इजरायल-ईरान युद्ध: अमेरिका का दोहरा चेहरा, कभी ईरान को दिया परमाणु हथियार के समान, आज उसी के ठिकानों पर हमला

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। इजरायल-ईरान तनाव के बीच अमेरिका ने ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर जोरदार हमले किए। इन हमलों का मकसद ईरान की परमाणु हथियार बनाने की योजना को ध्वस्त करना बताया जा रहा है। लेकिन इतिहास के पन्ने बताते हैं कि आज ईरान को परमाणु हथियार से रोकने वाला अमेरिका ही कभी उसे न्यूक्लियर रिएक्टर, यूरेनियम और अन्य संसाधन देकर परमाणु शक्ति बनाने में मदद कर चुका था।
1951: तेल के खेल से शुरू हुई कहानी
1951 में ईरान के पास दुनिया का 10% से ज्यादा तेल भंडार था। अमेरिका और ब्रिटेन इस तेल पर कब्जा चाहते थे। तब ईरान के प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसद्दिक ने ब्रिटिश कंपनी एंग्लो-ईरानियन ऑयल कंपनी (AIOC) का ऑडिट करवाने का आदेश दिया। कंपनी ने ऑडिट से इनकार किया तो मोसद्दिक ने संसद से कानून पारित कराकर ईरान के तेल कुओं का राष्ट्रीयकरण कर दिया।
ब्रिटेन की बौखलाहट, लगाए प्रतिबंध
तेल पर नियंत्रण खोने से बौखलाए ब्रिटेन ने ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए। ब्रिटिश प्रधानमंत्रियों क्लीमेंट एटली और विंस्टन चर्चिल ने दुनिया को ईरान के खिलाफ लामबंद करने की कोशिश की। जब इसमें सफलता नहीं मिली तो ब्रिटेन ने अमेरिका के राष्ट्रपति ड्वाइट डी. आइजनहोवर से हाथ मिलाया।
1953: तख्तापलट और राजशाही की वापसी
दोनों महाशक्तियों ने मिलकर ईरान में सैन्य ऑपरेशन चलाए। अमेरिका का 'ऑपरेशन अजाक्स' और ब्रिटेन का 'ऑपरेशन बूट' सफल रहा। 19 अगस्त 1953 को मोसद्दिक का तख्ता पलट दिया गया। उन्हें तीन साल की सजा और आजीवन नजरबंदी मिली। जनरल फजलोलाह जहीदी के नेतृत्व में राजशाही बहाल हुई और शाह रजा पहलवी को सत्ता सौंपी गई।
शाह की परमाणु महत्वाकांक्षा, अमेरिका ने दिया साथ
अमेरिका समर्थक शाह रजा पहलवी ने परमाणु हथियार की इच्छा जताई। उन्होंने कहा कि यह शांति के लिए है, युद्ध के लिए नहीं। 1953 में अमेरिका ने 'एटम फॉर पीस' समझौते के तहत सहमति दी। 1967 में अमेरिका ने ईरान को न्यूक्लियर रिएक्टर और यूरेनियम मुहैया कराया। ईरान ने यूरेनियम संवर्धन शुरू किया, लेकिन यह मेडिकल उपकरणों तक सीमित रहा।
1979: दोस्ती से दुश्मनी तक
1979 में शाह रजा पहलवी का तख्ता पलट हुआ और अयातुल्लाह अली खामेनेई के नेतृत्व में ईरान इस्लामिक गणराज्य बना। शरिया लागू हुआ और अमेरिका से रिश्ते टूट गए। 1980 में इराक ने सद्दाम हुसैन के नेतृत्व में ईरान पर हमला किया, जिसमें अमेरिका ने इराक का साथ दिया। यहीं से दोनों देशों की दुश्मनी शुरू हुई।
आज: वही अमेरिका, वही ईरान, बदला मकसद
जो अमेरिका कभी ईरान को परमाणु शक्ति बनाना चाहता था, उसी ने अब उसके परमाणु ठिकानों पर हमले कर तबाही मचाई। यह अमेरिका की दोहरी नीति का जीता-जागता सबूत है।
Created On :   23 Jun 2025 11:51 PM IST