अमेरिकियों को हर्जाना देने तैयार जॉनसन एंड जॉनसन, भारत में जज ने दे दी थी क्लीनचिट

- मामला हिप ट्रांसप्लांट करने वाले खराब मेडिकल उपकरण की सप्लाई से जुड़ा है
- कंपनी ने इस मामले में जस्टिस बीएन श्रीकृष्णा (रिटायर्ड जज) से सलाह ली थी
- जज ने मामला पुलिस को सौंप दिया था
- जिसमें मुंबई पुलिस जांच कर रही थी
डिजिटल डेस्क, मुंबई। मशहूर अमेरिकी कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन को जिस मामले में भारत के जज से क्लीन चिट मिल गई थी, उस केस में ही कंपनी अमेरिका के लोगों को हर्जाना देने तैयार हो गई। ये मामला हिप ट्रांसप्लांट करने वाले खराब मेडिकल उपकरण की सप्लाई से जुड़ा है। कंपनी ने साढ़े 4 साल पहले फरवीर 2014 में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस बीएन श्रीकृष्णा से हरी झंडी ले ली थी। जज ने मामला पुलिस को सौंप दिया था, जिसमें मुंबई पुलिस जांच कर रही थी।
बता दें कि महाराष्ट्र के फुड एंड ड्रग एटमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने मुंबई में आईपीसी की धारा 320,321 और 328 के तहत मामला दर्ज करवाया था। इस धारा के तहत मामला तब दायर किया जाता है, जब किसी को गंभीर क्षति पहुंचाई गई हो या फिर जानबूझकर किसी को नुकसान पहुंचाया गया हो। कंपनी के खिलाफ जहर देकर किसी को हानि पहुंचाने का मामला भी दर्ज किया गया था। यदि कंपनी धारा 328 के तहत दोषी पाई जाती तो उसमें अधिकतम 10 साल की सजा का प्रावधान है। कंपनी ने इस मामले में जस्टिस बीएन श्रीकृष्णा (रिटायर्ड जज) से सलाह ली थी।
सौंपी थी 10 पन्नों की रिपोर्ट
अपनी 10 पन्नों की रिपोर्ट में जस्टिस श्रीकृष्णा ने कहा था कि पुलिस गलत दिशा में अपनी जांच को आगे बढ़ा रही है। रिपोर्ट में जस्टिस ने कहा, "मरीजों की दोबारा सर्जरी एक रूटीन प्रक्रिया का हिस्सा है, इसलिए धारा 328 का मामला नहीं बनता है। रिपोर्ट में यहा भी कहा गया था कि मशीन से निकले दो मेटल आयोन्स (क्रोमियम और कोबाल्ट) जहरीले हैं, इस बात का कोई सबूत नहीं मिलता है। जस्टिस के रिपोर्ट देने के 3 महीने बाद ही एक मरीज ने 2014 में हिप ट्रांसप्लांट सर्जरी को लेकर फिर जॉनसन एंड जॉनसन के खिलाफ महाराष्ट्र एफडीए में शिकायत की। एफडीए ने इस मामले में सीबीआई जांच कराने को कहा। सरकार ने 2015 में ही ये मामला सीबीआई के हवाले कर दिया।
भारत से वापस ले ली थीं पूरी मशीनें
जॉनसन एंड जॉनसन को जस्टिस श्रीकृष्णा के क्लीन चिट देने से 3 महीने पहले नवंबर 2013 में ऐसे ही एक मामले में अमेरिका में कंपनी पर केस हुआ। इस केस में कंपनी 2.5 बिलियन डॉलर जुर्माना और क्षतिपूर्ति देने को तैयार हो गई। कंपनी चाहती थी कि मरीजों की तरफ से दायर मामलों को किसी तरह सुलझा लिया जाए। अपने खिलाफ हुई एफआईआर रद्द करने कंपनी ने जस्टिस श्रीकृष्णा से मिली क्लीन चिट रिपोर्ट बॉम्बे हाईकोर्ट में दाखिल की। जस्टिस श्रीकृष्णा ने रिपोर्ट सौंपने के पहले ही भारत से कंपनी ने अपनी सभी ट्रांसप्लांट मशीने वापस ले ली थीं। केंद्र सरकार ने उसके लाइसेंस भी रद्द कर दिए थे। मुंबई पुलिस तब तक कंपनी के निदेशक, कर्मचारियों और 126 मरीजों से पूछताछ कर चुकी थी। कंपनी की खराब मशीनों से 3600 के लगभग मरीजों के ऑपरेशन हुए थे। जिन्हें बाद में काफी परेशानी हुई। हिप इंप्लांट डिवाइस की वजह से कम से कम चार मरीजों की मौत हो गई थी।
Created On :   11 Sept 2018 4:14 PM IST