इस कारण 12 वर्ष के लिए अलग हो गए थे रुक्मणी और श्रीकृष्ण

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। जो लोग द्वारका में स्थित श्रीकृष्ण के मंदिर में गए हैं उन्हें यह अवश्य पता होगा कि द्वारकाधीश के मंदिर में उनके साथ उनकी पत्नी, उनकी अर्धांगिनी रुक्मणी जी नहीं है। आप सभी के मन में ये प्रश्न आया भी होगा कि ऐसा क्यों है? लेकिन आपने अधिक जानने का प्रयास भी नहीं किया होगा। चलिए आज हम आपको उनकी एक ऐसी कथा बताने जा रहे हैं, जो स्वयं आपके इस प्रश्न का उत्तर है।
ऋषि ने राखी थी शर्त
कथा के अनुसार ऋषि दुर्वासा यदु वंशियों के कुलगुरु थे। जब श्रीकृष्ण और रुक्मणी का विवाह हुआ तो वे उनका अशीर्वाद लेने के लिए दुर्वासा ऋषि से मिलने के लिए गये यह स्थान द्वारका से कुछ ही दूरी पर स्थित है। श्री कृष्ण ने ऋषि दुर्वासा को अपने महल आने का निमंत्रण दिया, जिसे दुर्वासा ऋषि ने स्वीकार तो किया लेकिन एक बात रख दी.....
स्वयं रथ खींचा
ऋषि दुर्वासा जी ने कहा “आप दोनों जिस रथ से आए हैं मैं उस रथ पर नहीं जाऊंगा, मेरे लिए एक अलग रथ मंगवाइए”। भगवान कृष्ण जी ने ऋषि दुर्वासा की बात प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार कर ली उन्होंने रथ के घोड़े निकलवा दिए और रुक्मणी के साथ स्वयं रथ खींचने में घोड़ों के स्थान पर जुत गए।
निकली पानी की धार
मार्ग में रुक्मणी जी को प्यास लग गई, श्रीकृष्ण ने अपने पैरा का अंगूठा भूमि पर मारा और वहां से पानी की धार निकलकर आ गई। श्रीकृष्ण ने रुक्मणी को पानी दिया लेकिन ऋषि दुर्वासा से जल पीने का आग्रह नहीं किया, इस बात पर दुर्वासा ऋषि क्रोधित हो गए। क्रोध के आवेश में आकर ऋषि दुर्वासा ने रुक्मणी और श्रीकृष्ण को 12 वर्ष के लिए एक दूसरे से अलग रहने का श्राप दे दिया और साथ में यह भी कह दिया कि जिस स्थान पर तुमने गंगा का पानी निकाला है वह स्थान भी बंजर हो जाएगा।
जिस स्थान पर 12 वर्ष रहने पर रुक्मणी ने विष्णु जी की तपस्या की थी आज वहीं उनका मंदिर स्थित है, और वहीं पर जल दान भी दिया जाता है। उस स्थान की मान्यता अनुसार जो व्यक्ति यहां पर जल का दान करता है उसके पितृ और पूर्वजों की आत्मा को तृप्ति मिलती है।
Created On :   9 Dec 2018 4:46 PM IST