जानें शिवलिंग के पीछे का विज्ञान 

Religion and science: learn, What is the science behind Shivling
जानें शिवलिंग के पीछे का विज्ञान 
जानें शिवलिंग के पीछे का विज्ञान 

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कुछ समय पहले तक धर्म और विज्ञान को परस्पर विरोधी माना जाता था, लेकिन कुछ वैज्ञानिकों और विद्वानों के विश्लेषण से निकले निष्कर्ष से दोनों में बहुत कुछ समानताएं सामने आ रही हैं। भूवैज्ञानिक और पर्यावरण वैज्ञानिकों ने शिवलिंग से जुड़े वैज्ञानिक तथ्य खोजने के प्रयास किए हैं। शिवलिंग, जिसकी पूजा लगभग सभी हिन्दू करते हैं, इसके बारे में एक वैज्ञानिक तथ्य भी है। 

संरचना 
अगर आप भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (मुंबई) के न्यूक्लियर रिएक्टर की संरचना को देखें तो आप पाएंगे की शिवलिंग और न्यूक्लियर रिएक्टर में काफी समानताएं हैं। दोनों की संरचनाएं भी एक सी हैं। अगर,दूसरे शब्दों में कहें तो दोनों ही कहीं न कहीं उर्जा से संबंधित हैं। शिवलिंग पर लगातार जल प्रवाहित करने का नियम है। देश में, अधिकतम शिवलिंग वहीं पाए जाते हैं जहां जल का भंडार हो,जैसे नदी,तालाब, झील समुद्र आदि और विश्व के सभी न्यूक्लियर प्लांट भी पानी (समुद्र) के पास ही हैं।

बेलनाकार
शिवलिंग की संरचना बेलनाकार होती है भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (मुंबई) की रिएक्टर की संरचना भी बेलनाकार ही है। न्यूक्लियर रिएक्टर को ठंडा रखने के लिए जिस जल का उपयोग किया जाता है, उस जल को किसी और प्रयोग में नहीं लाया जाता है। उसी प्रकार शिवलिंग पर जो जल चढ़ाया जाता है उसको भी प्रसाद के रूप में ग्रहण नहीं किया जाता है।

मान्यता
शिवलिंग की पूरी परिक्रमा नहीं की जाती है। जहां से जल निष्कासित हो रहा है, उसको लांघा भी नहीं जाता है। ऐसी मान्यता है की वह जल आवेशित(चार्ज) होता है। उसी प्रकार से जिस तरह से न्यूक्लियर रिएक्टर से निकले हुए जल को भी दूर रखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की ही आकृति है। जिस प्रकार से निरंतर उर्जा देते रहने से न्यूक्लियर रिएक्टर गर्म हो जाता है तथा उसको ठंडा रखने के लिए जल आवश्यक है उसी प्रकार शिवलिंग को भी जल की आवश्यकता होती है।

उर्जा का स्रोत
ऐसा माना जाता है कि शिवलिंग(ब्रह्मांड) भी एक उर्जा का स्रोत है जिससे लगातार उर्जा निकलती रहती है। लोग श्रद्धा से बेल का पत्ता शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। कुछ समय के वैज्ञानिक शोध से ये ज्ञात हुआ है कि बेल के पत्तों में रेडियो विकिरण रोकने की क्षमता है। इससे पता लगता है प्राचीन काल में लोग शिवलिंग को उर्जा अथवा विकिरण का स्रोत मानकर उस पर जल एवं बेल पत्तों को क्यों चढ़ाते थे। 

प्रचलित कथा
ऐसा भी माना जाता है की सोमनाथ के मंदिर के शिवलिंग में "स्यामन्तक" नामक एक पत्थर को हमारे पूर्वजों ने छुपा के रखा था। इसके बारे में धारणा है कि ये रेडियोएक्टिव भी था। यह भी माना जाता है कि मोहम्मद गजनी ने इस पत्थर को प्राप्त करने के लिए सोमनाथ के मंदिर पर कई बार हमला किया था। एक कथा यह भी प्रचलित रही थी कि इस पत्थर से किसी भी धातु को सोने में बदला जा सकता था। लगता है की इसी कारण से लोग सोमनाथ के शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाते थे ताकि विकिरण का प्रभाव कम हो सके और यह प्रथा आज भी प्रचलित है।

