जब शनि लग्न में गोचर कर रहे हों तो होता है ये प्रभाव

When Saturn is transiting in marriage, So this effect happens
जब शनि लग्न में गोचर कर रहे हों तो होता है ये प्रभाव
जब शनि लग्न में गोचर कर रहे हों तो होता है ये प्रभाव

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। जब शनि लग्न में गोचर कर रहे हों तो उनके दृष्टि क्षेत्र में तीसरा भाव प्रभावित हो जता है। तीसरे भाव छोटे भाई-बहिन, पराक्रम व छोटी यात्रा का होता है। तीसरे भाव का दिशाक्रम ईशानकोण से उत्तर की ओर है। यदि कुंडली के तीसरे भाव में शनि की शत्रु राशियां हैं तो वे सभी कष्ट पाएंगे जो भी तीसरे भाव की विषय वस्तु हैं और यदि तीसरे भाव में शनि देव की मित्र या उच्च राशियां हैं तो वे सभी सुख पाएंगे जो चीजें तीसरे भाव से संबंध रखती हैं। ईशान कोण में या तो नए निर्माण होंगे या निर्माण कार्यो में संशोधन होंगे या ईशान कोण में स्थित कमरों के इन्टीरियर में परिवर्तन आएगा। 

अब यदि तीसरे भाव में शत्रु राशियों पर शनि की दृष्टि पड़ रही है तो ये सब परिवर्तन बर्बादी का रास्ता दिखाने वाले होंगे तथा यदि शनि देव की दृष्टि शुभ प्रभाव डाल रही है तो ये सब परिवर्तन उन्नति का मार्ग दिखाने वाले होंगे। शनि की शत्रु दृष्टि और वास्तुशास्त्री की वक्र दृष्टि कई बार एक जैसा ही परिणाम देती है। इनके संकेत होते ही बडे़-बडे़ निर्माण ध्वस्त हो जाते हैं। जब तक वास्तु देवता को सिद्ध नहीं कर लें, ऎसे निर्णय नहीं करने चाहिए। ऐसा भी होता है कि एक ही भाव पर बृहस्पति की दृष्टि आ रही हो और शनि की दृष्टि आ रही हो। ऐसे में उस भाव से सम्बन्धित दो-तीन प्रकार के परिणाम आ सकते हैं:-

1. यदि तीसरे भाव में पड़ने वाली राशि बृहस्पति और शनि दोनों के ही अनुकूल हों तो अत्यधिक उच्चतम परिणाम मिलेंगे।

2. यदि तीसरी राशि बृहस्पति की है तो अनुकूल हों परन्तु शनि के प्रतिकूल हों तो पहले हानि होगी और फिर पुनर्निर्माण होगा।

3. स्वास्थ्य के विषय में यह हो सकता है कि तीसरे भाव से संबंधित व्यक्ति की शल्य चिकित्सा हो और बृहस्पति के प्रभाव में जल्दी ठीक भी हो जायें या जीवन रक्षा हो जाए।

4. शनि और बृहस्पति का संयुक्त प्रभाव खण्डन व मण्डन की प्रक्रिया है और दोनों प्रक्रियाएं सम्पादित होंगी। यह बात अलग है कि गोचरीय प्रभाव से पहले वह कार्यवाही होगी जिस ग्रह का गोचर पहले शुरू हो चुका हो।

5. जहां तक वास्तु शास्त्र का संबंध है तो यह सदा अच्छा ही रहता है पहले किसी भाव पर शनि की दृष्टि प्रारंभ हो जाए या तो़डने-फो़डने जैसी प्रक्रिया पहले संपादित हो जाए और बाद में बृहस्पति का गोचर शुरू होते ही पुनर्निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो जाए, इसे हम शब्दान्तर से संश्लेषण भी कह सकते हैं। तर्कशास्त्र में इन प्रक्रियाओं को थीसिस, एन्टीथीसिस और सिन्थेसिस कहते हैं। जिन वास्तु शास्त्रियों का बृहस्पति बलवान नहीं होता वे सिन्थेसिस की प्रक्रिया को अपने सम्पूर्ण स्वरूप में प्रतिपादित नहीं कर पाते हैं, जिसके फलस्वरूप उनके कराये गये कार्यो के परिणाम भी पूर्णता या सफलता को प्राप्त नहीं होते। यह कार्य बिना बृहस्पति की कृपा के संभव ही नहीं है।

6. यदि बृहस्पति बलवान हुए तो वे ज्योतिषी उपाय ज्योतिष में अत्यधिक सफल रहेंगे और यदि उनके बृहस्पति बलवान नहीं हैं तो वे या तो सटीक उपाय बता पाने में समर्थवान नहीं होंगे या उनके बताये हुए उपायों से सटीक परिणाम नहीं आएंगे। यदि उनके बृहस्पति पर पाप प्रभाव हुए तथा चंद्रमा दूषित हुए तो ऐसे-ऐसे उपाय बताएंगे जिनमें धनार्जन तो होगा परन्तु जातक को परिणाम कम मिलेंगे और उसके मन में असंतोष रहेगा।

7. यदि यह सब ग्रह राहु के प्रभाव क्षेत्र में हैं तो दृष्टि भ्रम रहेगा और उपाय बताने वाले या करने वालों को सच्चाई का पता नहीं चलेगा और बहुत बाद में एक अन्य कार्यवाही या संशोधन की आवश्यकता पडे़गी और यह तब होगा जब पराक्रम भाव पर राहु का प्रभाव समाप्त हो जाए या राहु की अन्तर्दशा निकल जाए।

Created On :   6 March 2019 11:05 AM GMT

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