इस मंदिर में होती है देवी की लिंग रूप में पूजा, सिर्फ एक दिन खुलता है मंदिर

This temple is worshiped in the form of the Goddess of the Goddess, only one day the temple opens
इस मंदिर में होती है देवी की लिंग रूप में पूजा, सिर्फ एक दिन खुलता है मंदिर
इस मंदिर में होती है देवी की लिंग रूप में पूजा, सिर्फ एक दिन खुलता है मंदिर

डिजिटल डेस्क, भोपाल। अब तक आपने केवल भगवान शिव की ही लिंग रूप में पूजा होते हुए देखा व सुना होगा। पर क्या आपने कभी देवी जी की लिंग रूप में पूजा होते हुए देखा या सुना है, नहीं तो हम आपको आज एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां देवी जी की लिंग के रूप में पूजा की जाती है।
 

ये मंदिर छत्तीसगढ़ के अलोर गांव में एक पहाड़ी पर स्थित है। जहां पर देवी जी की लिंग रूप में पूजा की जाती है। कहा जाता है कि एस मंदिर में शिव और शक्ति एकसाथ वास करते हैं इसलिए इस मंदिर में लिंग के रूप में दोनों की पूजा की जाती है। ये मंदिर साल में केवल एक ही दिन खुलता है, और पूजा कर इस मंदिर के पट बंद कर दिये जाते हैं, पट बंद करने के बाद इसके बाहर रेत डाल दी जाती है। जब एक साल बाद मंदिर के पट खोले जाते हैं तो रेत पर जो भी आकृति या चिन्ह बनते हैं उसे देखकर आने वाले समय के बारे में अनुमान लगाया जाता है।
 

इन चिन्हों के देखकर लगाया जाता है अनुमान

एक साल बाद जब मंदिर के पट एक दिन के लिए खोले जाते हैं तब मंदिर के बाहर डाली गई रेत पर कुछ चिन्ह बन जाते हैं जैसे - बाघ के पैरों के चिन्ह, बिल्ली के पैरों के चिन्ह, मुर्गियों के पैरों के चिन्ह, हाथी के पैसों के चिन्ह आदि, इन चिन्हों के आधार पर पुजारी भविष्यवाणी करते हैं।
 

  • रेत पर यदि कमल के निशान बने होते हैं तो उसे शुभ चिन्ह माना जाता है।
  • हाथी के पैरों के चिन्ह मिलते हैं तो यह तरक्की के संकेत मिलते हैं।
  • गाय के खुर के चिन्ह भी समृद्धि की ओर संकेत करते हैं।
  • घोड़े के खुर के चिन्ह विवाद या युद्ध के संकेत देते हैं।
  • बाघ के पंजे के चिन्ह भय और आतंक से जुड़े संकेत देते हैं।
  • मुर्गी के पंजों के निशान सूखा और अकाल की ओर इशारा करते हैं।
     

वहीं लोगों की इस ओर काफी आस्था है। भविष्यवाणी में जो भी निकलता है उसे लोग सही मानते हैं। इस मंदिर की ओर लोगों की आस्था देखते ही बनती है। माना जाता है कि इस मंदिर में लोगों की मांगी हुई मुरादें बी पूरी होती हैं।
 

अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए भक्त यहां देवी को खीरे का प्रसाद अर्पित करते हैं। मान्यता है कि यहां संतान प्रप्ति की इच्छा से आए दंपत्ति को पंडित जी पूजा के बाद खीरा लौटा देते हैं। फिर दंपत्ति नाखून से खीरे को दो भागों में बांटकर तोड़तो हैं और एक-एक हिस्सा लिंग के समक्ष ही खा लेते हैं। ऐसा करने से निःसंतान दंपत्ति को संतान की प्रप्ति होती है।

Created On :   2 April 2018 1:25 PM IST

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