बुधवार विशेष : गणेश जी के जन्म से जुड़ी कुछ रोचक कहानियां

These are mythological stories related to the birth of Ganesha
बुधवार विशेष : गणेश जी के जन्म से जुड़ी कुछ रोचक कहानियां
बुधवार विशेष : गणेश जी के जन्म से जुड़ी कुछ रोचक कहानियां

डिजिटल डेस्क, भोपाल। किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले गणेश आराधना को विशेष कहा गया है। हिन्दू शास्त्रों और पौराणिक कथाओं में स्पष्ट तौर पर यह उल्लेखित किया गया है कि सर्वप्रथम भगवान गणेश के स्मरण से पहले किसी भी देवी-देवता की पूजा करना फलित नहीं हो पाएगा। शिव और पार्वती की संतान गणेश को हम कई नामों से पुकारते हैं, लेकिन बहुत ही कम लोग ये बात जानते हैं कि इंसान के शरीर और गज के सिर वाले भगवान गणेश ने यह आकृति किन कारणों से प्राप्त की।

गणेश जी का जन्म और उनके प्रादुर्भाव से जुड़ी अनेक कथाएं प्रचलित हैं। वह किन परिस्थितियों में जन्मे और किन परिस्थितियों में उन्हें गज का सिर धारण करना पड़ा, इसके संबंध में अनेक कथा कहानियां हैं। आज हम आपको ऐसी ही कुछ प्रसिद्ध कथाओं के विषय में बताते हैं, जो गणेश जी के प्रादुर्भाव की कहानी कहती हैं।

ग्रंथो के अनुसार गणपति शब्द गण और पति शब्द के युग्म से बना है। महर्षि पाणिनी के अनुसार दिशाओं को गण कहा जाता है। इस आधार से गणपति का अर्थ होता है सभी दिशाओं का स्वामी। गणपति की आज्ञा के बिना कोई भी देवता किसी भी दिशा से पूजा स्थल पर नहीं पहुंचते। पहले स्वयं गणपति आकर दिशाओं से जुड़ी बाधाओं को दूर करते हैं और फिर अन्य देवी-देवता वहां उपस्थित होते हैं। इस प्रक्रिया को महाद्वार पूजन या महागणपति पूजन भी कहा जाता है। यही कारण है कि किसी भी देवी-देवता की पूजा अर्चना करने से पहले गणेश जी का आह्वान किया जाता है। 
 


यह भी कहा जाता है कि एक बार देवताओं में मुखिया का निर्णय करने हेतु एक प्रतियोगिता का आरंभ हुआ। इस प्रतियोगिता में सभी गणों को समस्त ब्रह्मांड की परिेक्रमा करके शीघ्रा-अतिशीघ्र वापस भगवान शिव तक पहुंचना था। सभी देवताओं ने इस प्रतियोगिता में भाग लिया और अपने-अपने वाहन पर ब्रह्मांड की परिक्रमा करने निकल गए। गणेश जी ने ब्रह्मांड की परिक्रमा करने की अपेक्षा भगवान शिव और देवी पार्वती की ही परिक्रमा कर ली और यह कहा कि माता-पिता की परिक्रमा ही ब्रह्मांड की परिक्रमा के समान है।

भगवान शिव, गणपति के इस उत्तर से संतुष्ट हुए और उन्होंने गणेश को विजेता घोषित कर गणपति के पद पर नियुक्त कर दिया। साथ ही साथ उन्हें यह वरदान दिया कि किसी भी कार्य का शुभारंभ या देवी-देवताओं की आराधना गणपति के स्मरण के बिना अधूरी ही रह जाएगी।

पुराणों में कहा गया है कि “ॐ” का अर्थ ही गणेश है। इसी कारण किसी भी मंत्र से पहले ॐ यानि गणपति का नाम आता है। गणपति को अनेक नामों से पुकारा जाता है, जिनमें विघ्नहर्ता, गणेश, विनायक आदि प्रमुख हैं। शिव और पार्वती के पुत्र भगवान गणपति के नामों में गणेश, गणपति, विघ्नहर्ता और विनायक सर्वप्रमुख हैं।

पौराणिक कथाओं में गणेश जी की ऋद्धि-सिद्धि दो पत्नियां और शुभ-लाभ नाम के दो पुत्रों का वर्णन किया गया है। स्कंद पुराण में स्कंद अर्बुद खण्ड में भगवान गणेश के प्रादुर्भाव से जुड़ी कथा उपस्थित है जिसके अनुसार भगवान शंकर द्वारा मां पार्वती को दिए गए पुत्र प्राप्ति के वरदान के बाद ही गणेश जी ने अर्बुद पर्वत (माउंट आबू), जिसे अर्बुदारण्य भी कहा जाता है, पर जन्म लिया था। इसी कारण से माउंट आबू को अर्धकाशी भी कहा जाता है। गणेश जी के जन्म के बाद समस्त देवी-देवताओं के साथ स्वयं भगवान शंकर ने अर्बुद पर्वत की परिक्रमा की, इसके अलावा ऋषि-मुनियों ने वहां गोबर द्वारा निर्मित गणेश की प्रतिमा को भी स्थापित किया।

आज के समय में इस मंदिर को सिद्धिगणेश के नाम से जाना जाता है। भगवान शंकर ने सहपरिवार इस पर्वत पर वास किया था इसलिए इस स्थान को वास्थान जी तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है।

