रमा या रम्भा एकादशी की व्रत कथा एवं महत्त्व

Rama or Rambha Ekadashis fast, know its story and significance
रमा या रम्भा एकादशी की व्रत कथा एवं महत्त्व
रमा या रम्भा एकादशी की व्रत कथा एवं महत्त्व

डिजिटल डेस्क । ये कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी है। इसका महत्त्व बहुत अधिक माना जाता है। जो इस वर्ष 3 नवम्बर 2018 को मनाई जाएगी। जिसका महत्त्व बहुत अधिक माना जाता है। रमा एकादशी की तिथि 3 नवम्बर को प्रातः 4:25 से रात्रि 2:16 तक रहेगी। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी कहा जाता है। 
ये व्रत देवी लक्ष्मी के नाम से रमा माना जाता है जो की दिवाली से चार दिन पहले आता है।

 

रमा एकादशी मानव जाती को उनके कर्मो से मुक्ति देती है। वैसे तो सभी एकादशी का पौराणिक महत्त्व होता है। उत्तर भारत में रमा एकादशी हिन्दू कार्तिक मास में मनाई जाती है।किन्तु तमिल या दक्षिण भारत के कैलेंडर में इसे पुरातास्सी मास में मनाया जाता है। आंध्र प्रदेश, कर्नाटका, गुजरात एवं महराष्ट्र में रमा एकादशी अश्र्वायूज महीने में आती है। देश के कुछ भागों में ये आश्र्विन मास में भी मनाया जाता है। रमा एकादशी दीपावली के चार दिन पहले आती है। रमा एकादशी को रम्भा एकादशी या कार्तिक कृष्णा एकादशी भी कहा जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि रमा एकादशी का व्रत रखने वाले जातक के सभी पाप धुल जाते है। 

 

एकादशी व्रत के दिन भगवान विष्णु की पूजा करें। इसके बाद भगवान विष्णु का धूप, पंचामृत, तुलसी पत्र, दीप, नेवैद्ध, फूल, फल आदि से पूजा करने का विधान दिया गया है।रमा एकादशी व्रत वाली रात को भगवान का भजन- कीर्तन या जागरण किया जाता है। पद्म पुराण के अनुसार व्रत के अगले दिन यानि द्वादशी के दिन भगवान का पूजन कर ब्राह्मण को भोजन और दान विशेष: कपड़े, जूते, छाता, आदि देने का विधान बताया गया है। अंत में भोजन ग्रहण कर व्रत खोलना चाहिए।

 

रमा एकादशी व्रत का महत्त्व क्या है?

पद्म पुराण के अनुसार रमा एकादशी व्रत कामधेनु और चिंतामणि के समान फल देता है। इस व्रत को करने से जातक अपने सभी पापों का नाश करते हुए भगवान विष्णु का धाम प्राप्त करता है। एवं मृत्यु के बाद उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा रमा एकादशी व्रत के प्रभाव से धन-धान्य आदि की कमी दूर हो जाती है। एकादशी व्रत के नियमों का पालन व्रत के एक दिन पहले यानि दशमी के दिन से ही शुरू हो जाता है। रमा एकादशी के दिन स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत संकल्प करना चाहिए। एकादशी व्रत के दिन भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए है। इसके बाद भगवान विष्णु का धूप, पंचामृत, तुलसी के पत्तों, दीप, नेवैद्ध, फूल, फल आदि से पूजा करने का विधान है।

 

रमा या रम्भा एकादशी की कथा

पौराणिक काल में मुचुकुंद नाम का राजा राज्य करता था। इंद्र, वरुण, कुबेर, विभीषण आदि इस राजा के मित्र थे। वो बड़ा ही सत्यवादी एवं विष्णुभक्त था। और उसकी चंद्रभागा नाम की एक कन्या थी जिसका विवाह उसने राजा चंद्रसेन के पुत्र सोभन से कर दिया था। राजा एकादशी का व्रत बड़े ही नियम से करता था और उसके राज्य के सभी लोग कठोरता से इस व्रत के नियम का पालन करते थे। सोभन एक बार अपनी ससुराल आया हुआ था। तब कार्तिक का महीना चल रहा था। तभी महापुण्यदायिनी रमा एकादशी आ गई। इस दिन सभी व्रत रखते थे। मुचुकुंद की बेटी चंद्रभागा ने सोचा कि मेरे पति तो बड़े कमजोर हृदय के हैं वे एकादशी का व्रत कैसे करेंगे जबकि पिता के यहां तो सभी को व्रत करने की आज्ञा है। 

