रवि प्रदोष व्रत: जानें इस व्रत का महत्व, पूजा विधि और मुहूर्त

जानें इस व्रत का महत्व, पूजा विधि और मुहूर्त
  • हर माह में 2 बार आता है प्रदोष व्रत
  • भगवान शिव की​ की जाती है पूजा

डिजिटल डेस्क, भोपाल। देवों के देव महादेव की पूजा के लिए सोमवार का दिन महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके अलावा कई सारे व्रत और पर्व आते हैं, जब भोलेनाथ की विधि विधान से पूजा की जाती है। इनमें से एक है प्रदोष व्रत, जो कि हर माह में 2 बार आता है। इसे प्रदोषम के नाम से भी जाना जाता है, जो भगवान शिव और पार्वती का आशीर्वाद लेने के लिए किया जाता है। हिंदू कैलेंडर के 13 वें दिन इस व्रत को करने का विधान है। बात करें इस इस माह की तो, रविवार 10 दिसंबर को प्रदोष व्रत पड़ रहा है।

आपको बता दें, कि प्रदोष व्रत को दिन के हिसाब से अलग- अलग नामों से जाना जाता है। फिलहाल, प्रदोष व्रत रविवार को पड़ रहा है। जब प्रदोष व्रत रविवार को पड़ता है, तो इसे रवि प्रदोष (भानु वारा) नाम से जाना जाता है। इस व्रत को करने से भक्तों को जीवन में दीर्घायु और शांति प्राप्त होती है।

तिथि और मुहूर्त

त्रयोदशी तिथि आरंभ: 10 दिसंबर, रविवार सुबह 7 बजकर 13 मिनट से

त्रयोदशी तिथि समापन: 11 दिसंबर, सोमवार सुबह 7 बजकर 10 मिनट पर

पूजा का शुभ मुहूर्त: रविवार शाम 5 बजकर 30 मिनट से रात 8 बजकर 14 मिनट तक

प्रदोष व्रत सामग्री

प्रदोष व्रत पर भगवान की पूजा के लिए सफेद पुष्प, सफेद मिठाइयां, सफेद चंदन, सफेद वस्त्र, जनेउ, जल से भरा हुआ कलश, धूप, दीप, घी,कपूर, बेल-पत्र, अक्षत, गुलाल, मदार के फूल, धतुरा, भांग, हवन सामग्री आदि, आम की लकड़ी की आवश्यकता होती है।

व्रत विधि

प्रदोष व्रत के दिन व्रती को प्रात:काल उठकर नित्य क्रम से निवृत हो स्नान कर शिव जी का पूजन करना चाहिए। पूरे दिन मन ही मन “ॐ नम: शिवाय ” का जप करें। पूरे दिन निराहार रहें। त्रयोदशी के दिन प्रदोष काल में यानी सुर्यास्त से तीन घड़ी पूर्व, शिव जी का पूजन करना चाहिए। प्रदोष व्रत की पूजा संध्या काल 4:30 बजे से लेकर संध्या 7:00 बजे के बीच की जाती है।

संध्या काल में पुन: स्नान कर स्वच्छ श्वेत वस्त्र धारण कर लें। पूजा स्थल अथवा पूजा गृह को शुद्ध कर लें। यदि व्रती चाहे तो शिव मंदिर में भी जा कर पूजा कर सकते हैं। पांच रंगों से रंगोली बनाकर मंडप तैयार करें। पूजन की सभी सामग्री एकत्रित कर लें। कलश अथवा लोटे में शुद्ध जल भर लें। कुश के आसन पर बैठ कर शिव जी की पूजा विधि-विधान से करें। “ऊँ नम: शिवाय ” कहते हुए शिव जी को जल अर्पित करें।

डिसक्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारी अलग अलग किताब और अध्ययन के आधार पर दी गई है। bhaskarhindi.com यह दावा नहीं करता कि ये जानकारी पूरी तरह सही है। पूरी और सही जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ (ज्योतिष/वास्तुशास्त्री/ अन्य एक्सपर्ट) की सलाह जरूर लें।

Created On :   8 Dec 2023 8:18 AM GMT

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