शिवलिंग आकृति
हम अपने दैनिक जीवन में भी देख सकते हैं कि जब भी किसी स्थान पर अकस्मात उर्जा का उत्सर्जन होता है तो उर्जा का फैलाव अपने मूल स्थान के चारों ओर  एक वृताकार पथ में तथा ऊपर व नीचे की ओर अग्रसर होता है अर्थात् दसों दिशाओं में फैलता है। यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध तथ्य है। फलस्वरूप एक क्षणिक शिवलिंग आकृति की प्राप्ति होती है जैसे बम विस्फोट से प्राप्त उर्जा का प्रतिरूप, शांत जल में कंकड़ फेंकने पर प्राप्त तरंग (उर्जा) का प्रतिरूप आदि।

महाशिवलिंग 
सृष्टि के आरंभ में महाविस्फोट के बाद उर्जा का प्रवाह वृत्ताकार पथ में तथा ऊपर व नीचे की ओर हुआ, फलस्वरूप एक महाशिवलिंग का उत्पादन हुआ,जिसका वर्णन हमें लिंगपुराण, शिवमहापुराण, स्कन्द पुराण आदि में मिलता है कि आरंभ में निर्मित शिवलिंग इतना विशाल (अनंत) था कि देवता आदि मिल कर भी उस लिंग के आदि और अंत का छोर या शाश्वत अंत नही पा सके।

उत्पत्ति 
पुराणों में कहा गया है कि प्रत्येक युग के बाद समूचा विश्व इसी शिवलिंग में समाहित होता है तथा इसी से पुन: सृजन नहीं होता है। महाविस्फोट का सिद्धांत सर्वप्रथम Georges Lemaître ने 1920 में दिया। यह सिद्धांत कहता है कि कैसे आज से लगभग 13.7 खरब वर्ष पूर्व एक अत्यंत गर्म और घनी अवस्था से ब्रह्मांड का जन्म हुआ। इसके अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति एक बिंदु से हुई थी जिसकी उर्जा अनंत रही थी।

उत्सर्जन
उस समय मानव, समय और स्थान जैसी कोई वस्तु अस्तित्व में नहीं थी अर्थात कुछ नहीं था। इस धमाके में अत्यधिक ऊर्जा का उत्सर्जन हुआ। यह ऊर्जा इतनी अधिक थी कि इसके प्रभाव से आज तक ब्रह्मांड फैलता ही जा रहा है। सारी भौतिक मान्यताएं इस एक ही घटना से परिभाषित होती हैं जिसे "महाविस्फोट सिद्धांत" कहा जाता है।

भौतिक पंचतत्व
महाविस्फोट नामक इस धमाके के मात्र 1.43 सेकेंड के अंतराल के बाद समय, अंतरिक्ष की वर्तमान मान्यताएं अस्तित्व में आ चुकी थीं। भौतिकी के नियम लागू होने लग गए थे। 1.34 वें सेकेंड में ब्रह्मांड 1030 गुणा तक फैल चुका था, हाइड्रोजन,हीलियम आदि के अस्तित्त्व का आरंभ होने लगा था और अन्य भौतिक पंचतत्व आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी बनने लगे थे। आधुनिक विज्ञान कई अवस्थाओं से निकलने के बाद आज एक ऐसे बिंदु पर पहुंचा है जहां वे यह सिद्ध कर रहे हैं कि हर चीज जिसे आप जीवन के रूप में जानते हैं,वह सिर्फ ऊर्जा (शक्ति) है,जो स्वयं को लाखों करोड़ों रूप में व्यक्त करती है।

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। उज्जयिन्यां महाकालमोङ्कारममलेश्वरम्।।
केदारं हिमवत्पृष्ठे डाकिन्यां भीमशङ्करम्। वाराणस्यां च विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।।
वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारुकावने। सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं च शिवालये।।
द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्। सर्वपापविनिर्मुक्तः सर्वसिद्धिफलो भवेत्।।

Created On :   28 Jan 2019 6:11 AM GMT

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story