Remembering: खूबसूरत नज्म सी है कैफी साहब की प्रेम कहानी, 101th बर्थ एनिवर्सरी पर गूगल ने दिया सम्मान

Know Kaifi Azmis Love Story On His 101th Birth Anniversary
Remembering: खूबसूरत नज्म सी है कैफी साहब की प्रेम कहानी, 101th बर्थ एनिवर्सरी पर गूगल ने दिया सम्मान
Remembering: खूबसूरत नज्म सी है कैफी साहब की प्रेम कहानी, 101th बर्थ एनिवर्सरी पर गूगल ने दिया सम्मान
हाईलाइट
  • कैफी की साहब की 101वीं बर्थ एनिवर्सरी पर गूगल ने दिया सम्मान
  • कैफी साहब की जन्म 'औरत' सुनकर शौकत दे बैठी थी अपना दिल
  • कैफी साहब ने फिल्मों के लिए ​लिखे कई खूबसूरत गीत

डिजिटल डेस्क, मुम्बई। जब भी शेर शायरी की बात होती है तो कैफी आजमी का नाम सबसे पहले याद किया जाता है। वे एक मशहूर शायर थे, जिनकी नज्मों ने सभी को अपना दीवाना बना रखा था। वे जब भी किसी मुशायरे में अपनी नज्म कहते लोग दाद देते नहीं थकते थे। 14 जनवरी 1919 को आज़मगढ़ के मिजवां गांव में जन्मे कैफ़ी का असली नाम अख़्तर हुसैन रिज़वी था। उनकी मां का नाम हफीजुन बीबी और पिता फतेह हुसैन थे। वैसे तो कैफी साहब का पूरा जीवन मुंबई में गुजरा, लेकिन 1980-81 के दशक में जब वे दूसरी बार मेजवां आए तो यहीं के होकर रह गए। महज 11 साल की उम्र में उन्होंने अपनी पहली शायरी लिखी थी। इसी वजह से वे कम उम्र में ही मुशायरों में हिस्सा लेने लगे थे। कैफी साहब ने अपनी रचनाओं में ताउम्र इंकलाब की वकालत की। लेकिन कैफी साहब प्यार भरी रचनाओं को लिखने में भी पीछे नहीं थे। उनकी प्रेम कहानी भी किसी खूबसूरत नज्म की तरह हैं, जो आपके दिल को छू लेगी। आज उनकी 101 वीं बर्थ एनीवर्सरी पर जानते हैं उनकी प्रेम कहानी...

"औरत" से जुड़ी है प्रेम कहानी
कैफी सा​हब की प्रेमकहानी उनकी खूबसूरत नज्म "औरत" से जुड़ी है। एक बार की बात है, जब वे हैदराबाद के एक मुशायरे में हिस्सा लेने गए। मंच पर जाते ही वे अपनी नज्म "औरत" सुनाने लगे।

"उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे,
क़द्र अब तक तेरी तारीख़ ने जानी ही नहीं,
तुझमें शोले भी हैं बस अश्क़ फिशानी ही नहीं,
तू हक़ीकत भी है दिलचस्प कहानी ही नहीं,
तेरी हस्ती भी है इक चीज़ जवानी ही नहीं,
अपनी तारीख़ का उन्वान बदलना है तुझे,
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे,"

उनकी इस नज्म को सुनकर श्रोताओं में बैठी एक लड़की नाराज हो गई। उनका कहना था कि "कैसा बदतमीज़ शायर है, वह "उठ" कह रहा है। "उठिए" नहीं कह सकता क्या? इसे तो अदब के बारे में कुछ भी नहीं पता। ऐसे में भला कौन ​इसके साथ जाने को तैयार होगा। "लेकिन जब कैफ़ी साहाब ने अपनी पूरी नज्म सुनाई तो महफिल में बस वाहवाही और तालियों की आवाज सुनाई दे रही थी। इस नज़्म का असर यह हुआ कि बाद में वही लड़की जिसे कैफी साहब के "उठ मेरी जान" कहने से आपत्ति थी वह उनकी पत्नी शौक़त आज़मी बनी।

शौकत ने किए सारे इम्तेहान पास
इस मुशायरे की पहली पंक्ति में बैठी शौकत नज्म खत्म होने तक कैफी को अपना दिल दे बैठी थीं। इसके बाद शुरु हुआ मोहब्बत में इम्तेहाल का दौर, जिसे शौकत ने बहुत खूबसूरती से पास किया और वे शौकत कैफी आजमी बन गईं। शादी के बाद शौकत ने एक बेटे को जन्म​ दिया। लेकिन कुछ वक्त बाद ही उसकी मृत्यु हो गई। इसके बाद शौकत ने एक बेटी को जन्म दिया, जिसका नाम शबाना आजमी है। जिस वक्त शबाना का जन्म हुआ, उस वक्त कैफी की माली हालात ठीक नहीं थी, ​तब महान लेखिका इस्मत चुगताई और उनके पति शाहिद लतीफ़ 1000 रुपये देकर कैफी की सहायता की। ताकि उनकी बच्ची ठीक से जिंदगी जी सके। 

​कई फिल्मों के लिए लिखे गीत
कैफी ने कई फिल्मों के ​गीत भी लिखे हैं, जिनमें "काग़ज़ के फूल" "हक़ीक़त", हिन्दुस्तान की क़सम", हंसते जख़्म "आख़री ख़त" और हीर रांझा" शामिल हैं। उन्होंने अपना ​पहला गीत "बुजदिल फ़िल्म" के लिए लिखा- "रोते-रोते बदल गई रात"।

मिले कई अवॉर्ड
साल 1975 कैफ़ी आज़मी को आवारा सिज्दे पर साहित्य अकादमी पुरस्कार और सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड से सम्मानित किये गया। 1970 सात हिन्दुस्तानी फ़िल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार मिला। इसके बाद 1975 गरम हवा फ़िल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ वार्ता फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला। 

गूगल ने दिया सम्मान
आज कैफी साहब की 101 वीं जयंती के अवसर पर गूगल ने भी डूडल बनाकर उन्हें सम्मान दिया। गूगल का होम पेज खुलते ही कैफी साहब की फोटो नजर आ रही है, जिस पर क्लिक करते ही उनसे जुड़ी नज्म, शायरी, गीत से जुड़े कई आप्शन आपको मिलेंगे। 

Created On :   14 Jan 2020 4:11 AM GMT

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