 

मेरे पति राजाज्ञा मानेगें तो और नही मानेगें तो भी बहुत कष्ट पायेंगे। चंद्रभागा को जिस बात का डर था वही हुआ। राजा ने आदेश जारी किया कि इस समय उनके दामाद राज्य में पधारे हुये हैं तो सारी प्रजा विधानपूर्वक रमा एकादशी का व्रत करे। जब दशमी तिथि आई तब राज्य में ढिंढो़रा पिट दिया गया उसे सुनकर सोभन अपनी पत्नी के पास गया और बोला हे प्रिय तुम मुझे कुछ उपाय बताओ क्योंकि मैं उपवास नहीं कर सकता यदि मैं उपवास करूंगा तो अवश्य ही मर जाऊंगा। पति की बात सुन चंद्रभागा ने कहा हे स्वामी मेरे पिता के राज्य में एकादशी के दिन कोई भी भोजन नहीं कर सकता। यहां तक कि हाथी, घोड़ा, ऊंट, पशु आदि भी तृण, अन्न, जल आदि ग्रहण नहीं करते, फिर भला मनुष्य कैसे भोजन कर सकते हैं। 

 

यदि आप उपवास नहीं कर सकते तो किसी दूसरे स्थान पर चले जाइये, क्योंकि यदि आप यहां रहेंगे तो आपको व्रत तो अवश्य ही करना पड़ेगा। पत्नी की बात सुन सोभन ने कहा हे प्रिय तुम्हारी राय उचित है परंतु मैं व्रत करने के डर से किसी दूसरे स्थान पर नहीं जाऊंगा, अब मैं व्रत अवश्य ही करूंगा, परिणाम चाहे कुछ भी क्यों न हो, भाग्य में लिखे को भला कौन टाल सकता है। सभी के साथ सोभन ने भी एकादशी का व्रत किया और भूख और प्यास से अत्यंत व्याकुल होने लगा। सूर्य अस्त हो गया और रात्रि जागरण भी होने लगा। एकादशी की रात सोभन को असहनीय दुख देने वाली रही। दूसरे दिन सूर्योदय होने से पूर्व ही भूख-प्यास के कारण सोभन के प्राण निकल गए। राजा ने सोभन के मृत शरीर को जल-प्रवाह कर दिया और अपनी पुत्री को आज्ञा दी कि वह सती न हो और भगवान विष्णु पर विश्वाश रखे। चंद्रभागा अपने पिता की आज्ञानुसार सती नहीं हुई। वह अपने पिता के घर ही रहकर एकादशी के व्रत को करने लगी।

 

उधर रमा एकादशी के प्रभाव से सोभन को जल से निकाल लिया गया और भगवान विष्णु की कृपा से उसे मंदराचल पर्वत पर धन-धान्य से परिपूर्ण तथा शत्रु रहित देवपुर नाम का एक उत्तम नगर प्राप्त हुआ। उसे वहां का राजा बना दिया गया। उसके महल में रत्न तथा स्वर्ण के स्तम्भ लगे हुए थे। राजा सोभन स्वर्ण तथा मणियों के सिंहासन पर सुंदर वस्त्र तथा आभूषण धारण किए बैठा था। गंधर्व एवं अप्सराएं नृत्य कर उसकी स्तुति कर रहे थे। उस समय राजा सोभन मानो दूसरा इंद्र प्रतीत हो रहा था। उन्हीं दिनों मुचुकुंद नगर में रहने वाला सोमशर्मा नाम का एक ब्राह्मण तीर्थयात्रा के लिये गया हुआ था। भ्रमण करते वह सोभन के राज्य में जा पहुंचा, उसको देखा। की यहाँ का राजा तो उसको राजा का जमाई है। 

 

