हनुमानजी की दुर्लभ प्रतिमा - नाभी से निकलते जल से जुड़ी है श्रद्धालुओं की आस्था

The rare statue of Hanumanji -the devotees are connected with the water coming out of the navel
हनुमानजी की दुर्लभ प्रतिमा - नाभी से निकलते जल से जुड़ी है श्रद्धालुओं की आस्था
हनुमानजी की दुर्लभ प्रतिमा - नाभी से निकलते जल से जुड़ी है श्रद्धालुओं की आस्था

    भास्कर न्यूज सौंसर । सौंसर का जामसावली मंदिर अब विश्व प्रसिद्ध हो गया है। विशेषता यह कि हनुमानजी की विश्राम अवस्था में यह दुर्लभ प्रतिमा है। बारिश हो या गर्मी मूर्ती की नाभी से समांतर रुप से निरंतर रिसने वाले जल प्रवाह से लोगो की आस्था जुड़ी है। हनुमानजी की प्रतिमा कितने वर्ष पूरानी है इस का इतिहास नहीं है लेकिन मंदिर का इतिहास 50 वर्ष पूराना होकर विकास की शुरुआत 30 वर्ष पूर्व हुई।
    छिंदवाड़ा जिले के सौंसर तहसील में नागपुर-छिंदवाड़ा मार्ग पर बजाज तिराह से पांढुर्ना मार्ग पर एक किमी दूरी पर चमत्कारिक हनुमान मंदिर है। इसे जामसावली मंदिर के नाम से जाना जाता है। लेटे हुए अवस्था में देश  प्रतिमा होने से इस के दर्शन करने देश भर से श्रद्धालु यहां आते है। मान्यता यह भी है कि इस मंदिर में मनोकामनाएं पूर्ण होने के अलाव मूर्ती के तीर्थ से असाध्य रोग दूर होते है। भूत बाधा की कल्पनाओ से पीडि़त मनोरोगी भी यहा ठीक होना बताया जाता है।
    नाभी से आता है जल
    लेटे हुए अवस्था में स्थित मूर्ती की नाभी से जल प्रवाह होता है। मूर्ती के नाभी से निरंतर जल रिसने के स्त्रोत का आज तक पता नहीं लग पाया है। प्रतिमा के एक हिस्से में यह जल इक_ा होता है। मंदिर कमेटी की और से इस जल को तीर्थ के रुप में श्रद्धालुओं को मुफ्त में वितरित किया जाता है। मंदिर ट्रस्ट कमेटी के प्रशासनिक प्रभारी देवराव पातुरकर बताते है कि उक्त तीर्थ श्रद्धालुओं के आस्था का विषय होने से बोतल बंद बेचने पर प्रतिबंध है।
    मंदिर विकास का इतिहास
    हनुमानजी की मूर्ती पीपल के पेड़ के नीचे लेटे हुए अवस्था में है। किवदंतियों के अनुसार मूर्ती वाले स्थान पर ग्वालों का गांव था जो बाद में विरान हो गया यह इतिहास 400 वर्ष पूराना बताया जाता है। 150 वर्ष पूर्व जामसावली के एक किसान ने इस मूर्ती को देखा था। 50 वर्ष पूर्व  पेड़ के निचे मूर्ती पर जामसावली के ग्रामीणों ने टीन का शेड़ बनाया। मंदिर अस्तित्व में आने पर जामसावली के ग्रामीण इस की देखभाल करने लगे। 1991 में मंदिर का संचालन ट्रस्ट कमेटी करने लगी। मुख्य विकास 1996 से शुरु हुआ, ट्रस्ट कमेटी के सरभराकार तहसीलदार आरएस कुसराम बताते है कि 20 करोड़ की लागत से मंदिर का नव निर्माण हो रहा है।   

 

Created On :   30 March 2018 5:14 PM IST

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