ISI के पूर्व प्रमुख ने कहा-हमने बनाई थी हुर्रियत, काश पाक में होता वाजपेयी सा PM

डिजिटल डेस्क, इस्लामाबाद। आईएसआई के पूर्व प्रमुख मोहम्मद असद दुर्रानी की किताब में कुछ चौकाने वाले खुलासे हुए हैं। खुफिया एजेंसियों और उनके कारनामों पर आधारित किताब "स्पाई क्रॉनिकल्स रॉ, आईएसआई एंड द इल्यूशन ऑफ पीस" में दुर्रानी और भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ के पूर्व प्रमुख एएस दुलत की बातचीत है। पत्रकार आदित्य सिन्हा ने किताब में लिखी गई इस बातचीत को मॉडरेट किया है। इस किताब में मोहम्मद असद दुर्रानी ने यह स्वीकार किया कि इंटर सर्विसेज़ इंटेलिजेंस (आईएसआई) ने ही घाटी में हुर्रियत का बीज बोया था। बता दें कि पाकिस्तान की तरफ से अपनी तरह का यह पहला कबूलनामा है। दुर्रानी ने कहा, "हमें खुशी होती अगर अटल बिहारी वाजपेयी जैसा कोई शख्स पाकिस्तान का वजीर-ए-आजम होता।
हुर्रियत को खुली छूट देने के अफसोस
दुर्रानी वर्ष 1990 से 1992 के बीच आईएसआई के प्रमुख थे, इसी दौरान कश्मीर घाटी में बड़े पैमाने पर हथियारबंद अलगाववादियों का तांडव शुरू हुआ था। उन्होंने किताब में जिक्र किया है कि राजनीतिक दिशा देने के लिए हुर्रियत का गठन एक अच्छा विचार था, लेकिन उसे खुली छूट देने का उन्हें अफसोस है। आईएसआई ने कैसे हुर्रियत का गठन किया और कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन के शुरुआती दिनों में उसकी मदद की इस बारे में किताब में खुलासा किया गया है। दुर्रानी ने कहा, "सबसे बड़ी नाकामी यह थी कि कश्मीर में जब आंदोलन शुरू हुआ, तो हमें यह कतई अंदाजा नहीं था यह कितना आगे जाएगा।"
अमानतुल्ला के ग्रुप ने शुरू किया आंदोलन
दुर्रानी ने कहा कि हम नहीं चाहते थे कि कश्मीर में हालात बेकाबू हो जाएं, इससे जंग छिड़ने का खतरा था और दोनों में कोई भी देश जंग तो नहीं ही चाहता था। हमें इस बात की फिक्र होने लगी कि इसे अपने काबू में कैसे रखा जाए। इसके लिए वह सबसे पहले कश्मीर के कुपवाड़ा में रहने वाले अमानतुल्ला गिलगिति से मिले, जिसने कश्मीर के पहले हथियारबंद अलगाववादी समूह जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) की स्थापना में मदद की थी। उन्होंने बताया कि हमने अमानतुल्ला को उतनी गंभीरता से नहीं लिया, उसके ग्रुप ने आंदोलन की शुरुआत की थी, इसके बाद कीचड़ फैलाना शुरू कर दिया। दुर्रानी यह मानते हैं कि हुर्रियत की स्थापना से "तहरीक" को एक दिशा मिली।
पाकिस्तान में फल-फूल रहे आतंकवादी गुट
दुर्रानी की किताब में जिक्र किया गया है कि पाकिस्तान अब हुर्रियत या कश्मीर के दूसरे अलगाववादी समूहों के संपर्क में भले नहीं रहा, लेकिन ऐसे कई दस्तावेजी सबूत हैं जो कश्मीर में चरमपंथ की राह पर चल पड़े युवाओं को हथियार मुहैय्या कराने में मदद करते हैं। अमानतुल्ला गिलगिती, सैयद सलाउद्दीन और हाफिज सईद जैसे कश्मीर में चरमपंथ के शुरुआती दिनों में खड़े हुए आतंकवादी आज भी पाकिस्तान में फल-फूल रहे हैं। रॉ के पूर्व प्रमुख एएस दुलत का कहना है कि "हुर्रियत पाकिस्तानी टीम है और इंडिया की अपनी टीम है। इन सबके बीच में कश्मीरी पिस रहे हैं।"
इस किताब में दुर्रानी और रॉ के पूर्व प्रमुख एएस दुलत के बीच कश्मीर, हुर्रियत, अफगानिस्तान, ओसामा बिन लादेन, परवेज मुशर्रफ, अजित डोभाल, अटल बिहारी वाजपेयी, परवेज मुशर्रफ का भी जिक्र है। नरेंद्र मोदी को लेकर हुई बातचीत का भी इसमें विस्तार से जिक्र किया गया है। किताब में लिखा है कि 1990 के दशक में दुर्रानी जब आईएसआई का जिम्मा संभाल रहे थे, तब दुलत भी खुफिया ब्यूरो (आईबी) के संयुक्त निदेशक के रूप में कश्मीर में तैनात थे।
एएस दुलत बोले मोदी ने किया काम
किताब में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की तारीफ में खूब कसीदे पढ़े गए हैं। दुर्रानी ने कहा, "हमें खुशी होती अगर वाजपेयी जैसा कोई शख्स पाकिस्तान में प्रधानमंत्री बनता। दुर्रानी ने कहा कि "वह हमारे लिए एक अच्छे प्रधानमंत्री साबित होते।" वहीं विदेश नीति को लेकर पीएम नरेंद्र मोदी और पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की तुलना करते हुए रॉ के पूर्व प्रमुख दुलत कहते हैं कि पीएम मोदी ने शुरुआती दो साल में भारत-पाकिस्तान संबंधों को लेकर मनमोहन के मुकाबले ज्यादा काम किया है।
दुलत ने कहा कि "मनमोहन सिंह का मकसद सही था, लेकिन उन्होंने अपने नौकरशाहों के जरिये भारत और पाकिस्तान के बीच सेतु बनाने की कोशिश की। दुर्रानी और दुलत दोनों ही इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि भारत-पाक संबंध को वापस पटरी के लिए मोदी के पास बेहद कम समय बचा है। वहीं दुर्रानी ने कहा कि "ऐसा लगता है कि मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बनेंगे।"
Created On :   22 May 2018 2:23 PM IST