इस मौनी अमावस्या पर बना है ग्रहों का विशेष संयोग, ऐसे होगी पुण्य फल की प्राप्ति

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। ज्योतिष शास्त्र व धार्मिक दृष्टि से मौनी अमावस्या की तिथि बहुत महत्वपूर्ण होती है। यह तिथि चुपचाप मौन रहकर ऋषि मुनियों की तरह आचरण पूर्ण स्नान करने के विशेष महत्व के कारण ही मौनी अमावस्या कहलाती है। पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए इस तिथि का विशेष महत्व होता है, क्योंकि इस तिथि को तर्पण, स्नान, दान आदि के लिए बहुत ही पुण्य फलदायी माना जाता है। किसी व्यक्ति की कुंडली में यदि पितृ दोष है, तो उससे मुक्ति के उपाय के लिए भी अमावस्या तिथि काफी कारगर मानी जाती है। इसलिए इस मौनी अमावस्या का विशेष महत्व हमारे शास्त्रों में बताया गया है।
ग्रहों का विशेष संयोग
मौनी अमावस्या के पर्व पर मकर राशि में चार ग्रहों सूर्य, चंद्रमा, बुध, केतु की युति विशेष फलदाई होगी।
मौनी अमावस्या का अमृत के समान स्नान मकर राशि में सूर्य चंद्रमा बुध केतु के होने से ही होगा।
शनि और शुक्र दोनों धनु राशि में ही होंगे।
पुण्यफल की प्राप्ति
मौनी अमावस्या पर इस बार सोमवती अमावस्या का योग है। इसलिए इस दिन संगम में स्नान, दान व्रत रखने का महत्व बढ़ जाता है। अमावस्या को मकर राशि पर चंद्रमा का संचरण होगा। ऐसे में चंद्रमा की स्वराशि पर दृष्टि पड़ेगी। महाशिवरात्रि के दिन चंद्रमा मकर राशि में विद्यमान रहकर स्वराशि पर दृष्टि डालेंगे। ऐसे में चंद्रमा यानी जल में स्नान करने से पुण्यफल की प्राप्ति होगी।
सबसे बड़ा स्नान
बृहस्पति वृश्चिक राशि में तथा राहु कर्क राशि में और मंगल मीन राशि में स्थित होकर तीर्थराज प्रयाग में इस मौनी अमावस्या पर आकाशीय अमृत वर्षा करेंगे। इसलिए माघ मास की अमावस्या तिथि माघ के महीने का सबसे बड़ा स्नान का पर्व है।
94 साल बाद बना दुर्लभ योग
इस बार कुम्भ में सोमवार को पड़ने वाले चारों प्रमुख स्नान पर्व के योग की स्थिति 1924 में बनी थी। उस समय 14 जनवरी, सोमवार को मकर संक्रांति, 21 जनवरी, सोमवार को पौष पूर्णिमा, 4 फरवरी, सोमवार को मौनी अमावस्या और 4 मार्च, सोमवार को महाशिवरात्रि का पर्व था। उस समय 1923 में अर्धकुम्भ था। इसलिए इस मौनी अमावस्या पर तीर्थ स्थलों पर स्नान करना विशेष फलदाई हो जाएगा।
Created On :   4 Feb 2019 11:30 AM IST