''मन चंगा तो कठौती में गंगा'', गुरू रविदास जयंतीअाज, जानें रोचक FACTS

Story Of the Great Sant Ravidas On the Guru Ravidas Jayanti 2018
''मन चंगा तो कठौती में गंगा'', गुरू रविदास जयंतीअाज, जानें रोचक FACTS
''मन चंगा तो कठौती में गंगा'', गुरू रविदास जयंतीअाज, जानें रोचक FACTS


डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कहा जाता है कि जिस दिन किसी महान आत्मा का संसार में अवतरण होता है वही दिन विशेष मुहूर्तों से सिद्ध हो जाता है। एक ऐसे ही संत हैं रविदास, जिन्हें रैदास और गुरू रविदास के नाम से भी जाना जाता है। इन्हें सिर्फ संत गुरू नहीं बल्कि एक कवि के रूप में भी जाना जाता है। इस वर्ष गुरू रविदास जयंती 31 जनवरी 2018 को मनाई जा रही है। 


मीरा और कबीर भी संत रविदास की महिमा को स्वीकार चुके थे। संत रविदास की ये पंक्तियां उनके जीवनकाल के विभिन्न पहलुओं को दिखाती हैं। 

 

जाति-जाति में जाति हैं जो केतन के पात।

रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।

 

चर्मकार परिवार में हुआ था जन्म

गुरू संत रविदास  का जन्म काशी में चर्मकार परिवार में हुआ था। वे स्वयं भी यही काम किया करते थे, किंतु वे बचपन से ही अद्भुत विचारों से परिपूर्ण थे। बताया जाता है कि गुरू रैदास ने साधु संतों की संगति से ज्ञान प्राप्त किया था। जिसे उन्होंने बाद में जन-जन तक फैलाया। उन्होंने कभी भी अपने पैतृक कार्य से मुंह नही मोड़ा। अपने परिवार का पोषण करने के लिए वे जूते बनाने का काम  करते थे। इसी परिश्रम से प्राप्त आय के एक सिक्के को उन्होंने मां गंगा को समर्पित किया था जिसे लेने वे साक्षात प्रकट हो गई थीं। मन चंगा तो कठौती में गंगा...यह पंक्तियां भी यहीं से उद्धृत बतायी जाती हैं। इसके संबंध में कहा जाता है कि रविदास की भक्ति की परीक्षा होने पर मां गंगा एक कठौती में ही प्रकट हो गईं थीं और इस दृश्य को सैकड़ों लोगों ने देखा था। 


जब हर ओर फैलने लगी ख्याति
वे अपने वचन के पक्के, दयावान एवं दूसरों की सहायता करने वाले थे। मेहनत से प्राप्त आय पर ही वे अपने परिवार को पालन करने पर यकीन करते थे। जब धीरे-धीरे उनकी ख्याति फैली तो लोगों ने उनकी महिमा को स्वीकारते हुए विचारों को भी स्वीकारा। रविदास जयंती के अवसर पर लगभग पूरे देश में आयोजन किए जाते हैं। 

Created On :   25 Jan 2018 8:26 AM IST

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story