शिव की पसीने की बूंद से यहां हुआ था 'मंगल' का जन्म...

डिजिटल डेस्क, उज्जैन। धार्मिक नगरी उज्जैन में वैसे तो मंदिरों की कमी नही, लेकिन जिस स्थान की ओर हम आपको लेकर जा रहे हैं वहां बड़े-बड़े लोग सिर झुकाते हुए आते हैं। कहा जाता है कि यही वह स्थान है जहां अनिष्ट ग्रहों से पीड़ित होने पर लोग शांति कराने के लिए आते हैं। इसे हम मंगलनाथ मंदिर के नाम से जाने जाते हैं। भूमि पुत्र होने की वजह से इसी मंदिर के अंदर उनकी माता भूमि के दर्शन होते हैं। ऐसे भी मान्यता है कि माता के दर्शन किए बगैर मंगलनाथ के दर्शन अधूरे माने जाते हैं।
ज्याेतिष विज्ञान में इसी वजह से मंगल को तेज और लाल रंग का ग्रह बताया जाता है, जिसकी बदली चाल मनुष्य के जीवन में उथल-पुथल का कारक बन जाती है। वहीं जिसकी भी कुंडली में मंगल दोष हो वह अनेक मुसीबतों से पीड़ित हो जाता है।
पुराणों में उल्लेख
पुराणों में ऐसा उल्लेख मिलता है कि उज्जैन को मंगल की जननी भी कहा जाता है। वे लोग जिनकी कुंडली में मंगल भारी रहता है। वे मंगल ग्रह की शांति के लिए पूजा-पाठ कराने आते हैं। मंगलनाथ का जन्मस्थान होने की वजह से यहां पूजा का विशेष महत्व है।
प्रचलित है ये कथा
अंगारिका चतुर्थी और मंगलवार के दिन यहां बड़ी संख्या में भक्त पूजा के लिए पहुंचते हैं। इस स्थान से अंधकासुर नाम दैत्य की भी कथा जुड़ी है जिसे शिवजी ने वरदान दिया था। कहते हैं कि जब शिवजी अंधकासुर से युद्ध कर रहे थे तो शिवजी के पसीने की एक बूंद उज्जैयनि की धरती पर गिरी। जिससे धरती फट गई और के मंगलदेव का जन्म हुआ। जैसे ही अंधकासुर का रक्त जमीन पर गिरा मंगलग्रह ने इसे अपने अंदर समाहित कर लिया। इसी वजह से उनका रंग रक्त लाल हो गया। जिनकी कुंडली में चतुर्थए सप्तमए अष्टमए द्वादश भाव में मंगल होता हैए वे मंगल शांति के लिए विशेष पूजा अर्चना कराने आते हैं।
Created On :   27 Dec 2017 8:44 AM IST