सजा-ए-मौत का मामला: पूर्व नौसेनिकों को फांसी की सजा सुनाने पर भड़के पूर्व राजनयिक, कतर के फैसले पर भारत के एहसानों से किया कटाक्ष
- कतर के इस फैसले की सुगबुगाहट भारत में काफी तेज हो गई है
- कतर की एक कंपनी अल दाहरा में यह सभी भारतीय नागरिक काम करते थे
- कतर में भारतीय नौसैनिकों को फांसी की सजा मिलने के बाद विदेश मंत्रायल काफी सक्रिय हो गया है
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कतर की एक अदालत में भारतीय नौसेना के आठ पूर्व सैनिकों को सजा-ए-मौत का फरमान जारी किया गया है। इससे भारत और कतर के द्विपक्षीय संबंधों पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। भारत सरकार कतर के इस फैसले को सुलझाने के लिए कई कानून विकल्प की तलाश में जुट गई है। सूत्रों के अनुसार, कतर की एक कंपनी अल दाहरा में यह सभी भारतीय नागरिक काम करते थे। लेकिन, पिछले साल कथित तौर पर जासूसी के मामलों में चलते इन आठ लोगों पर केस दर्ज हुआ था। हालांकि, इस मामले में कतर के अधिकारियों ने भारतीय नौसेनिकों पर लगाए आरोपों को सार्वजनिक नहीं किया है। यहां तक कि उन्हें किन आरोपों के चलते दोषी करार दिया गया है, वो तक नहीं बताए गए हैं।
कतर के इस फैसले की सुगबुगाहट भारत में काफी तेज हो गई है। इस मामले में खाड़ी देशों के राजदूत और पूर्व राजनयिक दीपक वोहरा ने अपनी बात रखी है। उन्होंने कहा है कि किसी भी देश में जब ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न होती है, तब काउंसलर एकसेस को मंजूरी दी जाती है। इस एक्सेस के अनुसार, विदेशी जेलों में कैद भारतीय नागरिकों से मिलने भारतीय राजनयिक पहुंचते है। इस दौरान जेल में कैदियों से बातचीत करते हुए वह उनसे भोजन, रहने की सुविधा और प्रताड़ना जैसे चीजों को लेकर सवाल पूछते है।
पूर्व राजनयिक ने विदेशी देशों से जुड़े मसलों पर कानूनी कार्यवाही के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा कि इन मुद्दों को कानून तौर पर भी हल किया जाता है। ऐसे मामलों को दो तरीको से हल करने का प्रयास किया जाता है। पहला अदालत में केस दर्ज कराके और दूसरा दोनों देशों के राजनयिकों से बातचीत के जरिए। कानून विकल्प में सबसे पहले निचली अदालत के फैसले को भारत के राजनयिक उस देश की ऊपरी अदालत में चुनौती देते हैं। इसके बाद दूसरे विकल्प में दोनों देश के राजनयिक मामले की गंभीरता को समझते हुए बातचीत करते हैं। इसके बाद विदेशी देशों से भारतीय नागरिकों को छोड़ दिया जाता है। गौरतलब है कि ऐसा करना दोनों देशों के आपसी रिश्तों पर निर्भर करता है। यदि दोनों देशों के संबंध अच्छे है तो भारतीय नागरिकों की रिहाई होने के आसार बढ़ जाते हैं।
दीपक ने भारत और कतर के द्विपक्षीय संबंधों पर भी बातचीत की। उन्होंने कहा कि बीते कई सालों से भारत और कतर के रिश्ते काफी मजबूत रहे हैं। पूर्व राजनयिक ने आगे कहा कि भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और कतर के राजनयिकों और राजनेताओं से काफी अच्छे संबंध है। इन चीजों को देखते हुए इस मसले में भारत को कतर की ओर से पॉजिटिव रिस्पॉन्स मिल सकता है। इस बीच उन्होंने कतर और गल्फ कॉपरेशन काउंसिल से जुड़ी एक बात का जिक्र भी किया है। वोहरा ने कहा कि कतर को भारत का एहसान नहीं भूलना चाहिए। उन्होंने कहा, "साल 2014 और 2017 में जब गल्फ कॉपरेशन काउंसिल ने आपको जूते मारकर निकाल दिया था। तो उस वक्त आप अनाज मांगने के लिए भारत की शरण में आए थे। उस दौरान भारत ने आपको किसी शर्त नियम लागू करें बगैर तत्काल आपको अनाज भेजा था।"
दीपक वोहरा ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर भी बात कही। वोहरा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कतर की ओर से सम्मानित किया गया था।
जी न्यूज को दिए गए टीवी इंटरव्यू में वोहरा ने बताया कि वह कतर से कुछ भारतियों को रिहा भी करवा चुके हैं। वोहरा ने कई न्यूज रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए बताया कि इजराइल के लिए इटली से सबमरीन खरीदने की जासूसी कर रहे भारत के पूर्व नौसैनिक की सूचना जब कतर के हाथों लगी, तब उसने इन नौसैनिकों को जेल में बंद करवा दिया। इस दौरान उन्होंने कतर के फैसले के तार इजराइल और हमास के युद्ध में भारत के फैसले को लेकर भी जोड़े। दरअसल, इजराइल-हमास संघर्ष के बीच भारत ने इजराइल के साथ रहने का ऐलान किया है। इस पर वोहरा ने कहा कि भारत के फैसले के बाद कतर के मन में पल रहा द्वेष बाहर आ गया, जिसके चलते उसने गुस्सा में भारत के नौसेनिकों को फांसी देने का निर्णय लिया है। कतर ने भारत के कान खड़े करते हुए ये संदेश दिया कि उसे हल्के में ना ले। पूर्व राजनयिक ने आगे कहा कि कतर को 1980 के दशक में साऊदी अरब के जैसे आतंकियों को शरण देने का सियासी दांव नहीं खेलना चाहिए। यदि कतर ऐसा करता है तो पूरे विश्व में उसकी कड़ी निंदा होगी क्योंकि उसके 12000 की फौज कुछ नहीं कर सकेगी।
कतर में भारतीय नौसैनिकों को फांसी की सजा मिलने के बाद विदेश मंत्रायल काफी सक्रिय हो गया है। विदेश मंत्रालय ने बयान जारी करते हुए कहा कि वह इस मामले को हल करने के लिए सभी कानून विकल्पों पर गंभीरता से विचार कर रहा है। बता दें, कतर की अदालत से फांसी की सजा मिलने वाले इन पूर्व भारतीय नौसेनिकों के नाम कैप्टन सौरभ वशिष्ठ, कमांडर पूर्णेन्दु तिवारी, कैप्टन बीरेंद्र कुमार वर्मा, कमांडर सुगुनाकर पकाला, कमांडर संजीव गुप्ता, कमांडर अमित नागपाल और नाविक रागेश मौजूद हैं। सजा में शामिल इन सभी लोगों के बारे में बताते हुए मंत्रालय ने कहा कि इन सभी सैनिकों का 20 साल तक भारतीय नौसेना में बेदाग योगदान रहा है। ये सेना में ट्रेनर और कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत रह चुके हैं।
Created On :   27 Oct 2023 9:49 PM IST