इस विधि से करें जवारे विसर्जन, जानें शुभ मुहूर्त

डिजिटल डेस्क, भोपाल। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से हिन्दू नववर्ष प्रारंभ होता है, साथ ही चैत्र नवरात्रि की भी शुरूआत होती है। माता की आराधना के लिए ये नौ दिन महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इस दौरान नवरात्र के पहले दिन घर में जवारे या जौ बोए जाते हैं। और दशमी तिथि को नवरात्र के पहले दिन स्थापित किए गए जवारों का विधि-विधान से विसर्जन किया जाता है। विसर्जन के पूर्व माता भगवती तथा जवारों की विधि-विधान से पूजा की जाती है। और उसके बाद जवारे का विसर्जन किया जाता है।
पूजा विधि
जवारे विसर्जन के पहले भगवती दुर्गा की पूजा गंध, चावल, फूल, आदि से करें।
इस मंत्र से देवी की आराधना करें-
"रूपं देहि यशो देहि भाग्यं भगवति देहि मे।
पुत्रान् देहि धनं देहि सर्वान् कामांश्च देहि मे।।
महिषघ्नि महामाये चामुण्डे मुण्डमालिनी।
आयुरारोग्यमैश्वर्यं देहि देवि नमोस्तु ते।।"
प्रार्थना करने के बाद हाथ में चावल और फूल लेकर जवारे का इस मंत्र के साथ विसर्जन करें-
"गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठे स्वस्थानं परमेश्वरि।
पूजाराधनकाले च पुनरागमनाय च।।"
इस प्रकार विधिवत पूजा करने के बाद जवारे का विसर्जन कर देना चाहिए, लेकिन जवारों को फेंकना नहीं चाहिए। उसको परिवार में बांटकर सेवन करना चाहिए। इससे नौ दिनों तक जवारों में व्याप्त शक्ति हमारे भीतर प्रवेश करती है। जिस पात्र में जवारे बोए गए हों, उसे तथा इन नौ दिनों में उपयोग की गई पूजन सामग्री का श्रृद्धापूर्वक विसर्जन कर देना चाहिए।
जवारे विसर्जन के शुभ मुहूर्त
सुबह 06:25 बजे से 07:50 बजे तक
सुबह 10:50 बजे से 12:20 बजे तक
दोपहर 12:20 बजे से 01:50 बजे तक
शाम 05:10 बजे से 06:20 बजे तक
माना जाता है कि जब सृष्टी की शुरूआत हुई थी तो पहली फसल जौ ही बोई गई थी। इसलिए इसे पूर्ण फसल कहा जाता है। यह हवन में देवी-देवताओं को चढ़ाई जाती है यही कारण है कि वसंत ऋतु की पहली फसल जौ ही होती है, जिसे हम देवी मां को अर्पित करते हैं।
Created On :   25 March 2018 5:40 PM IST