राजा सोभन ब्राह्मण को देख आसन से उठ खड़ा हुआ और अपने ससुर तथा पत्नी चंद्रभागा की कुशलता पूछने लगा। सोभन की बात सुन सोमशर्मा ने कहा हे राजन हमारे राजा कुशल से हैं तथा आपकी पत्नी चंद्रभागा भी कुशल है। अब आप अपना वृत्तांत बतलाइए। आपने तो रमा एकादशी के दिन अन्न-जल ग्रहण न करने के कारण प्राण त्याग दिए थे। मुझे बड़ा विस्मय हो रहा है कि ऐसा विचित्र और सुंदर नगर जिसको न तो मैंने कभी सुना और न कभी देखा है, आपको किस प्रकार प्राप्त हुआ। 

 

इस पर सोभन ने कहा हे देव यह सब कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की रमा एकादशी के व्रत का फल है। इसी से मुझे यह अनुपम नगर प्राप्त हुआ है किंतु यह अस्थिर है। सोभन की बात सुन ब्राह्मण बोला हे राजन यह अस्थिर क्यों है और स्थिर किस प्रकार हो सकता है, सों आप मुझे समझाइए। यदि इसे स्थिर करने के लिए मैं कुछ कर सका तो वह उपाय मैं अवश्य ही करूंगा। राजा सोभन ने कहा हे ब्राह्मण देव मैंने वह व्रत विवश होकर तथा श्रद्धारहित किया था। उसके प्रभाव से मुझे यह अस्थिर नगर प्राप्त हुआ परंतु यदि तुम इस वृत्तांत को राजा मुचुकुंद की पुत्री चंद्रभागा पे कहोगे तो वह इसको स्थिर बना सकती है। राजा सोभन की बात सुन ब्राह्मण अपने नगर को लौट आया और उसने चंद्रभागा से सारा वृत्तांत कह सुनाया। इस पर राजकन्या चंद्रभागा बोली हे ब्राह्मण देव आप क्या वह सब दृश्य प्रत्यक्ष देखकर आए हैं या अपना स्वप्न कह रहे हैं। 

 

चंद्रभागा की बात सुन ब्राह्मण बोला हे राजकन्या मैंने तेरे पति सोभन तथा उसके नगर को प्रत्यक्ष देखा है किंतु वह नगर अस्थिर है। तू कोई ऐसा उपाय कर जिससे कि वह स्थिर हो जाए। ब्राह्मण की बात सुन चंद्रभागा बोली हे ब्राह्मण देव आप मुझे उस नगर में ले चलिए मैं अपने पति को देखना चाहती हूं। मैं अपने व्रत के प्रभाव से उस नगर को स्थिर बना दूंगी। चंद्रभागा के वचनों को सुनकर वह ब्राह्मण उसे मंदराचल पर्वत के पास वामदेव के आश्रम में ले गया। वामदेव ने उसकी कथा को सुनकर चंद्रभागा का मंत्रों से अभिषेक किया। चंद्रभागा मंत्रों तथा व्रत के प्रभाव से दिव्य देह धारण करके पति के पास चली गई। सोभन ने अपनी पत्नी चंद्रभागा को देखकर उसे प्रसन्नतापूर्वक आसन पर अपने पास बैठा लिया।

 

चंद्रभागा ने कहा हे स्वामी अब आप मेरे पुण्य को सुनिए जब मैं अपने पिता के घर में आठ वर्ष की थी तब से ही मैं पूर्णविधि से एकादशी का व्रत कर रही हूं। उसी के प्रभाव से आपका यह नगर स्थिर हो जाएगा और सभी कर्मों से परिपूर्ण होकर प्रलय के अंत तक स्थिर रहेगा। चंद्रभागा दिव्य स्वरूप धारण करके तथा दिव्य वस्त्रालंकारो से सजकर अपने पति के साथ सुखपूर्वक रहने लगी। भगवान कृष्ण ने कहा हे अर्जुन यह मैंने रमा एकादशी का प्रताप कहा है। जो मनुष्य रमा एकादशी के व्रत को करते हैं। उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। जो मनुष्य रमा एकादशी का माहात्म्य सुनते हैं। वह अंत समय में विष्णु लोक को जाते हैं।

Created On :   2 Nov 2018 6:54 AM GMT

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