आखिर डोकलाम से क्यों पीछे हटी चीनी सेना ?

Doklam issue : reason behind Chinese army withdraw its troops
आखिर डोकलाम से क्यों पीछे हटी चीनी सेना ?
आखिर डोकलाम से क्यों पीछे हटी चीनी सेना ?

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। डोकलाम मसले पर लंबे गतिरोध के बाद अपनी सेना के कदम पीछे हटाने की बात से चीनी विदेश मंत्रालय भले ही इनकार करे, मगर हकीकत यह है कि अगले माह ब्रिक्स सम्मेलन और अमेरिका सहित अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के भारत का साथ देने के मद्देनजर चीनी सेना पीछे हटने को मजबूर हुई है।

भारतीय विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि चीन चाहता है कि वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट के तहत भारतीय उप महाद्वीप और यूरोपीय देश के कुछ हिस्सों को सड़क और रेल लिंक से जोड़कर अपना व्यापार बढ़ाना चाहता है। अधिकारी ने बताया कि असल में डोकलाम का विवाद खड़ा करने के पीछे चीन की मंशा यही थी कि एशिया में एक महाशक्ति होने के नाते वह भारत पर अपना दबदबा स्थापित कर अपने मंसूबे को पूरा कर ले। हालांकि, डोकलाम मसले पर भारत के सख्त रवैए और इसे अंतररष्ट्रीय कूटनीति में बदलने के बाद आखिर में चीन को समझ आया कि उसके अड़ियल रवैए से न तो उसका मिशन पूरा होगा और न ही उसे भारत के साथ सीमा विवाद पर दुनिया के बड़े देशों का साथ मिलेगा।

इसलिए पीछे हटा ड्रैगन

  • चीन में 3-5 सितंबर को होने वाले पांच देशों के ब्रिक्स सम्मेलन में भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी भी भाग लेने वाले हैं। विदेश मंत्रालय के सूत्र मानते हैं कि भारत ने कूटनीतिक चैनलों के जरिए चीन को यह साफ कर दिया था कि अगर सम्मेलन से पहले डोकलाम के मसले पर दोनों ओर से यथास्थिति कायम नहीं होती है तो भारत सम्मेलन का बहिष्कार भी कर सकता है।
  • अगर मोदी गतिरोध के चलते चीन नहीं जाते तो ग्लोबल पावर बनने की ख्वाहिश रखने वाले चीन के लिए मुश्किल खड़ी हो जाती। दुनिया भर में उसे साम्राज्यवादी और विस्तारवादी देश के रूप में देखा जाने लगता।
  • सम्मेलन में रूस, ब्राजील और साउथ अफ्रीका भी भाग लेंगे। हाल में जापान ने डोकलाम के मसले पर भारत का खुले तौर पर समर्थन किया था।
  • पिछले दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी कहा था कि डोकलाम के मसले पर दोनों देशों को यथास्थिति (विवाद से पहले की स्थिति) बनानी चाहिए। भारत की ओर से लगातार राजनयिक माध्यमों से हल निकालने की वकालत की गई। अंतरराष्ट्रीय समुदाय में इसे परिपक्व व्यवहार माना गया। सूत्रों के मुताबिक, कई स्तरों पर बातचीत हुई। इसमें विदेश सचिव, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और टॉप डिप्लोमेट लगातार जुटे रहे और दोनों पक्षों को स्वीकार्य हल निकाला जा सका।
  • सैन्य तैयारी के स्तर पर भी डोकलाम में भारत की पोजिशन मजबूत बताई जा रही है। 1967 में इस इलाके में भारतीय सैनिकों ने चीनी सैनिकों के दांत खट्टे कर दिए थे। 

Created On :   28 Aug 2017 8:23 PM IST

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