Good News: इस देश की वैक्सीन ने कोरोना संक्रमित बंदरों को किया ठीक, अब इंसानों पर ट्रायल जारी

Good News: Vaccine of this country corrected corona infected monkeys, now trials on humans continue
Good News: इस देश की वैक्सीन ने कोरोना संक्रमित बंदरों को किया ठीक, अब इंसानों पर ट्रायल जारी
Good News: इस देश की वैक्सीन ने कोरोना संक्रमित बंदरों को किया ठीक, अब इंसानों पर ट्रायल जारी

​डिजिटल डेस्क, बीजिंग। चीन के वुहान से पूरी दुनिया में कोरोना वायरस कोहराम मचा रहा है। यह वायरस पूरी दुनिया में अब तक 1 लाख 91,061 लोगों की जान ले चुका है और 27 लाख 25 हजार 920 लोग इसकी चपेट में आ चुके हैं। दुनियाभर के वैज्ञानिक कोरोना वायरस को खत्म करने के लिए वैक्सीन बनाने की जुगत में दिन-रात मेहनत कर रहे हैं, लेकिन फिलहाल किसी का सफलता नहीं मिली है। इस बीच चीन वैज्ञानिकों ने एक उम्मीद की किरण जगाई है। 

ऐसा पहली बार हुआ है जब कोरोना वायरस को लेकर बनाई जा रही किसी वैक्सीन ने बंदर को कोरोना के संक्रमण से बचाया हो। यह सफलता चीन की एक दवा बनाने वाली कंपनी ने हासिल की है। इस कंपनी ने रीसस मकाउ बंदरों (सामान्य लाल मुंह वाले बंदर) को वैक्सीन दी थी। इसके बाद जांच की तो पता चला कि इन बंदरों में अब कोरोना वायरस नहीं हो सकता। बताया जा रहा है कि कंपनी ने 16 अप्रैल से इंसानों पर इस वैक्सीन का ट्रायल शुरू कर दिया है।

आठ बंदरों पर किया परीक्षण, सभी स्वस्थ
चीन की राजधानी बीजिंग में मौजूद दवा निर्माता कंपनी साइनोवैक बायोटेक (Sinovac Biotech) ने दावा किया है कि उसने 8 बंदरों को अपनी नई वैक्सीन की अलग-अलग डोज दी थी। 3 हफ्ते बाद उन्होंने बंदरों के स्वास्थ्य की जांच की तो नतीजे हैरतअंगेज करने वाले थे। दरअसल, बंदरों के फेफड़ों में ट्यूब के जरिए वैक्सीन के रूप में कोरोना वायरस ही डाला गया था। तीन हफ्ते बाद जांच में पता चला कि आठों में से एक भी बंदर को कोरोना वायरस का संक्रमण नहीं है।

7 दिन बाद बंदरों में नहीं मिले कोरोना के कोई लक्षण
इस परीक्षण के बारे में साइनोवैक के सीनियर डायरेक्टर मेंग विनिंग ने बताया कि जिस बंदर को सबसे ज्यादा डोज दी गई थी। 7 दिन बाद उसके फेफड़ों में या शरीर में कहीं भी कोरोना वायरस के कोई लक्षण या सबूत नहीं दिखाई दिए। कुछ बंदरों में हल्का सा असर दिखाई दिया, लेकिन उन्होंने उसे नियंत्रित कर लिया। साइनोवैक ने बंदरों पर किए गए परीक्षण के बाद वैक्सीन की रिपोर्ट बीते दिनों bioRxiv वेबसाइट पर प्रकाशित की। बंदरों पर आए हैरतअंगेज नतीजों के बाद मेंग विनिंग ने कहा कि हमें पूरा भरोसा है कि यह वैक्सीन इंसानों पर भी अच्छा असर करेगी।

पुराने तरीके से बंदरों पर किया टेस्ट
मेंग विनिंग ने बताया कि हमने वैक्सीन को विकसित करने का पुराना तरीका अपनाया है। पहले कोरोनावायरस से बंदर को संक्रमित किया। फिर उसके खून से वैक्सीन बना लिया। उसे दूसरे बंदर में डाल दिया। इस तरीके से गरीब देशों को महंगी वैक्सीन की जरूरत नहीं पड़ेगी। माउंट सिनाई में स्थित इकान स्कूल ऑफ मेडिसिन के वायरोलॉजिस्ट फ्लोरियन क्रेमर ने कहा कि मुझे वैक्सीन बनाने का ये तरीका पसंद आया। ये पुराना, लेकिन बेहद कारगर है। वहीं, पिट्सबर्ग यूनिवर्सिटी के डगलस रीड ने कहा कि तरीका अच्छा है, लेकिन बंदरों की संख्या कम थी। इसलिए परिणामों पर तब तक पूरा भरोसा नहीं कर सकते जब तक यह बड़े पैमाने पर जांचा नहीं जाता।

वैक्सीन में मौजूद एंटीबॉडीज ने कोरोना के स्ट्रेन को किया निष्क्रिय
साइनोवैक के वैज्ञानिकों का कहना है कि सवाल सही उठ रहे हैं, लेकिन हमने उन बंदरों को भी कोरोना वायरस से संक्रमित कराया, जिन्हें वैक्सीन नहीं दिया गया था। उनके अंदर कोरोना वायरस के संक्रमण के लक्षण स्पष्ट तौर पर दिखाई दिए। साइनोवैक के वैज्ञानिकों ने फिर दावा किया कि हमने अपनी वैक्सीन में बंदर और चूहे के शरीर से ली गई एंटीबॉडीज को मिलाया है। इसके बाद इस वैक्सीन का ट्रायल हमने चीन, इटली, स्विट्जरलैंड, स्पेन और यूके के कोरोना मरीजों पर किया है। वैक्सीन में मौजूद एंटीबॉडीज ने कोरोना वायरस के स्ट्रेन को निष्क्रिय करने में सफलता पाई है।

Created On :   24 April 2020 8:59 AM GMT

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