पौराणिक दस्तावेजों के अनुसार भगवान गणेश का जन्म भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को अभिजीत मुहूर्त में वृश्चिक लग्न में हुआ था। इस दिन को आज भी विनायक चतुर्दशी के रूप में पूरी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। गणेश चतुर्दशी के त्यौहार के दस दिन पश्चात मिट्टी से बनी गणेश जी की मूर्तियों को बहते जल में प्रवाहित किया जाता है। 
 


गणेशजी के जन्म की कथा

शिव पुराण के अनुसार एक बार मां पार्वती स्नान के लिए जा रही थीं। सेविकाओं की अनुपस्थिति के कारण उन्होंने बालक रूपी हल्दी, चन्दन, के उबटन के मेल की एक प्रतिमा बनाकर उसमें प्राण भर दिए। इस तरह भगवान गणेश जी का जन्म हुआ। पार्वती ने अपने पुत्र गणेश को यह आदेश दिया कि किसी को भी भीतर ना आने दें।

गणेश अपनी माता की आज्ञा का पालन कर रहे थे कि अचानक शिव जी वहां उपस्थित हुए। पार्वती के कहे अनुसार गणपति जी ने भगवान शिव को भी भीतर जाने से रोका, जिस पर शिव क्रोधित हो उठे। क्रोध में आकर उन्होंने गणपति जी से युद्ध कर उनका सिर उनके धड़ से अलग कर दिया।

जब पार्वती स्नान कर के बाहर आईं तो अपने पुत्र का मृत देह देखकर उन्हें अत्यंत दुख हुआ। उन्होंने अपने पति भगवान शिव से प्रार्थना की और कहा की वे गणेश को जीवनदान दें। भगवान शिव ने एक गज का सिर गणेश जी के धड़ के साथ जोड़कर उन्हें पुनर्जीवित कर दिया।

एक अन्य कथा के अनुसार गजासुर नाम के एक दैत्य ने कड़ी तपस्या के बाद भगवान शिव से यह वरदान मांगा कि वे हमेशा उसके पेट में निवास करें। भगवान शिव ने उसकी यह इच्छा मान ली और गजासुर के पेट में रहने लगे। एक दिन भगवान शिव की खोज करते हुए माता पार्वती विष्णु जी के पास पहुंची।

विष्णु जी ने माता पार्वती को सारा घटनाक्रम बताया। तब विष्णु जी, भगवान शिव की सवारी नंदी बैल को अपने साथ लेकर गजासुर के पास गए। नंदी, गजासुर के सामने नृत्य करने लगे और विष्णु जी मधुर बांसुरी बजाने लगे। गजासुर दोनों से काफी प्रसन्न हुआ और उनसे कहा “मांगो जो मांगना है”।

गजासुर की यह बात सुनते ही बांसुरी वादक के रूप में भगवान विष्णु ने उससे कहा कि वह अपने पेट में बैठे शिव जी को मुक्त करे। तब तक गजासुर भी विष्णु जी की सत्यता समझ गया था। विष्णु जी की बात मानकर उसने शिव को मुक्त तो कर दिया किन्तु शिव जी से आग्रह करने लगा कि वह उसकी ये इच्छा बिल्कुल पूरी करें कि मृत्यु के बाद भी लोग उसे याद करें। उसकी ये बात सुनते ही भगवान शिव ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया और उस सिर को अपने पुत्र गणेश के धड़ से लगा दिया। 

ब्रह्मवैवर्त पुराण में उल्लेखित एक अन्य कथा यह है कि जैसे ही शनि देव की दृष्टि बालक गणेश पर पड़ी, गणेश जी का सिर धड़ से अलग हो गया। इस घटना के बाद शिव और पार्वती शोक करने लगे। उनकी यह हालत देखकर भगवान विष्णु ने हाथी के बच्चे का सिर काटकर गणेश जी के धड़ से जोड़ दिया।
 


भगवान गणेश को क्यों कहा जाता है एकदंत 

भगवान गणेश को एकदंत भी कहा जाता है, जिससे संबंधित भी एक अद्भुत कथा वर्णित है। कहा जाता है महर्षि वेद व्यास ने स्वयं गणेश जी से कहा कि वह महाभारत को लिखने की कृपा करें। गणेश जी ने उनकी बात सशर्त स्वीकार कर ली, गणेश जी की शर्त थी कि वेद व्यास बिना रुके महाभारत की कहानी कहेंगे और गणेश जी बिना रुके ये कहानी लिखते जायेंगे।


गणेश जी की इस शर्त को स्वीकार करते हुए व्यास लगातार बोलते रहे और गणेश जी लिखते रहे। लिखते-लिखते अचानक उनकी कलम टूट गई तो उन्होंने शीघ्रता से अपना एक दांत तोड़कर उसे कलम के रूप में प्रयोग करके लिखना आरंभ किया। इसी वजह से उन्हें एकदंत भी कहा जाने लगा।

एक अन्य कथा के अनुसार एक बार विष्णु के अवतार भगवान परशुराम, शिव से मिलने के लिए जा रहे थे कि रास्ते में उन्हें गणेश जी ने रोक लिया। इस पर क्रोधित होकर भगवान परशुराम ने महादेव द्वारा दिए गए फरसे से गणेश पर प्रहार किया। भगवान शिव द्वारा प्रदत्त फरसे का सम्मान करते हुए गणेश उसके आगे से नहीं हटे और अपने दन्त पर वार झेल लिया और एक दांत गवां दिया।

Created On :   16 May 2018 6:29 AM GMT

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