इस वजह से नार्थ कोरिया और साउथ कोरिया में है दुश्मनी 

this is the reason of conflict between south korea and north korea
इस वजह से नार्थ कोरिया और साउथ कोरिया में है दुश्मनी 
इस वजह से नार्थ कोरिया और साउथ कोरिया में है दुश्मनी 

डिजिटल डेस्क,नई दिल्ली। अगर मौजूदा दौर में अंतर्राष्ट्रीय जनीति और कई देशों के राजनीतिक हालात पर नजर डालें तो जो तस्वीर उभरती है वो हमें चिंता में डालने के लिए काफी है। भारत-पाकिस्तान, इजरायल-फिलिस्तीन और उत्तर कोरिया-दक्षिण कोरिया के बीच दशकों से जारी तनाव पूरे विश्व के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। हाल-फिलहाल जिस तरह नॉर्थ कोरिया और साउथ कोरिया के बीच तनातनी बढ़ी है उसने पूरी दुनिया की बड़ी ताकतों को सोचने के लिए मजबूर कर दिया। इन दोनों पड़ोसी देशों के बीच जारी इस तनाव की असली वजह उनकी राजनीतिक विचारधारा है। इसके अलावा भी कई कारण है जो दोनों के बीच खटास पैदा करते हैं। आइये जानते हैं इन दोनों एशियाई शक्तियों के बीच टकराव की क्या वजहें है- 

कोरिया के इतिहास में छुपा है दुश्मनी का कारण   

इन दोनों कोरियाई देशों के बीच जो भी परेशानियां आज पनप रही हैं वो इनके इतिहास से उपजी हैं। यूएसएसआर (सोवियत संघ), यूएसए (संयुक्त राज्य अमेरिका), जापान और चीन जैसे कई देशों की अलग-अलग राजनीतिक विचारधाराओं की वजह से कोरियाई देशों के बीच तकरार बढ़ती गई।   

साल 1392 से 1897 तक कोरिया पर जोसेऑन वंश का शासन था। 5 सदी से भी ज्यादा समय तक चले इस शासन के दौरान कोरिया पर चीन के क्विंग वंश का प्रभुत्व रहा। इसका नतीजा ये रहा कि कोरिया के सारे व्यापारिक संबंध चीन के साथ ही होते थे। 

1895 में चीन और जापान के बीच एक युद्ध हुआ। इस युद्ध चीन बुरी तरह पराजित हुआ और इसी के तहत दोनों राज्यों के बीच "शिमोनोसेकि की संधि" हुई। इस संधि का नतीजा ये रहा कि चीनी शासन का कोरिया की जोसेऑन वंश पर से प्रभुत्व खत्म हो गया और 1897 में जोसेऑन वंश के राज्य को "कोरियन एम्पायर" का नाम दे दिया गया।  

साल 1897 से 1905 तक कोरिया में एक तानाशाही शासक "एम्परर गोजोंग" ने राज किया। गोजोंग ने सोवियत संघ की मदद से अपनी सैन्य ताकतों का विस्तार किया।  

इसके बाद 1905 में सोवियत संघ और जापान के बीच जंग हुई जिसमें सोवियत संघ की हार हुई और इसी के बाद प्रोटेक्टोरेट संधि पर हस्ताक्षर किये गए। इस संधि के मुताबिक कोरिया की कमान जापान के हाथों में आ गई। 

1910 से 1945 के बीच जापान ने कोरिया पर अपना प्रभाव बनाए रखा लेकिन दूसरे विश्व युद्ध में जापान की हार हुई और इस तरह से कोरिया जापान के हाथ से निकल गया।  

विश्व में छिड़े कोल्ड वॉर का कोरिया पर असर  

दूसरे विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद बिना किसी प्लान के सोवियत संघ ने कोरिया के उत्तरी भाग पर कब्जा कर लिया और जो बचा हुआ हिस्सा था उस पर यूएस ने अपनी पकड़ बना ली। बाद में इन दो भागों को 38वीं पैरलल लाइन से बांट दिया गया।  

साल 1948 में यूनाइटेड नेशंस ने कोरिया में चुनाव कराने की घोषणा  की, लेकिन सोवियत संघ ने इसे मानने से इंकार कर दिया। उसी दौरान अमेरिका में हुए प्रोटेक्टोरेट में चुनावों का परिणाम आया और इसके बाद रिपब्लिक ऑफ कोरिया मतलब साउथ कोरिया बना दिया गया।  

एक महीने बाद कोरिया के उत्तरी हिस्से को सोवियत संघ ने "डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ नार्थ कोरिया" घोषित कर दिया। ये दोनों ही नए देश अपनी-अपनी संस्कृति, परंपरा और जमीन को और बढ़ाना चाहते थे। दोनों की यही महत्वकांक्षा दक्षिण कोरिया और उत्तर कोरिया के बीच तनाव की वजह बनी।   

साल 1950 में नार्थ कोरिया ने सोवियत संघ की मदद से साउथ कोरिया पर अटैक किया और उसके बड़े भाग पर कब्जा कर लिया। इससे नाराज यूएसए ने पलटवार करते हुए 38वीं पैरलल लाइन को क्रॉस कर दिया। इस वजह से चीन भी नार्थ कोरिया के साथ आकर खड़ा हो गया। उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच तभी से जारी ये तनाव अब भी कायम है और रह रहकर दोनों के बीच टकराव की स्थिति बनती है। 

उत्तर कोरिया से जुड़े कुछ दिलचस्प तथ्य-

उत्तर कोरिया ने 2003 में नॉन-प्रोलीफिरेशन ट्रीटी (एनपीटी) की सदस्यता से खुद को हटा लिया था।  

उत्तर कोरिया कॉम्प्रेहैन्सिव टेस्ट बैन ट्रीटी (सीटीबीटी) और केमिकल  वेपन कन्वेंशन (सीडब्ल्यूसी) का भी सदस्य नहीं है।  

नार्थ कोरिया ने न्यूक्लीयर एक्सप्लोजन्स परीक्षण 2006, 2009, 2013 और 2016 में किया है। 

2015 में नार्थ कोरिया थर्मो न्यूक्लीयर में भी शामिल हो गया।  

Created On :   5 March 2018 2:13 PM IST

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story