खुलासा : मोदी की डिप्लोमेटिक पहल से हल हुआ डोकलाम विवाद

Modi-Xi meeting at Hamburg set the stage for Doklam standoff resolution
खुलासा : मोदी की डिप्लोमेटिक पहल से हल हुआ डोकलाम विवाद
खुलासा : मोदी की डिप्लोमेटिक पहल से हल हुआ डोकलाम विवाद

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कूटनीतिक कौशल की वजह से डोकलाम विवाद के हल का मंच हैम्बर्ग (जर्मनी) में ही तैयार हो गया था। नरेंद्र मोदी ने हैम्बर्ग में G-20 समिट से इतर शी जिनपिंग से अचानक मुलाकात कर विवाद को हल करने की पहल की थी, हालांकि ऐसा एजेंडे में शामिल नहीं था। मोदी की इस पहल ने चीनी अधिकारियों को भी हैरत में डाल दिया था। 

वरिष्ठ पत्रकार नितिन गोखले की शुक्रवार को जारी पुस्तक में बताया गया है कि मोदी की इस पहल ने चीनी अधिकारियों को भी हैरत में डाल दिया था। बता दें कि सिक्किम के डोकलाम में 16 जून को शुरू हुआ गतिरोध 72 दिनों के बाद तब थम गया था, जब दोनों देश अपनी सैनिकों को वहां से हटाने पर रजामंद हो गए थे। मोदी ने अपनी इस मुलाकात के बारे में किसी से जिक्र नहीं किया था। गुपचुप की गई इस पहल के नतीजे देश कर दुनिया के कूटनीतिक पंडित भी हैरान रह गए .....


डोकलाम के कूटनीतिक हल का केंद्र बना हैम्बर्ग

वरिष्ठ पत्रकार नितिन गोखले की पुस्तक "सिक्योरिंग इंडिया द मोदी वे-पठानकोट, सर्जिकल स्ट्राइक एंड मोर" में बताया गया है कि मोदी ने बिना किसी पूर्व घोषणा के हैम्बर्ग में जिनपिंग से लॉन्ज में अनौपचारिक मुलाकात की थी, जो डोकलाम विवाद के कूटनीतिक हल का मंच बन गया। डोकलाम विवाद के दौरान हैम्बर्ग में मोदी-जिनपिंग के बीच यह मुलाकात सात जुलाई को हुई थी। विदेश मंत्रालय ने तब कहा था कि दोनों नेताओं के बीच कई मुद्दों पर विस्तार से बातचीत हुई। जबकि चीन के अधिकारियों ने द्विपक्षीय बातचीत से इनकार किया था। 

मोदी ने इस तरह तैयार की हल की जमीन

जी-20 सम्मिट से पहले चीन के विदेश मंत्रालय ने छह जुलाई को बयान जारी कर कहा गया था कि मोदी और जिनपिंग के बीच द्विपक्षीय मुद्दों पर बैठक नहीं होगी। उन्होंने स्पष्ट किया था कि सीमा पर तनाव को देखते हुए बातचीत के लिए यह समय सही नहीं है। नितिन गोखले की इस किताब में विस्तार से बताया गया है कि नरेंद्र मोदी ने किस तरह इस मुद्दे पर बातचीत की परिस्थिति तैयार की और फिर अंतत: किस तरह उसे लगभग पूरी तरह अपने पक्ष में करने में सफल रहे। यह मोदी की ऐसी कूटनीतिक सफलता थी, जिसने विश्व बिरादरी के सामने उनका मान बढ़ाया। 


चीनी अधिकारियों को भी नहीं हुआ था यकीन

नितिन गोखले ने अपनी पुस्तक में बताया है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की पहल मोदी ने स्वयं की थी। भारतीय राजनयिक इस अचानक हुई बैठक के चश्मदीद गवाह हैं। दोनों पक्षों के बीच बातचीत एजेंड़े में नहीं थी, लेकिन जब मोदी की पहल पर दोनों नेताओं के बीच बातचीत शुरू हुई तो सबसे ज्यादा हैरान चीनी अधिकारी ही हुए थे। इस संक्षिप्त मुलाकात में मोदी और जिनपिंग ने तय किया कि भारत के सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और बीजिंग के स्टेट कांउसलर यांग जिची को डोकलाम गतिरोध को खत्म करने की कोशिशों को आगे बढ़ाएंगे।   


जिनपिंग को इस तरह समझाने में सफल हुए मोदी

रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ नितिन गोखले ने अपनी पुस्तक में विस्तार से बताया है कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिनपिंग को समझाया कि हमारे सामरिक संबंध, डोकलाम जैसे छोटे सामरिक मुद्दों से कहीं ज्यादा बड़े हैं। हमें इसके लिए अपने प्रगतिशील संबंधों की बलि नहीं चढ़ानी चाहिए। यह भारतीय राजनय की अपनी तरह की महत्वपूर्ण परिघटना है जब भारतीय पक्ष अपनी शर्तों पर किसी प्रतियोगी देश को अपनी बात मनवा सका है। इस मुलाकात के बाद ही डोभाल ब्रिक्स एनएसए बैठक में शामिल हुए थे। जिसके नतीजे बेहद सकारात्मक रहे। 


गतिरोध के दौरान हुईं 38 बैठकें

पुस्तक के अनुसार डोकलाम गतिरोध के दौरान दोनों देशों के बीच कम से कम 38 बार बैठकें आयोजित हुईं। भारत की तरफ से इनकी अगुआई चीन में भारत के राजदूत विजय गोखले ने की। भारतीय टीम को प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से नई दिल्ली की रेड लाइन को लेकर सीधे निर्देश थे। टीम को बता दिया गया था कि भारत जमीन पर मजबूती से डटा रहेगा और इस मसले के हल के लिए कूटनीतिक प्रयास ही एकमात्र और सबसे सही उपाय है।

कैसे शुरू हुआ डोकलाम विवाद?

चीन जून के महीने में सिक्किम सेक्टर में भूटान की सीमा पर स्थित डोकलाम क्षेत्र में सड़क मार्ग विकसित करने का प्रयास कर रहा था। डोकलाम पठार में ही चीन, भारत और भूटान की सीमाएं मिलती हैं। भूटान और चीन दोनो ही इस इलाके पर अपने आधिपत्य का दावा करते हैं। एक द्विपक्षीय संघि के तहत भारत भूटान का साथ देता है। भारत में यह इलाका डोकलाम और चीन में डोंगलांग कहलाता है। भारत ने विरोध जताया तो चीनी सेना ने घुसपैठ करते हुए भारत के दो बंकर तोड़ दिए थे।

उल्लेखनीय है कि सिक्किम का मई 1975 में भारतीय संघ में विलय हुआ था। चीन पहले तो सिक्किम को भारत का हिस्सा मानने से ही इनकार करता रहा है, लेकिन सन 2003 में उसने सिक्किम को भारत के एक राज्य के रूप में स्वीकार कर लिया है। हालांकि, चीन सिक्किम के अनेक इलाकों को अब भी अपना ही बताता है।

 

Created On :   30 Sep 2017 2:24 PM GMT

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