Bangladesh-India Border Kidney Smuggling: 'वन किडनी विलेज' के नाम से कुख्यात हो चुका बांग्लादेश का यह गांव, भारत आकर किडनी बेच रहे लोग

वन किडनी विलेज के नाम से कुख्यात हो चुका बांग्लादेश का यह गांव, भारत आकर किडनी बेच रहे लोग
  • भारत और बांग्लादेश बॉर्डर अब मानव अंगों की अवैध तस्करी का बड़ा अड्डा बन चुकी है
  • तस्करी की जद में आकर कई परिवार बर्बाद हो चुके
  • लोगों को काम दिलाने का झांसा देकर लाया जा रहा भारत

डिजिटल डेस्क, ढाका। भारत और बांग्लादेश बॉर्डर अब मानव अंगों की अवैध तस्करी का बड़ा अड्डा बन चुकी है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस तस्करी की जद में आकर कई परिवार बर्बाद हो चुके हैं। यह गोरखधंधा कितनी तेजी से फैल रहा है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बांग्लादेश का बाइगुनी नाम का गांव अब 'वन किडनी विलेज' के नाम से जाना जाने लगा है। यहां हर 35 में से एक व्यक्ति अपनी किडनी बेच चुका है।

इसी गांव के रहने वाले सफीरुद्दीन ने साल 2024 में भारत आकर अपनी किडनी ढाई लाख रुपये में बेच दी थी। उनका मकसद अपनी गरीबी को दूर करना और बच्चों के लिए छत की व्यवस्था करना था। लेकिन मकान भी पूरा नहीं बन पाया और शरीर में लगातार दर्द भी बना रहता है।

फर्जी दस्तावेजों के जरिए चल रहा गोरख धंधा

अल जजीरा की रिपोर्ट में बताया गया है कि दलाल फर्जी दस्तावेजों और रिश्तेदारी के झूठे साक्ष्यों के माध्यम से भारत के मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम को चकमा देते हैं। दरअसल, भारत का मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम (THOA) 1994 कहता है कि किडनी का दान केवल करीबी रिश्तेदारों के बीच या सरकारी मंजूरी से ही किया जा सकता है।

अल जजीरा ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेषज्ञ के हवाले से बताया कि अंग प्रत्यार्पण की मंजूरी के लिए फर्जी आईडी, नोटर सर्टिफिकेट और डीएनए रिपोर्ट बनवाई जाती हैं। इस पर या तो अस्पतालों को शक नहीं होया या फिर वे जानबूझकर अंजान बनते हैं।

दलाल ने कोलकाता ले जाकर ट्रांसप्लांट कराया

एक और मामला बिनाई गांव का है जहां की विधवा जोशना बेगम और उनके दूसरे पति बेलाल को 2019 में एक दलाल ने भारत ले गया। वहां उसने कोलकाता के एक अस्पताल में जोशना का ट्रांसप्लांट करवाया। पहले 7 लाख टका (बांग्लादेशी करेंसी) का वादा किया गया, लेकिन ऑपरेशन के बाद केवल 3 लाख मिले। जोशना ने बताया कि, "दलाल ने पासपोर्ट तक नहीं लौटाया। बाद में बेलाल भी मुझे छोड़कर चला गया।"

इसी तरह ढाका के एक कारोबारी मोहम्मद सजल ने भी 2022 में दिल्ली जाकर अपनी किडनी बेची। उसे इसके लिए 8 लाख रुपये देने की बात कही गई। लेकिन जब उन्हें तय रकम नहीं मिली तो वे खुद दलाल बनकर अन्य बांग्लादेशी लोगों का ट्रांसप्लांट कराने लगे। उसने बताया कि ये गिरोह दोनों देशों के डॉक्टर्स, अस्पतालों और दलालों से जुड़ा है।

रिपोर्ट में दलालों के हवाले से बताया गया कि मरीज एक किडनी के लिए 18 से 22 लाख रुपए तक चुका देते हैं, लेकिन किडनी बेचने वालों को सिर्फ 2.5 से 4 लाख रुपए मिलते हैं। बाकी पैसा अस्पतालों, दलालों, दस्तावेज बनाने वालों और डॉक्टरों यानी गिरोह में बंट जाता है।

अल जजीरा की रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि कुछ केसों में लोगों को भारत में काम दिलाने के नाम पर फंसाया जाता है तो कुछ का जबरदस्ती ऑपरेशन करा दिया जाता है।

Created On :   5 July 2025 7:50 PM IST

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