क्या है होलाष्टक ? जानिए 23 फरवरी से 1 मार्च तक क्यों नहीं होंगे शुभ कार्य

डिजिटल डेस्क, भोपाल। प्रत्येक वर्ष होलिका दहन से ठीक आठ दिन पहले के दिनों को होलाष्टक कहा जाता है। मान्यता है कि होलाष्टक के दौरान (आठ दिनों तक) ग्रहों का स्वभाव काफी उग्र रहता है। इसका असर मानव जीवन पर भी पड़ता है। इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। इन दिनों कोई भी शुभ कार्य, यज्ञ, शादी आदि नहीं किए जाते हैं। इस वर्ष 2018 में यह होलाष्टक 23 फरवरी से प्रारंभ होने जा रहे हैं, जो 1 मार्च तक रहेंगे।
पं. अशोक कुमार शर्मा के अनुसार होलाष्टक प्रारंभ होते ही प्राचीन काल में होलिका दहन वाले स्थान की गोबर, गंगाजल आदि से लिपाई की जाती थी। साथ ही वहां पर होलिका का डांडा लगा दिया जाता था। उन्होंने बताया कि होलाष्टक में 16 संस्कारों को करना पूर्णतः निषेध माना गया है। वहीं ग्रह प्रवेश, मुंडन, गृह निर्माण कार्य आदि भी प्रारंभ नहीं कराए जाते हैं।
होलाष्टक के दौरान अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहू उग्र स्वभाव में रहते हैं। इन ग्रहों के उग्र होने के कारण मनुष्य के निर्णय लेने की क्षमता कमजोर हो जाती है जिसके कारण कई बार उससे गलत निर्णय भी हो जाते हैं। जिसके कारण हानि की आशंका बढ़ जाती है।
होलाष्टक की ये दो मान्यताएं...
1. भक्त प्रहलाद से जुड़ी मान्यता
माघ पूर्णिमा से होली की तैयारियां शुरु हो जाती है। होलाष्टक आरंभ होते ही दो डंडों को स्थापित किया जाता है, इसमें एक होलिका का प्रतीक है और दूसरा प्रहलाद से संबंधित है। ऐसा माना जाता है कि होलिका से पूर्व 8 दिन दाह-कर्म की तैयारी की जाती है। यह मृत्यु का सूचक है। इस दुःख के कारण होली के पूर्व 8 दिनों तक कोई भी शुभ कार्य नही होता है। जब प्रह्लाद बच जाता है, उसी ख़ुशी में होली का त्योहार मनाते हैं।
2. कामदेव से संबंध
शिव पुराण के अनुसार देवताओं के अनुरोध पर कामदेव ने अपना प्रेम बाण चलाकर शिवजी की तपस्या भंग कर दी। इससे महादेव अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से कामदेव को भस्म कर दिया। कामदेव के भस्म होते ही सृष्टि में शोक व्याप्त हो गया। अपने पति को पुन: जीवित करने के लिए रति ने अन्य देवी-देवताओं सहित महादेव से प्रार्थना की। प्रसन्न होकर भोलनाथ ने कामदेव को पुनर्जीवन का आशीर्वाद दिया। फाल्गुन शुक्ल अष्टमी को कामदेव भस्म हुए और आठ दिन बाद उनके पुनर्जीवन का आशीर्वाद प्राप्त हुआ।
Created On :   19 Feb 2018 11:45 PM IST