह्रदय में भगवान विष्णु रहते हैं  
10. विष्णुपत्नी - भगवान विष्णु की पत्नी 
11. प्रसन्नाक्षी - जीवंत आंखवाली 
12. नारायण समाश्रिता - जो भगवान नारायण के चरण में जाना चाहती हैं

 


श्री लक्ष्मी चालीसा

॥दोहा॥

मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास। 
मनोकामना सिद्ध करि, परुवहु मेरी आस॥

॥सोरठा॥

यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं। 
सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥

॥चौपाई॥

सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही। 
ज्ञान बुद्धि विद्या दो मोही॥

तुम समान नहीं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥ 
जय जय जगत जननि जगदम्बा। सबकी तुम ही हो अवलम्बा॥1॥

तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥ 
जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥2॥

विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥ 
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥3॥

कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥ 
ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥4॥

क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥ 
चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥5॥

जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥ 
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥6॥

तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥ 
अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥7॥

तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥ 
मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वांछित फल पाई॥8॥

तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥ 
और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥9॥

ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥ 
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥10॥

जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥ 
ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥11॥

पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥ 
विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥12॥

पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥ 
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥13॥

बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥ 
प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥14॥

बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥ 
करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा॥15॥

जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥ 
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥16॥

मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥ 
भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥17॥

बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥ 
नहीं मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥18॥

रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥ 
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्धि मोहि नहिं अधिकाई॥19॥

 


॥दोहा॥

त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास। 
जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥ 
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर। 
मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥ 

Created On :   26 May 2018 5:20 PM IST

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